विज्ञान के नित-नए अविष्कारों ने इंसान को चकाचैंध कर दिया है। चिकित्सा जगत में तो अजुबे अविष्कार हुए हैं, लग-अलग यंत्र, मशीनें, अनेक औषधियां और न जाने कितनी सुविधाएं पर फिर भी रोग का तांडव कम नहीं हुआ है बल्कि अनेक व्याधियों ने इंसान को अपने पंजे  में जकड़ रखा है। आधुनिक जीवनशैली के कारण आज स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याओं का सामना मनुष्य को करना पड़ रहा है जैसे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, डायबिटीज़ आज के संघर्षशील युग की देन है । इसके अलावा आज हमें हायपरकोलेस्ट्राल (Hypercholestrol) के भी अधिकांश रोगी मिलते हैं, इसका कारण है हमारे आहार-विहार में विषमता क्योंकि हमें ऐशो आराम की जिंदगी पंसद है, हम श्रम से कतराते हैं, ऐसी जिंदगी का ही परिणाम है – हायपरकोलेस्ट्राल ।

कोलेस्ट्राल एक प्रकार का स्नेह (चिकनाई) पदार्थ है, जो रक्त में उपस्थित रहता है। यह पदार्थ विशिष्ट स्तर पर शरीर के लिए आवश्यक रहता है। उस स्तर से यदि अधिक बढ़ता है तो वह हायपरकोलेस्ट्राल कहलाता है, जो कि स्वास्थ्य के लिए घातक है। हृदयरोग को बढ़ानेवाला यह कोलेस्ट्राल जिसे नियंत्रण में रखना शरीर के लिए अत्यावश्यक है। इसकी अधिक मात्रा हृदय, मस्तिष्क, धमनियों को जितना नुकसान पहुँचाती है, वैसे ही इसकी प्राकृत मात्रा शरीर को स्वस्थ रखने में सक्षम रहती है। सभी प्राणियों के कोषों में कोलेस्ट्राल होता है व अधिकांशतः यह नाडीसंस्थान में रहता है। इसका स्त्राव पित्तरस (बाइल) में होता है व यकृतीय सवंहन में यह सहभागी होता है। चिकित्सीय दृष्टि से इसका अत्यंत महत्व है। शरीर में निर्मित सभी प्रकार के स्टेराइड हॉर्मोन का भी आवश्यक अंग है।

कैसे होती है कोलेस्ट्राल की निर्मिती ?

कोलेस्ट्राल की निर्मिती दो प्रकार से होती है। मानवीय शरीर में मुख्यतः यकृत(लीवर) दिन में 1000मि.ग्रा कोलेस्ट्राल की निर्मिती करता है। दूसरा प्रकार अर्थात खाद्य पदार्थां से प्राप्त होनेवाला कोलेस्ट्राल जैसे – घी, तैल, मक्खन जैसे स्नेह पदार्थ, अंडे का पीला भाग, मांस, मटन व दुग्ध युक्त पदार्थ। अतः शरीर के लिए आवश्यक कोलेस्ट्राल की निर्मिती शरीर के द्वारा स्वयं ही हो जाती है। आहार से प्राप्त कोलेस्ट्राल और अतिरिक्त फैट यकृत में जमा हो जाते हैं।

कोलेस्ट्राल मुख्यतः 5 प्रकार के होते हैं और मनुष्य शरीर के महत्वपूर्ण घटक हैं। इन सभी प्रकार के कोलेस्ट्राल को मिलाकर लिपिड प्रोफाइल (स्पचपक च्तवपिसम) कहा जाता है, जिनकी रक्त में प्राकृत मात्रा निम्नलिखित है-

  1. टोटल कोलेस्ट्राल(Total Cholesterol)- 200mg/dl से कम 
  2. ट्राय ग्लिसराईड (Triglycerides)- 170mg/dl से कम
  3. वी.एल.डी.एल (Very Low Density Lipoproteins) – 25-40 mg/dl
  4. एल. डी. एल. (Low Density Lipoproteins) 160mg/dl से कम
  5. एच.डी.एल.(High Density Lipoproteins) 30-60 mg/dl

