मनुष्य को ज्ञान की प्राप्ति जिसके द्वारा होती है उसे मन कहते है। मन अत्यंत चंचल होने के कारण एक विषय से दूसरे विषय में तुरंत चला जाता है। हित-अहित विचार कर खुद को तथा इंद्रियों को अहित विषयों में जाने से रोकता है।

जिनमें सत्व गुण प्रबल होता है उनकी मानसिक स्थिति सुदृढ़ रहती है। अल्प सत्व गुण वाले व्यक्ति में रज-तम मानस दोष प्रकुपित होकर मनोभव निर्माण होते है जो मनुष्य को अपने मूल मार्ग तथा उद्देश्य से भटका देते हैं। जिससे मानसिक व्याधि होती है जो कभी-कभी शारीरिक व्याधि भी बन जाती है। मानसिक विकार में मनोभावों की प्रमुख भूमिका होती है। इनके कारण मनुष्य मामूली समस्याओं से परेशान, बेचैन हो जाता है। मन विकृत करनेवाले मनोभावों का परिचय तथा नियंत्रण किस तरह कर सकते यह देखते है।

काम (Lust) – विवाहित व्यक्ति अपने साथी अथवा पराये से भी सुख की अपेक्षा करना। अविवाहित व्यक्ति भी सुख की चाह रखता है। इससे मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। इसे नियंत्रण करने के लिए बाहृय सुख की अपेक्षा ना करके अपने साथी से ही सुख की चाह करने की सलाह देनी चाहिए। अविवाहित को ब्रम्हचर्य पालन का उपदेश करना, संवेदना बढ़ाने वाले चित्र इत्यादि न देखना, सद्वृत्त का पालन कर आचार-रसायन का मार्गदर्शन करना चाहिए।

क्रोध (Anger) – इच्छित वस्तु के ना मिलने पर , वैयक्तिक और फिर सामाजिक परेशानी से मानस प्रभावित होकर गुस्सा बढ़ जाता है। इसे काबू में करने के लिए जैसे बडों को कहते हुआ सुना है ’गुस्सा पी जाओ’ तो गुस्सा पी जाना चाहिए अथवा थूक देना चाहिए। दीर्घ-गंभीर श्वसन, प्राणायाम, ध्यान-धारणा इत्यादि करवाना चाहिए। ध्यान भटकाने के लिए उल्टी गिनती गिनना भी काम आता है।

लोभ (Greed) – किसी वस्तु विशेष के प्रति अत्याधिक लालायित होना अर्थात लालच करना है। समय पर संतुलित न करने पर मनुष्य रोगी बन जाता है। इससे छुटकारा पाने के लिए जितना प्राप्त है उसमें संतुष्ट रहने तथा ज्यादा की चाह नहीं रखने की सलाह जरूरी है

मोह (Delusion) – उपरोक्त लोभ का समय पर इलाज नहीं किया तो वह बढ़कर मोह स्वरूप लेता है। अज्ञानता बढ़ जाने के कारण हानि-लाभ की समझ नहीं रहती। इसलिए उचित वक्त पर लालच पर ही नियंत्रण करना जरूरी होता है।

ईष्या (Jealousy) – किसी के प्रति हीन भावना होने से मपुष्य जलकुकड़ा बन जाता है। मन में धीरे-धीरे रोष निर्मित होता है। अंदर ही अंदर कुढ़ता है। इस पर संतुलन पाने के लिए सबसे अपनेपन की भावना रखनी चाहिए। उनकी अच्छाइयों की सराहना करके, अच्छे गुणों को अपनाने की सलाह देनी चाहिए।

मान (Pride) – अपनी बुद्धि, सुंदरता, दौलत, शिक्षा इत्यादि को श्रेष्ठ समझकर अभिमान करना जिससे मनुष्य में घमंड बढ़ जाता है। ऐसे व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने से पहले उसे जमीन पर पांव रखकर मर्यादित रहने की सलाह देनी चाहिए वरना गर्व का घर खाली होने में देर नहीं लगती।

