हमारी कुछ आदते किडनी को बीमार बनाती हैं – जैसे साफ्ट ड्रिंक्स या सोडा ड्रिंक्स का अधिक सेवन। अधिक मीठे का सेवन करने से डायबिटीज होने पर ध्यान न देना, ठीक से दवा न लेना और न ही परहेज करना। खाने में नमक का अधिक सेवन करना। पेनकिलर का अधिक मात्रा में प्रयोग।
- ब्लड प्रेशर अधिक होने पर ठीक से इलाज न करना।
- पेशाब आने पर पेशाब न करना या रोककर रखना।
- शरीर को पूरा आराम न देना।
- पानी का सेवन काफी कम होना।
- अधिक मात्रा में शराब का सेवन करना।
इन सब आदतों के कारण हम अपनी किडनी को खराब करने में मदद करते हैं।
इन आदतों को सुधार कर हम उसे बचाने का प्रयास कर सकते हैं।
आजकल भागदौड़ भरी जिन्दगी व बदलाव ने मनुष्य को कई बीमारियों से जकड़ लिया है। इनमे अन्य बीमारियों के साथ-साथ किडनी खराब होने की समस्या भी तेजी से बढ़
रही है। यह न केवल बड़ों को ही प्रभावित कर रही है अपितु अब तो छोटे बच्चों मे भी किडनी खराब होने की आम चर्चाएं है। हमारे शरीर में गुर्दे एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शरीर की फिल्टिरिंग प्रणाली के रुप में कार्य करते हुए, वे पानी के लेवल को नियन्त्रित करने और मूत्र (पेशाब) के माध्यम से अपशिष्ट को समाप्त करने में मदद करते हैं। गुर्दे रक्तचाप, लाल रक्त कोशिकाओं के बनाने व शरीर में खनिज स्तर की को भी कंट्रोल करते हैं। लेकिन जब कभी- कभी गुर्दे ठीक तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं तो ठीक ढंग से अपना कार्य नहीं कर पाते है। प्रायः ये समस्याएं अनुवांशिक ही होती है। बच्चों में यह विकार जन्म से पूर्व ही होता है जो बाद में बच्चे के बड़े होने पर मूत्र पथ संक्रमण (यू.टी.आई) के रूप में प्रकट होता है जिससे बच्चों का विकास व रक्तचाप प्रभावित होते हैं।
गुर्दे (किडनी) शरीर के कचरा संग्रहण और उसके निपटान प्रणाली की भाँति होता है। नेफ्रोन नामक सूक्ष्म इकाइयों के द्वारा गुर्दे व्यक्ति द्वारा खाए गए भोज्य पदार्थ से अपशिष्ट उत्पादों व अतिरिक्त पानी को निकाल देते हैं। इससे हमारे शरीर में सोडियम, फास्फोरस और पोटेशियम रक्त प्रवाह में शरीर में मिल जाते हैं।
गुर्दे तीन महत्वपूर्ण हार्मोन पैदा करते हैं
- एरिथ्रोपोइटिन, रेनिन तथा विटामिन बी
इनके द्वारा लाल रक्त कोशिकाएं, रक्त चाप नियन्त्रण व शरीर की हड्डियों को स्वस्थ बनाते हैं। बच्चों और किशोरों में क्रोनिक किड्नी विफलता समस्या बढ़ जाती है तो गुर्दे की कार्यक्षमता में गिरावट आती हैं। कभी- कभी तो प्रत्यारोपण की भी आवश्कता पड़ जाती है।
बच्चो में किडनी विकार
बच्चों में किडनी की सबसे आम बीमारियां जन्म के समय ही होती हैं। इसमे पश्च मूत्र मार्ग वाल्व अवरोध के दौरान मूत्र मार्ग का संकुचन लड़को को ही प्रभावित करता है। इसका निदान सर्जरी द्वारा ही संभव होता है। कई बार मल्टीसिस्टिक किडनी रोग में बड़े सिस्ट विकसित हो जाते हैं तब किडनी ठीक से कार्य नहीं कर पाती है। ऐसी स्थिति में यूटीआई की जाँच कर इसका इलाज किया जाता है व बहुत कम ही किडनी को शल्य चिकित्सा से हटाया जाता है।
कभी-कभी बच्चे को अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होने पर गुर्दे की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है, जिसमें गुर्दे की पथरी, नेफ्रेटिस यानि गुर्दे में सूजन किसी भी अज्ञात कारण से हो सकता है। किडनी की समस्या व इसके लक्षण मूत्रपथ या गुर्दे की समस्याओं के संकेत अलग- अलग होते हैं जैसे- बुखार, आँख, चेहरे व टखनों के पास सूजन, पेशाब करते समय जलन या दर्द, बच्चों द्वारा लम्बे समय से बिस्तर गीला करना, पेशाब में खून आना व हाई ब्लड प्रेशर इत्यादि किडनी की कार्यप्रणाली के मूल्यांकन हेतु डॉक्टर किडनी बायोप्सी का भी उपयोग करते हैं। इससे किडनी की समस्या का सही व सटीक निदान होता है।
गुर्दे की बीमारी एक ऐसी स्थिति है जिसमें हमारी किडनी क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिससे रक्त सही ढंग से फिल्टर नहीं हो पाता है, इसकी वजह से शरीर में तरल व अपशिष्ट पदार्थों का जमावड़ा होने लगता है जिससे किडनी व अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मरीज को जूझना पड़ सकता है। वैसे देखा जाय तो बच्चों में किडनी की आम बीमारी नहीं है क्योंकि कई बच्चों में बीमारी के शुरुआती चरण में कोई भी लक्षण प्रकट नहीं होते हैं। किडनी की बीमारी हमें जीने के प्रति हताश जरूर बनाती है लेकिन सही समय व हमारे खान पान मे बदलाव लाया जाय तो हम काफी बेहतर व खुशहाल जिन्दगी जी सकते हैं।
बचाव के उपाय
♦ फल और कच्ची सब्जियों का सेवन अधिक करें। प्रतिदिन 8 से 10 गिलास पानी पिएं।
♦ अंगूर का सेवन करने से किडनी से फालतू यूरिक एसिड निकलने में सहायता मिलती है।
♦ खाने में नमक, सोडियम और प्रोटीन की मात्रा का सेवन कम करें।
♦ गहरे हरे रंग की सब्जियों का सेवन अधिक करें क्योंकि गहरे हरे रंग की सब्जियों में मैग्नेशियम की मात्रा अधिक होती है और मैग्नेशियम किडनी को सही काम करने में मदद करता है।
♦ न्यूट्रीशन से भरपूर खाना रेग्यूलर एक्सरसाइज और वजन पर कंट्रोल करने से किडनी की बीमारी की आशंका को कम किया जा सकता है।
♦ 25 साल के बाद साल में कम से कम एक बार ब्लड प्रेशर और शुगर की जांच अवश्य करवाएं। अगर फैमिली हिस्ट्री है तो कम उम्र में ही टेस्ट कराएं।
गलत लाइफ स्टाइल और बुरी आदतों को छोड़ा जाये तो किडनी के साथ कई अन्य प्रमुख बीमारियों से भी आप निजात पा सकते है।