उपरोक्त प्रकारों में से एल. डी. एल कोलेस्ट्राल हृदय के लिए घातक होता है। इसके बढ़ने से हार्ट अटैक की संभावना अधिक होती है। एच. डी. एल. कोलेस्ट्राल हृदय के लिए पोषक (Heart Protective) होता है। अध्ययन के द्वारा ज्ञात हुआ है कि व्यक्ति का टोटल कोलेस्ट्राल को कम व एच. डी. एल. को ज्यादा रखने हेतु आहार पर नियंत्रण आवश्यक है।

रक्त में उपस्थित कोलेस्ट्राल को बढ़ाने वाले घटक

  1. अनुवांशिक – कुछ व्यक्ति में कोलेस्ट्रॉल का बढ़ता प्रमाण आनुवांशिक रूप से होता हैं।
  2. धूम्रपान – धूम्रपान के कारन एच. डी. एल. कोलेस्ट्रॉल का  प्रमाण कम होता है। एच.डी.एल. कम होने की वजह से हृदय रोग होने का खतरा रहता है।
  3. मद्यपान – उचित मात्रा में  मद्यपान करने से एच. डी. एल.  कोलेस्ट्राल बढ़ता अवश्य है परंतु मद्य की अति मात्रा घातक सिद्ध होकर हृदयरोग का खतरा बढ़ाती है।
  4. व्यायाम – नियमित रूप से प्रातः भ्रमण, जॉगिंग, तैरना  योगाभ्यास करने से हृदय व फुफ्फुस की कार्यक्षमता बढ़ती है व व्यक्ति का वजन नियंत्रण में रहता है। जिससे हृदय विकार होने की संभावना कम होती है। अतः व्यायाम न करने से कोलेस्ट्राल बढ़ने की आशंका रहती है।
  5. मानसिक तनाव – तनावग्रस्त व्यक्ति का कोलेस्ट्रॉल  बढ़कर हृदय रोग की आशंका होती है।
  6. आयु व लिंगानुसार – प्राकृतिक रूप से आयुनुसार कोलेस्ट्राल का प्रमाण बढ़ता है लेकिन स्त्रियों में रजोनिवृत्ति के पश्चात कोलेस्ट्राल का प्रमाण कम होता है।
  7. आहार – डिब्बा बंद आहार, जंक फ़ूड, फ़ास्ट फ़ूड, वड़ा, समोसा, मांसाहार, मिश्रित मिठाई इत्यादि रक्तगत कोलेस्ट्राल व ट्रायग्लिसराइड को बढ़ाते है। इसके विपरीत फल और सब्जियां, मेथी दाना, अंकुरित अन्न, लहसुन कोलेस्ट्राल को नियंत्रित रखने में सहायक है। हरी सब्जियों और फल में रेशे की मात्रा अधिक होती है। इन सब्जियों को तैल में पकाकर नहीं खाना चाहिए। इससे सब्जी के पोषक गुण कम हो जाते है।

कोलेस्ट्राल का अंतर्भाव लिपिड (Lipid) में होता है। लिपिड के एकत्रीकरण, संवहन, ट्रांसपोर्ट व उत्सर्जन में विकृति होने पर अनेक व्याधियां उत्पन्न होती है जैसे मोटापा, यकृतप्लीहा का बढ़ना, एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) सबसे महत्वपूर्ण है, जो कि लिपिड के एकत्रीकरण से होता है।

दरअसल रक्त में लिपिड्स (वसा) बढ़ने को हायपर लिपिडीमिया (Hyper Lipidemia) कहा जाता है और जब रक्त में सामान्य मात्रा से ज्यादा होता है तब एथिरोमा बनने की संभावना भी बढ़ जाती है। अब ये लिपिड्स क्या होते हैं, रक्त में तीन प्रकार के लिपिड्स होते हैंः-

  1. ट्राइग्लिसराइड्स (Triglycerides),
  2. फास्फोलिपिड्स (Phospholopids) और
  3. कोलेस्टेरॉल  (Cholesterol)

ये प्रोटीन के साथ जुड़कर रक्त में विचरण करते हैं। लिपिड्स कोशिकाओं की संरचना के महत्वपूर्ण घटक तत्व होते हैं और कई जैविक क्रियाएं सम्पन्न करते है।