मद (Neurosis) – सच्चाई से परे किसी नशे में डूबा हुआ रहता है मनुष्य। जो भय, चिंता इत्यादि से घिरकर, संशयित होकर, नकारात्मकता में डूब जाता है। उसे सच्चाई से रूबरू करवाना बहुत जरूरी होता है जिससे वह वास्तविक स्थिती को पहचानकर, सकारात्मक सोच के साथ सादा जीवन जीने लगे।

शोक (Grief) – किसी को खो देना, इच्छित वस्तु समय पर न मिलना इन वजहों से मनुष्य में दीनता का भाव आकर उदासी छाती है। समय पर इन भावों को पहचानकर अपनी मर्यादा से बाहर की चाह नहीं रखने को कहें। अपनी चादर देखकर पांव पसारने की सलाह दे ताकि यह परिस्थिती ही निर्माण ना हो।

चिंता (Depression) – मनुष्य जब किसी विषय के बारे में अधिक सोचता है, तो दुःखदायी विचार मन में घर कर जाते है जिससे काम-काज में मन नहीं लगता, आनंदित नही लगता जिससे एक खालीपन महसूस होता है। आधुनिक जीवनशैली भी इसका कारण होती है। यह भाव सभी रोगों का कारण भी होता है। इस पर काबू पाने के लिए तनावरहित जीवन जीने के लिए प्रवृत्त करें। जैसे कि मन को आनंद देनेवाले प्राकृतिक दृश्य देखें, पंछियों की चहक सुनें, फुलों का सुगंध ले, हरियाली में भ्रमण करे जिससे मन आनंदित हो। मधुर आवाज से कॉर्टीसोल कम होकर तनाव कम होता है। स्वास्थ्यपूर्ण जीवनशैली अपनाने की सलाह दे।

उद्वेग ( Anxiety) – मस्तिष्क की इस भयभीत अवस्था में मनुष्य सतत चिंतित, अशांत, भय से भरा हुआ रहता है। अनावश्यक परिस्थिती उत्पन्न होने से, जरा सी आवाज से भी दिल की धडकन बढ़ जाती, तीव्र श्वसन, थकान होकर, पसीना आता है तथा एकाग्रता नही रहती। सद्यः परिस्थिती छोड़ अन्य समय की चिंता लगी रहती है। आधुनिक मतानुसार अंतः स्त्रावी ग्रंथियों के स्त्राव में असंतुलन हो जाता है। इसमें परिवार के सदस्य तथा निकट मित्र अच्छा कार्य कर सकते है। उसे सांत्वना देकर, हिम्मत देकर उसे सुरक्षित महसूस करना महत्वपूर्ण होता है। उचित निद्रा, ध्यान-धारणा, प्राणायाम आसन करने की सलाह दे। आसन करने से मांसपेशियों में शिथिलता आकर शांति महसूस होती है। मनोचिकित्सक की सलाह लेने को कहें।

भय (Fear) – किसी व्यक्ति की हानि अथवा कार्य में बाधा उत्पन्न होगी यह सोचकर भय उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्ति का चेहरे से ही पता चलता-जैसे आंखों में ही डर दिखाई देता। खुद को सुरक्षित रखने का प्रयास करते रहता है। घबराहट के कारण किसी का साथ चाहता है। सर्वप्रथम डर लगनेवाले कारणों से उसे दूर करना चाहिए। उपदेश और सांत्वना देकर उसे आश्वस्त करना चाहिए। अलग कार्य करने के लिए प्रोत्साहन देना चाहिए। आप्त, मित्रों की मदद देना चाहिए। मनोचिकित्सक का मार्गदर्शन लेने को कहे।

दैन्य (Misery) – असहाय मानसिक अवस्था में मनुष्य लाचार, कुछ भी सुनने में असमर्थ होता है। दुखी रहकर सदैव शिकायत करते रहता है। उसकी शिकायतों पर गौर कर अर्थसहायता इत्यादि से समस्या का निवारण करना चाहिए। उसे खुश रहने के उपाय बनाए। रमणीय दृश्य देखना, मनोरंजन के लिए व्यंगात्मक पुस्तकें पढ़ना, हास्य कविताओं का लुत्फ उठाना इत्यादि में सक्रिय करना चाहिए।

