मेरे पास क्लिनिक में अक्सर ऐसे रोगी आते हैं, जिनके पास मोटी-मोटी फाईलें होती हैं, बहुत सारे डॉक्टर्स से इलाज करवा चुके होते हैं, बहुत सारे X-rays, सोनोग्राफी, स्कैन्स की रिपोर्ट्स होती हैं, तरह-तरह की जाँच की रिपोर्ट्स होती हैं। लेकिन इन सबके बावजूद उनकी बीमारी पकड़ में नहीं आ रही होती है। उनका बहुत सारा वक्त और पैसा बरबाद हो चुका होता है और ढेर सारी दवाइयाँ, जो अलग-अलग पैथियों की होती है, रोगी खा चुका होता है किन्तु उनकी तकलीफ जस की तस रहती है। इन मरीज़ों के परिजन, जो इनकी देखरेख करते हैं, इलाज करवाते हैं, वे भी इनसे थक चुके होते हैं। हर जाँच इनकी नॉर्मल आती है और सारे डॉक्टर्स का कहना होता है कि ‘इनको कोई बीमारी नहीं है’ और इस वजह से रोगी और भी परेशान हो जाता है कि तकलीफ तो मुझे हो रही है, लेकिन या तो डॉक्टर रोग नहीं पकड पा रहा है या बहानेबाजी करके टाल रहा है। रूग्ण के परिजन भी अंततः थक-हारकर रोगी को ‘ड्रामेबाज’ होने का तमगा पहना देते हैं, जो कि रोगी के लिये और भी असहनीय हो जाता है।

अब ये प्रश्न उठना लाज़िमी है कि बिना किसी बिमारी के क्यों मरीज़ बहुत सारे लक्षणों में ज्यादातर सिरदर्द, सिर में भारीपन, चक्कर आाना, यााददाश्त में कमी होना, हाथ-पैर दर्द, छाती दर्द, हृदय का धड़-धड़ होना, साँस फूलना, साँस तेज़ चलना, पेट दर्द, पेट में गॅस बनना, जलन होना, अपचन, कब्जियत, दस्त, डकार ज्यादा आना, घबराहट, बेचैनी, हाथ-पैर सुन्न होना, सिर सुन्न होना, पसीना अधिक आना, मुँह सूखना, अनिद्रा, सुस्ती, काम में मन न लगना, उत्साह न रहना, बेवजह चिंता, तनाव, गुस्सा, चिड़चिड़ापन, झल्लाहट होना – ये लक्षण एक, दो या अधिक रूप में रोगी में मिलते हैं। किसी भी तनावपूर्ण स्थिति आने पर लक्षण दिखने लगते हैं या बढ़ जाते हैं। जैसे कभी-कभी किसी रोगी में लक्षण बदलते भी रहते हैं, कभी दस्त होना, कभी आँख से धुंधला दिखना, कभी कंपकपी होना। ये तकलीफें बदलती रहती हैं। तनाव दिमाग में होता है और दिमाग शरीर के हर अंग, हर कोशिका से जुड़ा होता हैं। जो व्यक्ति खुद को मगचतमेे नहीं कर पाते हैं, जब वो विपरीत परिस्थिती में खुद को पाते हैं तो उन कठिनाइयों, तनाव का डटकर सामना न करके, उनसे बचने के लिये शारीरिक लक्षणों को उत्पन्न कर लेते हैं, जिससे भले ही थोडे़ समय के लिये क्यों ना हो, वे उस परिस्थिती से खुद को बचा लेते हैं। हालांकि किसी भी कठिनाई का मुकाबला करने का यह एक Negative Attitude हैं उदाहरण के लिये एक युवक प्यार में ठुकराया जाता है, तो स्वाभाविक रूप से वह मानसिक दुख पाता है। अब ऐसा ही दूसरे युवक के साथ भी होता है। पहला युवक विरह से व्याकुल होकर शायरी, कहानी, उपन्यास लिखने लगता है और दूसरा युवक उस प्रेमिका को गाली देता है उसकी बदनामी करता है और आत्महत्या कर लेता है। परिस्थिती दोनों युवकों के लिये समान थी, लेकिन पहले युवक का सकारात्मक तरीका था और दुसरे युवक का नकारात्मक तरीका था। याने कठिनाईयां न्यूनाधिक हर किसी के जीवन में आती हैं, बस उनसे लड़ने का तरीका भिन्न-भिन्न होता है।

