गलत धारणा 1: किडनी के सभी रोग गंभीर होते हैं।
हकीकत : नहीं, किडनी के सभी रोग गंभीर नहीं होते हैं। तुरंत निदान तथा उपचार से किडनी के बहुत से रोग ठीक हो जाते हैं।

गलत धारणा 2 : किडनी फेल्योर में एक ही किडनी खराब होती है।
हकीकत : नहीं, दोनों किडनी खराब होती है। सामान्यतः जब किसी मरीज की एक किडनी बिल्कुल खराब हो जाती है, तब भी मरीज को किसी प्रकार की तकलीफ नहीं होती है। खून में क्रीएटिनिन और यूरिया की मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। जब दोनों किडनी खराब हो जाए, तब शरीर का अनावश्यक कचरा जो कि किडनी द्वारा साफ होता है, शरीर से नहीं निकलता है। जिससे खून में क्रीएटिनिन और यूरिया की मात्रा बढ़ जाती है। खून की जाँच करने पर क्रीएटिनिन एवं यूरिया की मात्रा में वृद्धि किडनी फेल्योर दर्शाता है।

गलत धारणा 3 : किडनी के किसी भी रोग में शरीर में सूजन आना किडनी फेल्योर का संकेत है।
हकीकत : नहीं, किडनी के कई रोगों में किडनी की कार्य प्रणाली पूरी तरह से सामान्य होते हुए भी सूजन आती है, जैसे कि नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम में होता है।

गलत धारणा 4 : किडनी फेल्योर के सभी मरीजों में सूजन दिखाई देती है।
हकीकत : नहीं, कुछ मरीज जब दोनों किडनी खराब होने के कारण डायालिसिस कराते हैं, तब भी सूजन नहीं होती है। संक्षिप्त में किडनी फेल्योर के अधिकांश मरीजों में सूजन दिखाई देती है, परन्तु सभी मरीजों में नहीं।

गलत धारणा 5 : अब मेरी किडनी ठीक है, मुझे दवाई लेने की जरूरत नहीं है।
हकीकत : क्रोनिक किडनी फेल्योर के कई मरीजों में उपचार से रोग के लक्षणों का शमन हो जाता है। ऐसे कुछ मरीज निरोगी होने के भ्रम में रहकर अपने आप ही दवाई बंद कर देते हैं, जो खतरनाक साबित हो सकता है। दवा और परहेज के अभाव से किडनी जल्द खराब होने और कुछ ही समय में मरीज को डायलिसिस का सहारा लेने का भय रहता है।

गलत धारणा 6 : खून में क्रीएटिनिन की मात्रा थोड़ी अधिक हो लेकिन तबियत ठीक रहे, तो चिन्ता अथवा उपचार की जरूरत नहीं है।
हकीकत : यह बहुत ही गलत ख्याल किडनी फेल्योर के मरीज में क्रीएटिनिन है। क्रोनिक की मात्रा में थोडी बढ़त तभी देखने को मिलती है, जब दोनों किडनी की कार्यक्षमता में 50 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई हो। जब खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 1.6 मिली ग्राम प्रतिशत से ज्यादा हो, तब कहा जा सकता है कि दोनों किडनी 50 प्रतिशत से ज्यादा खराब हो गई है। इस अवस्था में लक्षणों के अभाव से कई मरीज उपचार और परहेज के प्रति लापरवाह रहते हैं। लेकिन इस अवस्था में उपचार और परहेज से सबसे अधिक फायदा होता है। ऐसे समय नेफ्रोलॉजिस्ट (किडनी रोग विशेषज्ञ) के द्वारा दी गई दवा, लम्बे समय तक किडनी की कार्यक्षमता को सलामत बनाये रखने में सहायक बनती है।

सामान्यतः खून में क्रीएटिनिन की मात्रा जब 5.0 मिली ग्राम प्रतिशत हो जाए तब दोनों किडनी 80 प्रतिशत तक खराब हो चुकी होती है। इस अवस्था में किडनी में खराबी काफी ज्यादा होती है। इस अवस्था में भी सही उपचार से किडनी को मदद मिल सकती है। लेकिन हमें पता होना चाहिए कि इस अवस्था में उपचार से किडनी को मिलनेवाले सही फायदे का अवसर हमने गंवा दिया है। जब खून में क्रीएटिनिन की मात्रा 8.0 से 10.0 मिली ग्राम प्रतिशत हो, तब दोनों किडनी बहुत ज्यादा खराब हो गई होती है। ऐसी स्थिति में दवाई, परहेज एवं उपचार से किडनी को पुनः सुधारने का अवसर हम लगभग खो चुके होते हैं। अधिकांश मरीजों को ऐसी हालत में डायलिसिस की जरूरत पडती है।

