आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ का समान, शांत और संतुलित अवस्था में रहना आवश्यक माना गया है। विपरीत दशाओं में ही वात प्रकोप होता है। त्रिदोषों में वात ही बलवान है। इसमें ही मल और धातु प्रभावित होते हैं। वात कुपित व्याधियों के लक्षण अलग-अलग होते हैं। वायु कुपित होने पर वायु, अन्न व पाक से उत्पन्न होने वाले दोषों को बढ़ावा मिलता है- अरुचि, मंदाग्नि, गुल्म, अतिसार आदि उदर रोग उत्पन्न होते हैं। इनमें से एक भी रोग पूरे शरीर को कमजोर कर देता है। वात रोग बल, रंग, सुख और आयु का नाश करता है। वात रोग स्त्री के गर्भ को नष्ट करता है। यह सभी शारीरिक क्रियाओं और पित्त, कफ, मल, धातु को अव्यवस्थित कर देता है। 

यद्यपि वात दोष से उत्पन्न रोगों की गणना करना असंभव है तथापि आचार्य चरक ने 80 प्रकार के वात विकारों का उल्लेख किया है, जैसे-नखभेद, पादशूल, आमवात, संधिवात, अस्थिभंग, एकांगवात (लकवा), प्रलाप, हाथों का जकड़ना, पीठदर्द, कमर दर्द, सिर दर्द, सर्वांगवात, खंजता, पंगुता, कुब्जता, उदरावर्त (गैस), अपच, मंदाग्नि, उदरशूल, हृदयशूल, श्वास कष्ट, आनाह (पेट फूलना), जोड़ों का दर्द, लंगड़ी का दर्द, मासिक दर्द, पूरे शरीर में दर्द आदि ये सब रोग होते हैं।      

उपचार:- वर्षा ऋतु में मौसम के प्रभाव से वात रोगों का प्रकोप ज्यादा रहता है। वात रोग बड़े ही हठीले और कष्टदायक होते हैं। इनसे बचे रहना तथा इनकी चपेट में आ जाने पर शीघ्र ही रोग निवारण के उपाय करना लाजिमी है।  ये उपाय वातजनित रोगों को दूर करने में पूर्णतः सक्षम हैं। आप भी इन्हें आजमा कर देखिए।

1. सबसे पहले वात दोष के स्थान पक्वाशय की शुद्धि के विरेचन हेतु एरंडी का तेल 20 मि. ली., 25 मि. ली. गर्म दूध में मिलाकर पिलाएं।   

2. सभी प्रकार के वात रोगों में सेंकना और मालिश करना अत्यंत लाभप्रद है। सेंकने की विधि यह है कि ईंट को खूब गरम कर लें, तत्पश्चात् जल के छींटे देकर खूब ठंडी कर लें और किसी सूती अथवा ऊनी कपड़े में लपेट कर पीड़ित हिस्से पर लेप सेंक महानारायण तेल अथवा महाविषगर्भ तेल की मालिश करना उत्तम है। 

3. पाचन संस्थान पर कम दबाव डालें। उचित खान-पान का हमेशा पालन कर कब्ज को न बनने दें। हाजमा दुरुस्त रखें। जब महसूस हो तभी शौच के लिए जाएं। नींद भरपूर लें। पूरी नींद न लेने पर खाना पचता नहीं और पेट में गैस बनती है। सही वक्त पर सोने-जागने की आदत डालें।

4. गरिष्ठ, बासी भोजन से बचें। वसायुक्त भोजन न लें।। रेशेदार सब्जियों को भोजन में शामिल करें, सुबह शाम के भोजन में सलाद-चटनी का प्रयोग करें। भोजन के बाद दूध पीएं। फल, सेब, संतरा लें। इससे अपच नहीं होगी।