एथेरोस्क्लेरोसिस अर्थात धमनियों में कोलेस्ट्राल जमा होने से कड़कपन आ जाता है फलस्वरूप धमनियों का मार्ग संकरा हो जाता है जिससे धमनियों में स्थित रक्त हृदय, मस्तिष्क व शरीर के अन्य भागों में कम पहुंचता है। यह रूकावट हृदय की धमनियों में होने से छाती में दर्द (एन्जाइना) या कभी-कभी हार्ट अटैक भी होता है। यह रूकावट नाडीवह संस्थान याने मस्तिष्क में होने पर स्मरणशक्ति का नाश, मस्तिष्क के उच्चतम कार्यों में विकृति, लकवा व वृद्धावस्था के व्यवहार, स्वभावादि में अंतर आता है। इसके अलावा अन्य अंगो की धमनियों में यह कोलेस्ट्राल जमा होकर गैंगरीन उत्पन्न करता है इस कोलेस्ट्राल से लेरिक सिंड्रोम नामक व्याधि भी होती है जिसमें मुख्यतः पेट व पैरों की धमनी में रूकावट होती है। उच्चरक्तचाप, मधुमेह के रोगी में कोलेस्ट्राल की मात्रा बढ़ने व रक्तवाहिनी में जमा होने की आशंका ज्यादा रहती है।

कोलेस्टेरॉल बढ़ने के लक्षण

वैसे तो रक्त में कोलेस्टेरॉल  का स्तर बढ़ने के कोई लक्षण उत्पन्न नहीं होते है और ज्यादातर किसी और समस्या के लिए की जानी वाली जांचों में इसका पता चलता है फिर भी 30 वर्ष की आयु पश्चात यदि निम्न लक्षणों में से कोई लक्षण अनुभव में आता हो तो लिपिड प्रोफाइल करवा लेना उचित रहता है।

थोड़ा सा दौड़ने, ऊचांई या सीढ़ी चढ़ने पर श्वास फूलना, शरीर में हर समय आलस्य व तन्द्रा का बना रहना, काम काज में मन न लगना, कामेच्छा में कमी, पेट के आसपास मोटापा आना, मुंह में लाला स्त्राव की अधिकता आदि ऐसे लक्षण है जो कोलेस्ट्राल का स्तर बढ़ता है।

हायपरकोलेस्ट्राल के कारण अधिकतर हृदयगत धमनियां (कोरोनरी आर्टरीस) प्रभावित होती है जिससे हृदयगत विकार जैसे छाती में दर्द (एन्जाइना) जैसी व्याधियां होती है। आधुनिक चिकित्सानुसार इसमें एंजीयोप्लास्टी (Angioplasty) करके धमनियों में से कोलेस्ट्राल को साफ करते हैं परंतु फिर भी इन रूग्णों को सावधानियां रखनी पड़ती है, जिससे फिर एंजीयोप्लास्टी न करनी पड़े। आयुर्वेद शास्त्र में कोलेस्ट्राल को कम करने व धमनियों में जमा कोलेस्ट्राल को कम करने के लिए अनेक औषधियां है जिससे एंजीयोप्लास्टी करने की संभावना कम होती है। अत एव योग्य चिकित्सक के मार्गदर्शन में मेदोहर व हृद्य औषधि लेकर एंजीयोप्लास्टी से बचा जा सकता है।

आयुर्वेद मत

आहार के पाचन के बाद सार एवं किट्ट भाग बनते है। सार भाग सही बनेगा तो कोलेस्टेरॉल का संतुलन स्वतः ही हो जायेगा। कहने का तात्पर्य यह है कि कोलेस्टेरॉल के संतुलित रहने के लिए जठराग्नि एवं धात्वाग्नियों का प्रबल रहना जरूरी है तथा भोजन को अपनी पाचन शक्ति के अनुसार लेना तथा भोजन में ऐसे द्रव्यों का प्रयोग करना जिससे भोजन का पूर्ण पाचन होकर आमरस का पाचन हो सके एवं सार भाग अच्छा बनें। 

आहार-विहार

कोलेस्ट्राल व हृदय रोग का गहरा संबंध हैं। अतः कोलेस्ट्राल की मात्रा सामान्य करने में सबसे महत्वपूर्ण है – आहार, विहार पर नियंत्रण होना। आहार में चरबीयुक्त पदार्थ जैसे तेल, घी, मांसाहार, शराब, आलू, चावल इत्यादि का सेवन कम करें। उच्चरक्तचाप व मधुमेह रोगी ने कोलेस्ट्राल निवारक आहार लेना आवश्यक है जिसमें सलाद, हरी सब्जी, अंकुरित आहार, फल, छाछ की प्रचुर मात्रा लें।

