गलत खानपान की आदतें, सर्द हवामान, अधिक गरम खाद्य पदार्थ, टिन फूडस् प्रक्रिया किये हुए रेडीमेड पदार्थों का अधिक सेवन, रासायनिक खाद्य तथा कीटकनाशकों का बहुत ही उपयोग, अधिक चाय का सेवन, पानी कम होने से, अधिक नमक, मांसाहार खाने से, प्रिझरवेटीव का उपयोग, पीने के पानी में बहुत क्लोराईड होने, आहार में जीवनसत्व बी 6 की कमी से, खूप अधिक व्यायाम करने से पथरी होती है।
किडनी की बीमारी में नीचे दिये पोषक तत्वों का विशेष महत्व होता है।
प्रोटीन्स
शरीर की बढ़ौती के लिए शरीर का जो क्षय होता है उसकी पूर्ति करने के लिए नई पेशियों, हार्मोन्स, एन्झाईम्स, एंटीबॉडीज़, हड्डियां, मांसपेशी खून की निर्मिती के लिये प्रोटीन्स की बहुत अधिक आवश्यकता होती है। परंतु जितने प्रोटिन्स आवश्यक होते हैं उतने ही लेने चाहिये। सभी मांसाहार, अंडे, मछली, दूध, दालें, द्विदल तेल बीजों में भरपूर प्रोटीन्स रहते है। उन्हें सही मात्रा में लेने चाहिये। प्रोटीन्स से भी शरीर में ऊर्जा तैयार होती है। हम सभी को हर 3 घंटे में प्रोटीन्स की आवश्यकता जन्म से लेकर मृत्यु तक होती है।
किडनी के विकारो में प्रोटीन्स का आहार में प्रमाण कम करना चाहिये परंतु उन्हें बंद कभी ना करें। कम से कम पूर्ण उत्तम दर्जा के 20-40 ग्रॉम प्रोटीन्स की शरीर को रोज ही आवश्यकता होती है। हर समय के खाने में नाश्ता, भोजन (दो-दो बार) कम भी हो तो भी पूर्ण अच्छे प्रोटीन्स होने ही चाहिये। जो दूध पावडर, पनीर, अनाज, दाल, दूध, दही, छाछ, अंडा, मछली इससे प्राप्त होते है। साथ में अच्छे वाले कार्बोहायड्रेटस का सेवन करें जैसे आलू, शकरकंद, गेंहू, चावल, ज्वारी, बाजरा, शहद, गुड, फल इत्यादि
कॅलरीज
प्रोटीन्स कम करने पर उसके अलावा अच्छे-अच्छे ऊपर दिये हुए कार्बोहायड्रेट्स का सेवन ऊर्जा के लिये महत्व रखता है जैसे अनाज, फल, कंद इत्यादि।
सोडियम
शरीर के द्रव तथा रक्तदाब पर सोडियम का परिणाम होता है। इस कारण नमक के सेवन पर प्रतिबंध होना चाहिये। नमक के साथ जिन खाद्य पदार्थो में सोडियम अधिक होता है वे भी टालने चाहिये जैसे टिन फूडस्, प्रक्रिया किये हुए खाद्य पदार्थ, चीन फास्ट फुडस, पापड़, अचार, मांसाहार, अंडा इत्यादि।
फॉस्फोरस
फॉस्फोरस से हड्डियों में मजबूती आती है। हमें आरोग्य भी प्राप्त होता है मगर वह अधिक लेने पर खुजली हो सकती है तथा हड्डियों में वेदना भी । मूत्रपिंड के कार्य में बाधा आने पर खून में फॉस्फेट का प्रमाण बढ़ता है। हड्डियां कमजोर होती है। तब फॉस्फोरस युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन ना करें या कम करे जैसे बीन्स, मटर, मूंगफली, शीतपेय, मछली, चीज, मटन, चिकन, अंडा या फॉस्फोरस को बांधने वाले खाद्य पदार्थ जैसे कॅल्शियम कार्बोनेट का सेवन करें।
पोटेशियम