5. सौंफ, कालीमिर्च, इलायची, सोंठ, अमचूर, सेंधानमक, जीरा को पीसकर चूर्ण बना लें। सबकी  मात्रा समान लें। एक-दो चम्मच खाना खाने के बाद लें। यह कब्जनाशक चूर्ण है लेकिन ज्यादा तले हुए, खट्टे, तेल मिर्च मसालेदार, मादक पदार्थों का सेवन न करें।

6. व्यायाम और योग को जीवन में महत्वपूर्ण स्थान दें। सूर्य नमस्कार के बाद भुजंगासन, शलभासन और शवासन करें। 

7. मेथीदाना, भुनी हुई सौंफ, अजवाइन बड़े दाने वाली, हलिम बीज, निर्गुण्डी बीज समान भाग में लेकर महीन चूर्ण बना लें। एक चम्मच चूर्ण खाना खाने के बाद रात में सोने से पूर्व लें। यह चूर्ण मंदाग्नि, पेचिश, उदर-विकार के लिए लाभकारी है।

8. नींबू का रस 15 ग्राम, मिश्री 15 ग्राम, अनारदाना 40 ग्राम, सोंठ 40 ग्राम, छोटी इलायची, पीपल, दालचीनी, पोदीना के पत्ते, कालीमिर्च ये सभी 10-10 ग्राम, जीरा भुना हुआ 120 ग्राम, धनिया 80 ग्राम और सेंधानमक 100 ग्राम । नींबू के रस को मिला लें। मिश्री व सेंधानमक अलग कर शेष सभी सामग्री को खूब कूट-पीसकर महीन चूर्ण कर लें फिर मिला लें। मिश्री पीसकर इसमें डालकर अच्छी तरह से मिला लें। अंत में सेंधानमक मिलाकर खूब खरल कर लें। अब इसे शीशी के बर्तन में रख दें। इस चूर्ण से पेट की अग्नि प्रबल होती है। अपच और वात-विकार दूर होते हैं। यह वात व्याधिनाशक एक बहुत ही स्वादिष्ट चूर्ण है। 

9. कपूर की डली को तिल तेल में मिलाकर स्थानी मालिश करने से या लहसुन के रस में कपूर मिलाकर स्थानीय मालिश करने से कटिशूल में लाभ होता है।

10. लकवा रोगी के लिए शहद सर्वोत्तम औषधि का काम करता है। 

11. गठिया रोग में नीम के तेल की मालिश उपयोगी है। नीम की सूखी निबौरियों के चूर्ण को हर तीसरे दिन महीना भर खाने से अपच, गठिया, कमर दर्द आदि रोगों से आराम मिलता है। लंबे समय तक इसका सेवन करने से इन व्याधियों से छुटकारा मिल जाता है। 

12. दस पिसी हुई कालीमिर्च फांक कर ऊपर से गर्म पानी में नींबू निचोड़ कर सुबह-शाम पीते रहने से गैस बनना बंद हो जाती है।

13. अदरक के एक लीटर रस में तिल्ली का आधा लीटर तेल मिलाकर  उबालें, जब रस जल कर तेल मात्र रह जाए, तब ठंडा होने पर छान लें। इस तेल की मालिश शरीर पर करने से जोड़ों की वात पीड़ा मिटती है।

14. लहसुन को पीसकर 6 ग्राम रस निकाल लें और 10 ग्राम घी में गर्म करें जब गंध दूर हो जाए तो इसी में 3 ग्राम सोंठ का चूर्ण एवं 10 ग्राम पुराना गुड़ डाल नीचे उतार लें तथा थोड़ा गर्म रहते पी जाएं। प्रातः और रात्रि को इसका प्रयोग करना चाहिए। यह योग उस स्थिति में अच्छा लाभ करता है जब किसी अंग पर वायु का प्रकोप होकर पीड़ा और सूजन आ जाए। वायुकारक पदार्थों का प्रयोग निषिद्ध है। चोपचीनी एवं अश्वगंधा का चूर्ण सम भाग मिश्री मिलाकर सेवन करना भी लाभप्रद है।