अनाज में गेहुं, चावल को चोकर सहित प्रयोग करें क्योंकि उसमें उपस्थित रेशे पाचन क्रिया को तो सुगम बनाते हैं साथ ही कोलेस्ट्राल को बढ़ने नहीं देते। अतः छिलका युक्त दालों और चोकर युक्त आटे से बने व्यंजन का बहुतायत में प्रयोग करें। इसके विपरीत मैदे से बने बेकरी के पदार्थ केक, पेस्ट्री, ब्रेड, समोसा, कचोड़ी के सेवन से बचें या अति अल्प मात्रा में इसका सेवन करें क्योंकि इनसे कोलेस्ट्राल की मात्रा अधिक बढ़ने की संभावना होती है। आहार में अन्य रेशेयुक्त पदार्थ जिनमें कोलेस्ट्राल का रक्त में शोषण कम होता है। वे पदार्थ हैं – काला चना, जौ, ग्वारफली, लौकी में चिकनाई को कम करने का गुण पाया जाता है। इसके साथ ही हरी सब्जियां, सलाद व मौसमी फल जिनमें रेशे का प्रमाण अधिक हो, सेवन करने से कोलेस्ट्राल नहीं बढ़ता। सब्जियों को डीपफ्राय (Deepfry) न करें। तलने से उनके पौष्टिक तत्व तो समाप्त हो जाते हैं साथ ही कोलेस्ट्राल भी बढ़ता है। दूध का प्रयोग करते समय मलाई पूरी तरह निकाल देनी चाहिए। दही की अपेक्षा मलाई रहित दूध की छाछ का सेवन कोलेस्ट्राल के रोगियों के लिए लाभकारी है।

बारली, बीन्स व खट्टे फल कोलेस्ट्राल को कम करने के लिए प्रभावी आहार है। प्याज व लहसुन कोलेस्ट्राल की उत्तम औषधि है। कच्चा प्याज प्रतिदिन सेवन करने से 20 से 30 प्रतिशत एच. डी. एल. बढ़ता है। सब्जी में पकाया गया प्याज एच. डी. एल. बढ़ाने की शक्ति को समाप्त करता है। इसके अलावा प्याज टोटल कोलेस्ट्राल घटाने में भी सहायक है। बारली टोटल कोलेस्ट्राल को 15 प्रतिशत तक कम करता है। बीन्स 20 प्रतिशत कम करता है। संतरे व नींबू जैसे खट्टे फल बढ़े हुए कोलेस्ट्राल को कम करता है। लहसुन की 3 कली प्रतिदिन लेने से 10 प्रतिशत कोलेस्ट्राल को कम होता है। लहसुन का रस 1/8 कप 30 प्रतिशत कोलेस्ट्राल को कम करता है। सूखे मेवे, घी, तैल से परहेज करें। मूंगफली, सोयाबीन के तैल का प्रयोग अल्प मात्रा में करें। विहार में नियमित व्यायाम करें व तनाव न लें।

हायपरकोलेस्ट्राल के रूग्णों को अक्सर मोटापा अधिक रहता है अतएव उन्हें वजन पर नियंत्रण रखना अनिवार्य है। सप्ताह में एक दिन उपवास रखें तथा सप्ताह में एक दिन केवल हरी सब्जियां एवं फलों का ही प्रयोग करें। 

जीवनशैली व दिनचर्या का व्यवस्थित और नियमित होनी चाहिए। व्यायाम ऐसा होना चाहिए जिसमें अच्छा पसीना निकले प्राणायाम एवं योगाभ्यास नियमित रूप से करें।

बढ़े हुए कोलेस्ट्राल का औषधिय उपचार

प्रकृति ने शरीर में ही स्वास्थ्य प्राप्त करने की व्यवस्था कर रखी है बस आहार-विहार और जीवन शैली का उचित होना काफी है किंतु यदि इतने प्रयास के बाद भी रक्त में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्राल का स्तर सामान्य न हो तो प्रकृति ने हमारे आसपास कई औषधियां उपलब्ध करा रखी है। आयुर्वेद के अनुसार दोषों की विषमता से रोग उत्पन्न होता है। उदाहरण के लिए आधुनिक चिकित्सा पद्धति में ज्वर आने पर ज्वरनाशक व जीवाणु नाशक औषधि देने से ज्वर व जीवाणु नष्ट हो जाते है लेकिन दोषों की विषमता बनी रहती है। जैसे किसी नाली में पानी भरा हो और उसमें दवाई डाली जाये तो कीट तो खत्म हो जाते है। लेकिन पानी की गंदगी मौजूद रहती है।

