हम सब जानते हैं कि आज के दौर का लाइफस्टाइल, खानपान, स्ट्रेस बीमारियों को न्योता देने वाला है लेकिन तय हमें करना है कि बीमारियों के साथ रहना है या फिर योग और आयुर्वेद को अपने जीवन में शामिल करके न सिर्फ अपने हार्ट बल्कि अपनी पूरी बॉडी को हेल्दी और फिट रखना है। दिल की बीमारियों के लक्षण है सीने में दर्द, सांस की तकलीफ, कमजोरी, पैर हाथ ठंडे पड़ना, असामान्य धड़कन, तेज हार्ट बीट, धीमी हार्ट बीट, घबराहट होना ।

दिल की बीमारी के बढ़ते मामलों की छानबीन से यह तथ्य भी सामने आया है कि आधे से अधिक दिल के रोग मानसिक तनाव, अवसाद, चिंता आदि की वजह से हो रहे हैं। चिंता मुक्त और प्रसन्न चित्त रह कर अधिकतर व्यक्ति हृदय रोगों से बच सकते हैं। दिल की बीमारी से बचने के लिए शरीर में कफ बढ़ाने वाले भोजन से परहेज करना चाहिए, विशेषकर शीत ऋतु में। आयुर्वेद को अपने जीवन में शामिल करना मतलब हर्बल तरीकों को अपनाना।

हृदय शरीर का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है। हमारा दिल एक मिनट में 60-90 बार धड़कता है। यह हर धड़कन के साथ शरीर में रक्त को धकेलता रहता है। हृदय को पोषण एवं ऑक्सीजन रक्त के द्वारा मिलता है, जो कोरोनरी धमनियों द्वारा प्रदान किया जाता है। आजकल हृदय रोग के मरीज आयुर्वेद के उपायों को अपनाने लगे हैं। हृदय रोगियों को नित्य योग और ध्यान करना चाहिए। सुबह की सैर भी फायदेमंद है। सोने से पहले एक गिलास दूध में छोटी पीपल, जायफल तथा हल्दी का चूर्ण मिला कर पिएं। सादा भोजन खाएं। जंकफूड, तैलीय और ठंडे पदार्थों को भूल जाएं। अधिक चिंता और गुस्सा ना करें। हृदय रोगियों को कुछ परहेज भी करने चाहिए जैसे कि अंडा, मांसाहार भोजन ना लें। धूम्रपान और शराब के सेवन से बचें। अधिक चाय व कॉफी ना पिएं। सॉस, तली सब्जियां, चिप्स, डिब्बाबंद भोजन, चीज, खोया, मलाई, मक्खन, नारियल का तेल और बिस्कुट का सेवन भी ना करें। मिठाई अधिक ना लें। रात को कम भोजन लें। अधिक मिर्च मसाले के सेवन से बचें। अंकुरित अनाज ज्यादा से ज्यादा लें। नमक चीनी कम खाएं। खाना चबा-चबाकर खाएं।

भोजन के साथ अदरक, लौंग, लहसुन, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, लौंग, तेजपत्ता, सेंधा नमक का उपयोग करना चाहिए। हृदय रोगों को कम करने में आयुर्वेद अत्यंत उपकारी और लाभकारी है। आयुर्वेद की दवाएं हृदय के मरीजों को पूर्ण रूप से ठीक करने में सहायक हैं। औषधियों में अर्जुन, दशमूल, आंवला, हरड़, भृंगराज, यष्टिमधु, गुग्गुल, शिलाजीत, पिपली, अजवाइन, मुस्ता, वच, लौंग, चंदन, इलायची, शतपुष्पा, तेजपत्ता, अभ्रक भस्म, मुक्ता पिष्टी, अकीक पिष्टी, प्रवाल पिष्टी आदि दवाएं डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही लें।

अर्जुन की छाल, ब्राह्मी, जटामांसी, गिलोय आदि से बनी दवा हृदय रोग में कारगर हैं। अर्जुन की छाल से बनी दवा व चाय हृदय संबंधी समस्याओं को दूर करने में सक्षम हैं। ब्राह्मी दिमाग को शांत और तेज रखता है और विशेष तौर पर महिलाओं के लिए उपयोगी है। जटामांसी इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है और धड़कन और मिर्गी के दौरे को नियंत्रित करने में लाभकारी है। अरंडी का तेल फायदेमंद है।

अर्जुन की तरह हृदय रोग के प्रबंधन में उपयोग की जाने वाली एक महत्वपूर्ण विश्लेषण-पुष्करमूल, बला, नागबला, सुंठी, पिप्पली और दशमूल, अलसी, हल्दी, लहसुन, दालचीनी, अनार, नींबू, अंगूर, तुलसी, हरड़, शहद, बादाम, जामुन, सेब का सिरका, लौकी भी फायदेमंद है। 

लौकी कल्प – रोजाना लौकी का सूप पिएं। सूप में काली मिर्च, अदरक और हल्दी डालें। लौकी की सब्जी फायदेमंद है। लौकी के जूस का सेवन करें।

अर्जुन का काढ़ा – अर्जुन की छाल 5 ग्राम, दालचीनी 2 ग्राम, 400 ग्राम पानी में उबाल लें। 100 ग्राम बचे तो दूध के साथ मिलाकर लें। इसे क्षीरपाक कहते हैं। क्षीरपाक महीने भर में हृदय रोग दूर करता है।

हाई ब्लड प्रेशर में – तीन ग्राम चूर्ण की मात्रा सुबह-शाम दूध के साथ लेने से हाई ब्लड प्रेशर की समस्या में आराम मिलता है।

अर्जुन की छाल की चाय – चायपत्ती की बजाय अर्जुन की छाल को पानी में उबालकर उसमें दूध और चीनी डालकर पीना हृदय रोग, हाई ब्लड प्रेशर व कोलेस्ट्रॉल में फायदेमंद है। इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है।

कोलेस्ट्रॉल – एक कप पानी में तीन ग्राम अर्जुन की छाल का चूर्ण डालकर उबालें। पानी की मात्रा आधी रहने पर इसे सुबह-शाम गुनगुना पी लें। इससे बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल कम होता है।

हृदय के पोषण के लिए – हृदय रोगों में अर्जुन की छाल को लेने की सबसे ज्यादा प्रचलित विधि ‘अर्जुन छाल क्षीर पाक‘ है। इसे 1-2 बार खाली पेट पीने से हृदय की धड़कन नियमित रहती हैं। साथ ही हृदय को पोषण मिलता है। इलाज के अलावा इसे हृदय रोगों से बचाव के लिए भी ले सकते हैं।

डॉ. भैरवी रविंद्र देशमुख
शासकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, नागपुर

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