अमर्ष (Intolerance) – किसी बात को सहन करने लायक नहीं रहता, न किसी पर विश्वास कर पाता। उसे सांत्वना देकर सद्व्यवहार सिखाए ताकि वह विश्वास रख के दूसरों का आदर कर सकें। दीर्घ-गंभीर श्वसन, प्राणायाम करवाए ताकि शांति पाकर धीरज बढ़ सके।

आवेग (Excitement) – खुशी के कारण मनुष्य अति उत्तेजित हो जाता। यह तात्कालिक भाव होने के कारण जोशपूर्ण होता जिसे रोकने की अर्थात धारण करने की सलाह देनी चाहिए। नहीं तो रूग्ण जोश में होश खोकर खुद को चोटील कर सकता है।

ग्लानि (Disgust) – कोई कल्पना, वस्तु अथवा क्रिया देखकर आवाज से अथवा स्वाद से बिल्कुल भी पसंद नहीं आती। जिसका तीव्रता से विरोध किया जाता है। जैसे आजकल सोशल मीडिया पर बहुत सी चीजें परेशान करती है जिससे मानसिक स्वास्थ्य खराब होता है। ऐसी चीजों से दूर रहने की सलाह दे।

शंका (Uncertainty) – मनुष्य संदेह करके, परिस्थिती समझने में असमर्थ होकर, धोखा तथा अविश्वास से घिर जाना। उसकी शंका का निवारण करना चाहिए तथा उसे आश्वासित करना चाहिए कि ऐसा कुछ नहीं हो सकता। आवश्यकता पड़ने पर मनोचिकित्सक की सलाह ले सकते।

घृणा (Hatred) – कोई व्यक्ति अथवा वस्तु जो नापसंद हो उसके प्रति गुस्सा, तिरस्कार आता है। यह नकारात्मक भाव है जो प्रीति की भावना बढ़ाकर कम किया जा सकता है। उससे प्यारी बाते करें, जिसे वस्तु से नफरत करना उसके अच्छे गुणों को उजागर कर बताए ताकि वह भी उसको प्यार करने लगे।

जड़ता (Dullness) – उत्साह की कमी के कारण मनुष्य किसी भी कार्य में रूचिहीन होकर उसका आलस बढ़ जाता है। उसे कार्य में प्रवृत्त कराने के लिए उत्साहवर्धक, मनोरंजक, प्रेरणादायी छोटी-छोटी बातों से रूचि उत्पन्न करनी चाहिए। व्यायाम, आसन इत्यदि से स्फूर्ति लेने की सलाह दे।

उग्रता (Fierceness) – व्यक्ति में करूणा की कमी होकर वह दुष्ट, शारीरिक रूप से हिंसक बन जाता है। ऐसे रूग्ण में उसका जंगलीपन कम करने के लिए उसे सांत्वना देकर करूणामय बातें करनी चाहिए। विश्राम करवाएं तथा मनोचिकित्सक से उपचार करने की सलाह दे।

हठ (Obstinancy) – मनुष्य अपनी लचीलापन खोकर जिद्दी बनता है तथा अपने ही मत पर कायम टिका रहता है। उसके मत परिवर्तन करने के लिए योग्य-अयोग्य का ज्ञान देकर उसके लिए क्या अच्छा है यह समझाना चाहिए। उसे उसकी गलती का एहसास करवाकर मन परिवर्तन करवाए।

विलाप (Groaning) – किसी के निधन अथवा वियोग से मनुष्य शोक सहने में असमर्थ होकर अश्रु बहाते, रोते रहता है। उसकी स्थिती अत्यंत दयनीय होती है जो अनेक मानसिक तत्पश्चात शारीरिक विकार उत्पन्न कर सकती है। इसे काबु में करने के लिए दुःख भरी बातों से उसे अलग रखें। शोक को ज्यादा दिन तक न मनाने की सलाह दें। मन प्रसन्न करनेवाले दृश्य, संगीत, कोई छंद इत्यादि से बहलाने की कोशिश करें। भजन-कीर्तन में मन को रमाने के लिए कहें। मानसचिकित्सक की सलाह लेने की कहें।