कोलेस्ट्राल कम करने के लिए आयुर्वेद संहिताओ में मेदोहर औषधियां वर्णित है, इनमें मुख्यतया त्रिकुट, त्रिफला, कुटकी, लहसुन, पुनर्नवा, विडंग इत्यादि चिकित्सक के परामर्शानुसार लेना चाहिए। इसके अलावा आरोग्यवर्धिनी व त्रिफला गुग्गुल 1-1 सुबह-शाम लेना चाहिए साथ में मोटापा होने पर मेदोहर गुग्गुल 1-1 सुबह-शाम अन्य औषधियों के साथ लेना चाहिए। हायपरकोलेस्ट्राल होने से हृदय, मस्तिष्कगत व अन्य व्याधियां होने पर चिकित्सक के परामर्शानुसार ही औषधि लेना चाहिए।

उपयोगी खाद्य पदार्थ

  1. यदि रोजाना के भोजन में 30-40 ग्राम की मात्रा में रेशाप्रधान खाद्य पदार्थां का सेवन किया जाय तो रक्तचाप की संभावना नहीं रहती या कम हो जाती है। यदि रक्तचाप ठीक है तो किसी प्रकार के दिल का रोग होने की संभावना उतने ही अनुपात में कम हो जाएगी। जई का भूसा यदि उक्त मात्रा में लिया जाय तो यह कमी (रेशादार फाइबर) पूरी हो जाएगी।
  2. लहसुन – इन रोगो में लहसुन का रस रामबाण का काम करता है। इसके रस (2-3मि.ली.) को सुबह निराहार मुंह लेने से कुछ घंटों में ही रक्तवाहिनी नाड़ियों का फैलाव शुरू हो जाता है जिससे रक्त का प्रवाह सामान्य हो जाता है और दिल और दिमाग पर पड़ने वाला रक्त का दबाव कम हो जाता है। इसके सेवन से तनाव, उच्चरक्तचाप तथा इससे संबंधित अन्य लक्षणों का भी शमन हो जाता है। लहसुन में दोहरा गुण है-यह बढ़े हुए रक्तचाप को कम तो करता ही है परंतु यदि बी.पी. गिरा हो तो उसे ऊपर भी उठाता है। लहसुन रक्त को गाढ़ा नहीं होने देता।
  3. सोयाबीन – इसके किसी भी रूप में नियमित सेवन से रक्त में 25 प्रतिशत तक कोलेस्ट्राल 6-8 सप्ताह में गिर जाता है। यह HDL (बढ़िया तथा उच्च कोटि के कोलेस्ट्राल) को बढ़ाता है और LDL (निम्न या हीन श्रेणी के कोलेस्ट्राल) को कम करता है। इसका सह-उत्पाद टॉफू है जो पनीर से भी कहीं अधिक बेहतर है क्योंकि जब नमक कम लिया जाता है तो यह उच्च रक्तचाप को भी कम करने में मदद करता है।
  4. प्याज़ – प्याज़ में रक्त को पटला रखने की शक्ति है। यदि प्याज का लहसुन के साथ प्रयोग किया जाय तो और भी शीघ्र लाभ होने की संभावना होती है। कुछ लोग चटनी में दोनों को मिला देते हैं। दाल में भी दोनों का छौंक लगाया जाता है। परंतु छौंक में घी की मात्रा अधिक नहीं होनी चाहिए। रोजाना एक या दो सामान्य आकार के प्याज का रस लेने से एच. डी. एल में सुधार होता है, रक्त में जो कमियां अधिक वसा लेने के कारण पैदा होती है उनका निराकरण हो जाता है। यदि 50 ग्राम कच्चा प्याज रोज भोजन के साथ खा लिया जाए तो उक्त रोगों में सुधार होगा। इससे सस्ता और प्रभावकारी साधन शायद ही उपलब्ध हो।