गलत धारणा 7: एक बार डायलिसिस कराने पर बार-बार डायलिसिस कराने की आवश्यकता पडती है।
हकीकत : नहीं। एक्यूट किडनी फेल्योर में मरीजों को कुछ डायलिसिस कराने के बाद, किडनी पुनः पूरी तरह से काम करने लगती है और फिर से डायलिसिस कराने की जरूरत नहीं रहती है। गलत धारणाओं की वजह से डायलिसिस में विलंब करने पर मरीज की मृत्यु भी हो सकती है।

वैसे क्रोनिक किडनी फेल्योर के अंतिम चरण में तबियत अच्छी रखने के लिए नियमित डायलिसिस अनिवार्य है।

संक्षेप में, कितनी बार डायलिसिस कराने की जरूरत है, वह किडनी फेल्योर के प्रकार पर निर्भर है।

गलत धारणा 8 : किडनी प्रत्यारोपण में स्त्राी और पुरूष एक दूसरे को किडनी नहीं दे सकते हैं।
हकीकत : नहीं, ऐसा नहीं है। एक जैसी रचना के कारण पुरूष स्त्री को और स्त्री पुरूष को किडनी दे सकते हैं।

गलत धारणा 9 : किडनी देने से तबियत और रतिक्रिया (Sex) पर विपरीत असर पडता है।
हकीकत : नहीं, एक किडनी के साथ सामान्य दिनचर्या और रतिक्रिया में कोई अड़चन नहीं आती है।

गलत धारणा 10 : किडनी प्रत्यारोपण के लिये, किडनी खरीदी जा सकती है।
हकीकत : नहीं, कानूनी तौर पर किडनी बेचना और उसे खरीदना दोनों अपराध हैं, जिसके लिए जेल भी हो सकती है। इसके अलावा खरीदी हुई किडनी के प्रत्यारोपण में असफल होने की संभावना ज्यादा होती है एवं प्रत्यारोपण के बाद दवा का खर्च भी काफी ज्यादा होता है।

गलत धारणा 11: किडनी सिर्फ पुरूषों में होती है, जो दोनों पैरों के बीच थैली में होती है।
हकीकत : पुरूष और स्त्री दोनों में किडनी की रचना एवं आकार एक समान होता है, जो पेट के पीछे और उपरी भाग में रीढ़ की हड्डी के बगल में दोनों तरफ होती है। पुरूषों में पैरों के बीच थैली में गोली के आकार के अंग को वृषण (टेस्टीज) कहते हैं, जो प्रजनन का एक महत्वपूर्ण अंग है।

गलत धारणा 12 : मेरा खून का दबाव सामान्य है, इस लिये अब मुझे दवा लेने की जरूरत नहीं है। मुझे कोई तकलीफ नहीं है, तो मैं व्यर्थ में दवा क्यों लूँ?
हकीकत : उच्च रक्तचाप से पीड़ित मरीजों में खून का दबाव काबू में आने के बाद, कई मरीज ब्लडप्रेशर की दवा बंद कर देते हैं। कुछ मरीजों में खून का दबाव ज्यादा होने के बावजूद कोई तकलीफ नहीं होती है। इसलिये वे दवा का सेवन बन्द कर देते हैं। यह गलत धारणा है। खून के ऊँचे दबाव के कारण दीर्घ समय में किडनी, हृदय, तथा दिमाग पर इसका गंभीर असर हो सकता है। ऐसी स्थिति को टालने के लिए, कोई तकलीफ नहीं होने के बावजूद, उचित तरिके और समय से दवा का नियमित सेवन एवं परहेज करना अत्यंत जरूरी होता है।

डॉ. संजय पंड्या
कंसल्टिंग नेफ्रोलॉजिस्ट, राजकोट

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