श्रम (Fatigue) – रूग्ण शारीरिक अथवा मानसिक कार्य करने से थक के चूर हो जाता है। उसे शक्ति तथा निद्रा की आवश्यकता होती है। प्रसन्न वातावरण में स्वस्थ आहार देकर सुलाने की सलाह देनी चाहिए। अंगों का स्नेहन, मर्दन भी करवाने की सलाह दे ताकि थकान दूर हो जाए।

उत्सुकता (Eagerness) – हमेशा उतावला कुछ भी जानने के लिए ऐसे व्यक्ति में धीरज नही होता, अशांत रहता है। उसे सांत्वना दे, उपदेश देकर मार्गदर्शन करें। परिवार गण तथा मित्र गण उसे आश्वासित करें।

स्मृति (Memory) – गलत बातों को याद करके जैसे किसी चीज का ना मिलना । चिन्ता, दुख इत्यादि मानस भावों की निर्मिती है। ऐसे व्यक्ति को अच्छे विषयों की याद दिलवाएं। पुराने पारिवारिक तथा मित्रों के साथ फोटोज़ इत्यादि उसकी अच्छी आनंद देने वाली बातों का स्मरण करवाये। स्थानांतरण की सलाह दें।

भ्रान्ति (Confusion) – मन में गलत धारणा बना लेता है मनुष्य जिसकी वजह विचारशून्यता होती है। स्पष्टता न होने के कारण मित्र को भी शत्रु समझने लगता है। रूग्ण की स्थिती गंभीर होती है। उसे सांत्वना देकर आश्वस्त करवाएं। प्राणायाम, ध्यान- धारणा इत्यादि कार्य करने की सलाह दे ताकि स्पष्टता बनी रहें। अंत में मनोचिकित्सक से मिलने की सलाह दे।

द्वेष (Envy) – यह एक नकारात्मक भाव है जिसके कारण मनुष्य दूसरों के पास जो वस्तु है उसे पाने की कोशिश करता है, न मिलने पर उससे नफरत करने लगता है। इस पर नियंत्रण के लिए जो जितना अपने पास है उसी में संतुष्ट रहने की सलाह दे।

चेष्टा (Effort) – किसी वस्तु की हासिल करने के लिए अत्यंत प्रयत्न करता, प्रयत्नशील रहता है सदैव। जिसके कारण मनुष्य का मानसिक स्वास्थ्य खराब हो जाता है। अपने प्रयास के बाहर के कार्य अथवा वस्तु का मोह बंद करवाना, इसी तरह अपनी क्षमता देखकर कार्य करने की आदत डालने से इसे नियंत्रित किया जा सकता है।

कुछ मानसभाव मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होते है।

प्रिती (Attatchment) – मन में संतोष की भावना उत्पन्न होकर हर्ष होता है।

श्रद्धा (Devotion) – सत्व बढ़कर पाने की अपेक्षा न होकर भक्ति की भावना निर्माण होकर, आदर-सम्मान की भावना जागृत होती है।

धैर्य (Tolerance) – दुःखद या विपरीत परिस्थिती में मानसिक संतुलन बनाये रखकर संघर्ष कर, मनुष्य को धीरज देकर परिस्थिती से बाहर निकालता है।

हर्ष (Joy/Euptioria) – सत्व गुण की वृध्दि से मानसिक स्वास्थ्य का लाभ होता है। अति हर्ष भी हानिकारक हो सकता है।

शील (Temperament) – मनुष्य का स्वभाव ही वह भाव है जो संस्कारों पर निर्भर करता है। किसी का अपमान ना कर सद्व्यवहार करवाता है।

शौच (Physical and Mental Purification of Body) – इस भाव से सम्पूर्ण शरीर की शुद्धि होती है। शरीर की स्नान इसे बाहय शुद्धि करते है। उसी तरह जप, तप, वैराग्य, सुंदर विचार, योग, प्राणायाम इत्यादि से आभ्यंतर शुद्धि होकर द्वेष, ईष्र्या, शोक, क्रोध इत्यादि मानस भाव नष्ट होकर शांति मिलती है। कोरोना काल के पश्चात मनोरूग्णों की संख्या बढ़ गयी है। इसलिए अपना बहुत ख्याल रखें। खुश रहें।

डॉ. चित्रा अशोक गणवीर
एम. डी. (आयु) मुंबई

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