महिलाएं परिवार का आधार होती है। घर के सभी सदस्यों का ध्यान वे भली भांति रखती है। परिवार के सदस्यों का ध्यान रखते-रखते वे स्वयं को भूल जाती है क्योंकि अक्सर महिलाएं घर के कामों में व्यस्त रहती हैं, इसलिए वे छोटी-मोटी स्वास्थ्य समस्याओं को नजरअंदाज कर देती है, जिसके परिणामस्वरूप बीमारियों का पता देर से चलता है। अक्सर उनके स्वास्थ्य को महत्व नहीं दिया जाता है। महिलाओं को प्रभावित करने वाली मूत्रा प्रणाली की कुछ सामान्य बीमारियाँ हैं।

किडनी रोग पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक प्रभावित करते हैं। इसका कारण हैं शारीरिक रचना के साथ-साथ शारीरिक क्रिया का भिन्न होना। महिलाओं में मूत्र संक्रमण और क्रोनिक किडनी रोग का खतरा अधिक होता है। कुछ बीमारियाँ विशेष रूप से महिलाओं में होती हैं जैसे गर्भावस्था में उच्च रक्तचाप और तीव्र गुर्दे की विफलता और गर्भावस्था से प्रेरित मधुमेह। महिलाओं में क्रोनिक किडनी रोग (CKD) की व्यापकता 14% है जबकि पुरुषों में यह 12% है। ल्यूपस जैसी बीमारियाँ पुरुषों की तुलना में महिलाओं को दस गुना अधिक प्रभावित करती हैं। इनका महिलाओं के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ता है।

स्त्रियों में मूत्रविकार

बार-बार पेशाब होना, बार-बार इंफेक्शन होना, पेशाब को कंट्रोल न रहना (Incontinence) खांसी-छिंकने से पेशाब होना, पेशाब की नली सिकुड़ना  (Urethral stricture), स्त्रियों में Urethra (मूत्रनलिका) छोटी होने से उनमें मूत्रमार्ग का इंफेक्शन अधिक मात्रा में पाया जाता है।

मूत्र संक्रमण (UTI)

महिलाओं में मूत्रमार्ग की लंबाई छोटी होने के कारण मूत्र संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है। यौन रूप से सक्रिय महिलाओं में बार-बार मूत्र संक्रमण होने का खतरा रहता है। यह संक्रमण किडनी तक फैल सकता है, जिससे तेज बुखार, कमर में दर्द और यहां तक कि किडनी फेल भी हो सकती है। गर्भावस्था के दौरान मूत्र संक्रमण गर्भ में पल रहे बच्चे को प्रभावित कर सकता है जिसके परिणामस्वरूप विकास मंदता, समय से पहले प्रसव या यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है। व्यक्तिगत स्वच्छता, पर्याप्त तरल पदार्थ पीना और शीघ्र चिकित्सा देखभाल ऐसी परेशानी को रोक सकती है।

गर्भावस्था से संबंधित किडनी की समस्याएं

गर्भावस्था के दौरान उच्च रक्तचाप और मूत्र में प्रोटीन का रिसाव अशुभ संकेत हैं। सभी गर्भवती महिलाओं को संक्रमण और प्रोटीन के लिए अपने मूत्र की जांच करानी चाहिए। बच्चे के जन्म के बाद अत्यधिक रक्तस्राव हो सकता है तीव्र गुर्दे की विफलता का कारण बनता है, जो गुर्दे के कार्य को स्थायी रूप से प्रभावित कर सकता है।

नीम-हकीम द्वारा कराए गए गर्भपात से गंभीर संक्रमण और अत्यधिक रक्तस्राव हो सकता है, जिससे न केवल किडनी बल्कि मां की जान को भी खतरा हो सकता है। इस तरह के अवैध सेप्टिक गर्भपात अक्सर अवांछित गर्भधारण, विशेषकर अविवाहित माताओं में किए जाते हैं।

गुर्दे की बीमारी से पीड़ित महिलाओं के गर्भवती होने की संभावना कम होती है और अगर वे गर्भवती हो भी जाती हैं तो सहज गर्भपात, विकास मंदता या भू्रण की मृत्यु बहुत आम है।

गर्भावस्था में मधुमेह

21% महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान मधुमेह हो जाता है जिसे Gestational Diabetes कहा जाता है। यह डायबिटीज़ प्रसव के बाद बना रह सकता है या गायब हो सकता है और कुछ वर्षों के अंतराल के बाद फिर से प्रकट हो सकता है। 

मधुमेह से पीड़ित महिलाओं में मूत्र संक्रमण, उच्च रक्तचाप और क्रोनिक किडनी रोग होने की संभावना अधिक होती है।

ल्यूपस से प्रभावित किडनी

ल्यूपस नामक बीमारी में शरीर हानिकारक प्रोटीन का उत्पादन करता है, जो रोगी के शरीर के खिलाफ ही काम करता है। त्वचा, जोड़, आँखें, हृदय, गुर्दे और मस्तिष्क भी ल्यूपस से प्रभावित हो सकता है।

ल्यूपस के लिए शीघ्र उपचार शुरू करने और जीवन भर फालोअप की आवश्यकता होती है। अगर उचित इलाज न कराया जाए तो किडनी बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकती है।

इस प्रकार महिलाएं स्वास्थ्य का ध्यान अवश्य रखें जैसे पौष्टिक भोजन का सेवन, नियमित पंचकर्म व व्यायाम करें, तनाव से दूर रहें, मेडिटेशन प्रतिदिन करें। पानी और तरल पदार्थों का सेवन करें। बिना डॉक्टर के परामर्श से दवाएं न लें। किडनी रोग से बचने के लिए समय-समय पर अपने स्वास्थ्य की जांच- बी. पी., ब्लड शुगर व किडनी फंक्शन टेस्ट करवाती रहें।

डाॅ. अंजू ममतानी
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
238, गुरु हरिक्रिशन मार्ग,
जरीपटका, नागपुर - 14

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