खनिज एवं विटामिन का प्रयोग वे प्रधान तत्व हैं जो कोलेस्ट्राल को कम करने में प्रधान भूमिका निभाते है पंरतु इनकी कार्यशीलता को बढ़ाने में कुछ-कुछ विटामिनों की खास भूमिका है जो जो परोक्ष-अपरोक्ष रूप से तत्वों की मदद करके कमी को पूरा करते है, जिनमें प्रमुख है :

  • विटामिन बी-6 नाड़ी तंत्र को स्वस्थ रखने और शक्ति प्रदान करने में सहायक है।
  • विटामिन ’इ’ रक्तवाहिनी धमनियों की दीवारों को पुष्ट एवं सशक्त करती है, कोलेस्ट्राल की मात्रा कम करती है और रक्त संचार की प्रणाली को सामूहिक रूप से सुधारती है।
  • विटामिन ’सी’ नाड़ी तंत्र की निगति को रोकने में सहायक होती है। 
  • नायसीन (छपंबपद) हृदय को होने वाली संभावित हानि से सुरक्षा करती है, लाल रक्तकणों की प्रभावी ऊर्जाशक्ति को बढ़ाती है ताकि दिमाग तक ऑक्सीजन पहुंच सकें और दिमाग पर पड़ी तनाव और चिंता की स्थितियां कम हो सकें।
  • अधिक नमक खाने से पोटैशियम और ट्रेस एलीमेंट्स की कमी हो जाने से संपूर्ण स्वास्थ्य और हृदय पर दुप्रभाव पड़ता है जिसके फलस्वरूप कमजोरी महसूस होती है। अतः इन खनिजों की कमी को पूरा करने के लिए मैगनेशियम, पोटैशियम और कैल्शियम लेने जरूरी है।

जीकुमार आरोग्यधाम का प्रभावी नुस्खा

अर्जुनछाल 100 ग्राम, लेंडी पिपरी 50 ग्राम, दालचीनी 50 ग्राम को पीस कर एकत्र कर चूर्ण बनाकर रखें। हर रोज सुबह लहसुन की दो कली, चूर्ण पावडर आधा चम्मच, एक कप दूध, एक कप पानी को मिलाकर तब तक उबालें जब तक पानी उड़ न जाए। तत्पश्चात छान कर पीएं। इसके आधे घंटे बाद चाय पी सकते है। कोलेस्ट्राल कम करने के लिए यह लाभकारी नुस्खा है। इसका नियमित प्रयोग एंजियोप्लास्टी से बचाता है।