यह क्षार मज्जातंतू तथा स्नायूओें को कार्यक्षम रखता है। अच्छे स्वास्थ्य के लिये वह आवश्यक है। शरीर में इसका प्रमाण बहुत अधिक या एकदम ही कम होने पर हृदय की गति पर इसका परिणाम हो सकता है। हृदय बंद भी पड़ सकता है। किडनी के रोगियों ने इस पर ध्यान रखना चाहिये। केला, संतरा, हरी सब्जी या बीन्स, तेलबीज, आलू, मटर, शकरकंद, बीट, गाजर, खजूर, अंजीर, खरबूज, तरबूज, नारियल पानी इन सभी में पोटॅशियम क्षार भरपूर रहता है। सभी सब्जियों, फलों में भी वह होता है। सब्जियां काटने के बाद वे पानी में डुबोकर बहुत देर तक रखने पर पोटॅशियम पानी में घुलकर निकल जाता है। मसालेदार पदार्थों में भी पोटॅशियम रहता है।
द्रव पानी
कुछ किडनी के रोगियों को इस पर भी प्रतिबंध रखना पड़ता है। जब रोगियों में मूत्र का प्रमाण कम हो जाता है। शरीर में पानी जमने लगता है। सूजन आती है एवम् रक्तदाब बढ़ता है, सांस फूलती है। इस कारण आहार में पानी की मात्रा कम करनी होती है। जैसे पानी, सूप, रस, दूध, छाछ जितनी मूत्र की मात्रा होती है उसमें 500 मि.ली. अधिक पानी तथा द्रव पदार्थ लेने चाहिये। उससे अधिक ना हो।
क्षार
सोडियम, पोटेशियम, क्लोराईड, कॅल्शियम, मॅग्नेशियम, फॉस्फोरस तथा अन्य क्षार हमारे शरीर में भरपूर मात्रा में रहते है। एक 60-70 किलो वजन के व्यक्ति में लगभग 3-4 कि. क्षार रहते है। उसमें सबसे अधिक प्रमाण कॅल्शियम का रहता है। कुछ क्षार अत्यंत सूक्ष्म प्रमाण में रहते है। उन्हें ट्रेस एलिमेंटस (Trace Elements) कहते है। ये 30ग्रॅाम तक रहते है और उनकी शरीर को आवश्यकता बहुत कम रहती है परंतु रहती मात्र है। जिस तरह सभी जीवनसत्वों का एक दूसरे से गहरा संबंध रहता है उसी तरह सभी क्षारों का होता है।
मूत्रपिंड के रोग
1. एक्यूट किडनी फेलियर (Acute Renal Failure) – इसमें मूत्र का प्रमाण एकदम घटता है। प्रोटीन्स के चयापचय के बाद शरीर में जो युरिया और अनावश्यक घटक तैयार होते है वे विसर्जित नहीं होते। खून में क्रिएटिनीन और युरिया बढ़ता है। उच्च रक्तदाब बढ़ता है। भूख नहीं लगती, उलटियां होती है। ऐसे समय में दालें, दूध, अंडा, तेलबीज कम लेने चाहिये। आहार में अनाज, फल भरपूर हो। मूत्र जितना होता है उससे 500 मि. ली. अधिक पानी पीना चाहिये।
2. एक्यूट ग्लोमेरुलो नेफ्रायटिस (Acute Glomerulo Nephritis) – इसमें मूत्र में लाल रक्तकण जाते है। शरीर पर सूजन होती है। मूत्र का प्रमाण कम होता है। उच्च रक्तदाब की संभावना बढ़ती है। यह सब छोटे बच्चों में अधिक नजर आता है। इसमें हृदय की गति बढ़ती है, सांस फूलती है। शरीर में पानी तथा सोडियम जमने लगता है। इसमें प्रोटीन्स (दालें, अंडा, मछली, तेलबीज, दूध) कम लेना चाहिए। आहार में सोडियम, पोटॅशियम के खाद्य पदार्थ होने चाहिये। द्रवों का भी नियंत्रण जरूरी होता है। सभी संतुलित आहार द्वारा ही लेना चाहिये।
3. नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम (Nephrotic syndrome) – इसमें शरीर पर सूजन आती है। मूत्र से भरपूर प्रोटीन्स जाते है। इसमें कोलेस्टेरॉल बढ़ता है। खून में अल्बूमीन भी बढ़ता है। इसमें शरीर का वजन घटता है। फॅटी लिव्हर भी हो सकता है। इन्फेक्शन का डर रहता हैं। इसमें भरपूर कॅलरीज की भरपूर प्रोटिन्स की आवश्यकता होती है। मूत्रद्वारा जितना अल्बूमीन बाहर निकलता है उतने अधिक प्रोटीन्स संतुलित आहार के अलावा देने चाहिये। अधिक कॅलरीज के लिये कार्बोहायड्रेटस, अनाज देने चाहिये। स्निग्ध पदार्थ के लिये तेल, घी, मक्खन कम प्रमाण में जैसे 3 चम्मच तेल और 1 चम्मच घी देना चाहिये। सोडियम बहुत कम अर्थात नमक कम से कम आधा चम्मच लें। पोटॅशियम आहार द्वारा अधिक लेना चाहिए (फल, सब्जी)
4. क्रोनिक रीनल फेल्युअर (Chronic Renal Failure) – ऊपर दिये हुए तीन ही रोग बाद में क्रानिक हो जाते है। किडनी स्टोन्स, युरिनरी ट्रॅक्ट इन्फेक्शन, उच्चदाब, पॉलिसिस्टीक किडनी होती है। हड्डियों में वेदना, खून में फॉस्फेट ओर कॅल्शियम बढ़ता है। पाईल्स का भी डर रहता है। इनके आहार में विविधता होनी चाहिए। प्रोटीन्स और सोडियम कम हो।
युरिक एसिड, सोडियम युरेट के स्टोन्स, पथरी ये गाऊट में रहते है। इसलिए तब मूत्र अल्कालाईन होने के लिये ध्यान देना चाहिये। इसलिये मांसाहार, अंडा, चिकन को टालना चाहिये। आलू, साग, सब्जी, शकरकंद, फलों का सेवन अधिक करना चाहिये। साथ में गाजर का रस लाभदायी होता है। रागी, साबूदाना, शहद का सेवन करें।
कॅल्शियम कार्बोनेट, ऑक्झलेट की पथरी के रूग्ण समाज में बहुत नजर आते है। इसलिये ऑक्झलेट कॅल्शियम होनेवाले पदार्थ टालने चाहिये। इन क्षारों का शरीर में कैसे विनियोग उपयोग होता है। इस पर अधिक ध्यान देना जरूरी है। इस कारण ही संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। आहार में 2 मुख्य भोजन, 2 बार नाश्ते ओर 2 बार दूध हो। परंतु कम प्रमाण में अनाज, दाले, दूध, सब्जी, फल, तेल, घी सभी मिलना चाहिये। इसमें एन्टासिड, पाचन, डायरिया की दवाई कतई ना लें।
क्या खाएं
अधिक गेहूं, मांसाहार, ककड़ी, तली हुई चीजें, पापड़, अचार, चाय, कॉफी, शराब, बिअर, सोडा, शीतपेय, मछली, पालक, हरे टमाटर, बैंगन, भिंडी, बीट न खायें। स्ट्रॉबेरी, आलू, बेर, अंजीर, किशमिश, मुनक्का, सुखा मेवा, दूध, टॉफी, मक्खन, चॉकलेट, अधिक नमक, शक्कर आदि न खायें।
ऑक्झालिक एसिड फल, सब्जियों के छिलको, नुडल्स, चॉकलेट, कोला, हरी पत्तोंवाली सब्जी, आंवला, चाय, मूंगफली में अधिक होता है।
रोज भरपूर ’क’ जीवनसत्व लेना चाहिये। पथरी पिघलने के लिए वह मदद करता है। जैसे नींबू, सलाद, फल,मैग्नेशियम होनेवाले खाद्य पदार्थ भी पथरी को पिघलने में मदद करते है। जैसे लाल कुम्हडे के बीज, गव्हांकुर (Wheat Grass), साग, जीवनसत्व 6 की गोलियां।
कॅल्शियम या अन्य जीवनसत्वों की तैयार गोलियां डॉक्टर की सलाह बिना ना लें।
अपने मन से कोई भी दवाइयां ने लें। एंटासिड की गोलियों में भी कॅल्शियम रहता है। वह अधिक लेने पर जीवनसत्चव 12 की कमी निर्माण करते है। आहार में भरपूर जीवनसत्व ’अ’ गाजर, मोसंबी, संतरा, पपीता, लाल कुम्हडा, छाछ, दही लेना चाहिए।
किडनी के रूग्णों ने आहार तज्ञ से अपनी आहार तालिका बना लेनी चाहिये।
गोखरू का पानी रोज 1-2 कटोरी पीना चाहिये।