15. एक किलोग्राम कुचला लेकर उसके मोटे-मोटे टुकडे़ करें। फिर उसे पानी में एक सप्ताह तक भिगोकर रखें। दिन में इसे धूप में रखें। फिर उसे पीतल की कलईदार कड़ाही में 8 लीटर  तिल के तेल में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं। जब पूरा पानी जल जाए और तेल का रंग लाल हो जाए, तो कड़ाही को उतारकर तुरंत तेल निकाल लें। यह तेल लकवा आदि वात रोग, शूल, पक्षाघात आदि में अत्यंत लाभकारी है। इस तेल से रोगग्रस्त भाग पर नियमित दो-तीन बार मालिश करें।

16. जिन जोड़ों में दर्द और सूजन हो, उन्हें कुनकुने जल में फिर ठंडे जल में दो-दो मिनट रखना चाहिए। इस प्रकार दिन में केवल एक बार 20-30 मिनट तक रोगी जोड़ों को विपरीत (गर्म-ठंडा) स्नान कराना चाहिए। इससे संधियों में रक्त संचार बढ़ता है और दर्द से राहत मिलती है।

17. नियमित रुप से पिप्पली या लहसुन को दूध में पकाकर उसका सेवन करना चाहिए। इससे शारीरिक कमजोरी दूर होती है।

18. सरसों का शुद्ध तेल 500 ग्राम, लाल मिर्च का पाउडर 150 ग्राम (लाल मिर्च पाउडर की मात्रा आवश्यकतानुसार घटाया-बढ़ाया जा सकता है) लें। लाल मिर्च के पाउडर को पानी की सहायता से चटनी की तरह बारीक पीस लें और उसकी छोटी-छोटी पकौड़ी बना लें। तेल की कड़ाही में उबलने के लिए रख दें। जब तेल खूब उबलने लगे, तो पकौड़ी उसमें डाल दें। अच्छी तरह पक जाने पर पकौड़ी को तेल के झारे से अलग निकाल लें। ठंडा हो जाने पर तेल को कपड़े से छानकर किसी शीशी में भर लें। 

शरीर के किसी भी भाग में दर्द-चाहे मांसपेशियों में हो अथवा हड्डियों के जोड़ों में, इस तेल की केवल दो मिनट तक मालिश करने मात्र से असहनीय दर्द गायब हो जाता है। सभी प्रकार के वात रोग, पक्षाघात, आमवात, कमर दर्द, गर्दन या कंधों में जकड़न सभी विकार दूर हो जाते हैं। मोच या चोट लगने से सूजन एवं वेदना में भी अत्यधिक लाभकारी है। मिर्ची के कारण लगाने पर थोड़ी चुनचुूनाहट होती है। इसे आंख के आसपास  और कटे-जले स्थानों पर नहीं लगाना चाहिए।

20. जोड़ों की पीड़ा से राहत पाने के लिए आक (मदार) की बंद कलियां, अडूसे के सूखे पत्ते, कालीमिर्च और सोंठ समान मात्रा में लेकर बारीक पीस लें तथा जरा सा पानी मिलाकर मटर के बराबर गोलियां बना लें। एक-एक गोली गर्म जल के साथ सुबह-शाम सेवन करें। यह बहुत सस्ता व लाभकारी उपाय है।

21. जोड़ों की जकड़न के के लिए पिप्पली, पिपलामूल, शुद्ध भिलावा प्रत्येक 20-20 ग्राम लेकर 300 ग्राम पानी में पकाएं। आधा पानी रह जाने पर इसे उतार कर पीएं। इससे काफी लाभ होता है।

22. खसखस का रस और मिश्री दोनों को समभाग में लेकर कूट पीस लें और कपड़छन चूर्ण बना लें। दस ग्राम यह चूर्ण गर्म दूध के साथ पीने से कमर का दर्द दूर होता है। 

डॉ. हनुमान प्रसाद उत्तम
आयुष्मान, प्लॉट नं. - 7, सी. ओ. डी. कालोनी रोड, कोयला नगर (बाई पास रोड), कानपुर नगर - 208011

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