हायपर कोलेस्ट्राल के रूग्ण के लिए घरेलू नुस्खे

  1. मलाई रहित दूध लेने से कोलेस्ट्राल नहीं बढ़ता। इसके अलावा दूध के पदार्थों में छाछ का सेवन कोलेस्ट्राल का नियंत्रण करता है। 
  2. स्नेह (फैट) पदार्थों में देसी घी, वनस्पती घी, मक्खन व पाम आईल की तुलना में मुंगफली व सोयाबीन के तैल का सेवन उचित है।
  3. मौसंबी के निरंतर प्रयोग से रक्त वाहिनियां कोमल और लचीली हो जाती है तथा उनमें एकत्रित कोलेस्ट्राल शरीर से निकल जाता है और शरीर में ताजा रक्त, विटामिन और आवश्यक खनिज लवण पहुँचा देता है। हृदय और रक्त संस्थान, रक्त वाहिनियों को शक्तिशाली बनाने में मौसंबी सर्वोत्तम है।
  4. पुष्कर मूल 300 ग्र्राम, विडंग 100ग्राम, त्रिफला 100 ग्राम लेकर बारीक चूर्ण कर लें। इसमें 500 ग्राम गुग्गुल मिलाकर अच्छी तरह कूटकर 500 मि. ग्राम की गोलियां बनाकर 1-1 सुबह-शाम लें।
  5. नियमित रूप से 20-25 ग्राम मेथी दाना प्रतिदिन पानी के साथ निगलने से कोलेस्ट्राल नियंत्रण में रहता है।
  6. बथुए का साग हृदय के लिए रसायन का कार्य करता है और रक्त को शुद्ध भी करता है।
  7. पुदीने की चाय कड़ी हो गई धमनियों का कड़ापन दूर करके उनमें लचीलापन लाती है। इससे हृदय की तेज धड़कन की अवस्था में भी लाभ पहुंचता है। इसी प्रकार एल्फाल्फा घास का रस नाड़ियों के काठिन्य को दूर करता है, उच्च रक्तचाप को नियंत्रण करता है और हृदय की कार्यप्रणाली में आ गये दोषों को भी दूर करता है।
  8. केले में पैक्टिन और पोटेशियम दोनों ही पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। पैक्टिन कोलेस्ट्राल को कम करता है, जबकि पोटेशियम रक्तचाप पर नियंत्रण करता हैं। 
  9. दिल की बढ़ी हुई धड़कन में तरबूज के बीजों को बारीक पीसकर शहद के साथ लेने पर बहुत लाभ होता हैं और धड़कन सामान्य हो जाती है।
  10. खीरा, ककडी में विद्यमान पोटेशियम और उच्च और न्यून दोनों रक्तचाप की अवस्थाओं में लाभ पहुंचता है।
  11. धनियां के बीज और सफेद चीनी को सामान्य मात्रा में (4-5 ग्राम) मिलाकर लेने से भी दिल की असामान्य धड़कन सामान्य हो जाती है। 
  12. पपीते के पत्तों की चाय का सेवन हृदय के लिए रसायन का काम करती है और हृदय गति को उत्तेजित करती है। 
  13. शहद का प्रयोग भी हृदय के प्रायः सभी रोगों और रक्तचाप में लाभ पहुंचाता है। शहद में एसिटिलकोलीन नामक तत्व हृदय में रक्त के प्रवाह को बढ़ाता है और उच्च रक्तचाप और हृदय की गति को सामान्य करता है। वैसे भी शहद और नींबू के रस को कुनकुने या ताजे पानी के साथ लेने से शरीर में मोटापा नहीं होगा। इससे शरीर से अतिरिक्त मांस का भी क्षरण हो जाता है और शरीर का शोधन भी हो जाता है। इस प्रकार पाचन सुधरने मोटापा कम होने और हृदय को रक्त की सप्लाई अधिक होने से अनेक लक्षणों का शमन हो जाएगा।
  14. चाय, कॉफी का अधिक मात्रा में सेवन कोलेस्ट्राल को बढ़ाता है क्योंकि चाय-कॉफी में कैफिन तत्व रहता है।
  15. अधिक मात्रा में सूखे मेवे का सेवन कोलेस्ट्राल से ग्रस्त रोगी ने नहीं करना चाहिए।

हायपर कोलेस्ट्राल के कारण होने वाले हृदय धमनी रोग में (Atherosclerosis/Blockage) उपयोगी लौकी

हायपर कोलेस्ट्राल में लौकी के रस का सेवन अमृत का काम करता है। चाहे किसी भी पैथी की औषधि हो इस लौकी के रस का सेवन व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ देता है। इस अमृत स्वरूप लौकी के रस को तंदुरूस्त व रोगी छोटा-बड़ा कोई भी ले सकता है। एक बार प्रारंभ करने के पश्चात इसको लगातार लेना लाभकारी है पर यदि किसी दिन नहीं लिया तो नुकसान होने का कोई डर नहीं है।

अतः रक्त में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्राल निश्चित रूप से शरीर के लिए हानिकारक है। अतः योग्य आहार, व्यायाम व वजन पर नियंत्रण करने से कोलेस्ट्राल का प्रमाण कम किया जा सकता। उपरोक्त परहेज से न केवल कोलेस्ट्राल नियंत्रण में आएगा जबकि मधुमेह, रक्तदाब जैसे रोग से भी छुटकारा मिलेगा। शरीर में चर्बी संचित न करनेवाले पदार्थों का सेवन करें। नियमित व्यायाम करके वजन को नियंत्रण में रखें और शरीर के एल. डी. एल. कोलेस्ट्राल का प्रमाण कम करें। व्यायाम के द्वारा एच. डी. एल. कोलेस्ट्राल का प्रमाण बढ़ाए। समय – समय पर कोलेस्ट्राल की नियमित जांच करवाते रहें। अतः बढ़े हुए कोलेस्ट्राल से डरें नहीं, तनाव न लें। उसका मुकाबला करें। उचित आहार-विहार से उसे सामान्य स्तर पर लाएं व हृदय रोगों से बचें।

डाॅ. अंजू ममतानी
‘जीकुमार आरोग्यधाम’,
238, गुरु हरिक्रिशन मार्ग,
जरीपटका, नागपुर - 14

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top