एक और रोग है ‘हिस्टीरिया’। इसके बारे सबने ज़रूर सुना ही होगा। इसे आम भाषा में ‘फिट आना’ कहते हैं। इसमें रोगी ज़मीन पर गिर पड़ता है, उसके हाथ-पैर अकड़ जाते हैं, दाँत भींच जाते हैं, आँखें चढ़ जाती है, वह बेहोश जैसा हो जाता है। एपीलेप्सी रोग से इसके लक्षण कुछ मिलते-जुलते हैं, जो कि एक डाॅक्टर ही जाँच करके पता लगा सकता है। परिवार में अनबन, कुछ तनावपूर्ण घटना इन रोगियों की History में ज़रूर मिलता है। किसी-किसी रोगी को डर लगता है कि उसे कोई बड़ी बीमारी हो गई है ओर वह कभी भी इस दुनिया से विदा ले सकता है। इस डर से उस मरीज़ की भूख कम हो जाती है, वह ठीक से खा नहीं पाता, नींद उड़ जाती है, फलतः वह दुबला और कमज़ोर होते जाता है। आज के गूगल के युग में ये समस्या ज्यादा दिखने लगी है। ज़रा सा सिरदर्द होने पर लोगों को ब्रेन ट्यूमर की आशंका हो जाती है, साधारण गठान भी शरीर में दिखे तो मरीज़ कैंसर के डर से ही अधमरा हो जाता है। एक बाजू के हाथ-पैर में झुनझुनी आये तो पेशंट को लगता है कि अब शीघ्र ही मुझे लकवा मारने वाला है। छाती में दर्द हो तो उसको लगता है कि मुझे हार्ट-अटैक हो गया है।

अपने प्रति सावधान रहना आवश्यक है, डॉक्टर से जाँच करवा लेना आवश्यक है, लेकिन रात और दिन सिर्फ बीमारी के बारे में सोचना, बीमारी की बातें करना, बीमारी के बारे में पढ़ते-सुनते रहना, गूगल search करते रहना- इस कारण उन्हें लगने लगता है कि उन्हें कोई घातक बीमारी हो चुकी है और वे लगातार  ‘Doctor Shopping’ करते रहते हैं याने बार-बार डाॅक्टर बदलते रहते हैं, लेकिन रोग से छुटकारा नहीं मिल पाता है। आखिर सवाल वहीं का वहीं है कि क्यों इन मरीज़ों को उनके मर्ज़ से निज़ात नहीं मिल पा रही है तो उसका जवाब है कि ये रोगी Somatoform Disorde या Somatic Symptom Disorder [SSD]  से पीड़ित है, जो कि मूलरूप से मानसिक रोग है, लेकिन उसके लक्षण शारीरिक रूप से प्रकट होते हैं। इसका निदान करना आसान नहीं होता है, फलस्वरूप इलाज की दिशा भी सही नहीं होती है। इसके निदान हेतु Physical Investigations, Specialists Opinions के पश्चात् कभी-कभी मानसिक रोग तज्ञ की सलाह लेनी पड़ती है।

मेरा अनुभव रहा है कि अगर मैं Somatoform Disorder के रूग्ण को मानसिक रोग तज्ञ के पास परामर्श लेने को कहती हूं तो वे आश्चर्यचकित होकर मुझसे पूछते हैं कि ”मैं तो कई साल से अपचन, कब्जियत, दस्त से परेशान हूँ, लेकिन मॅडम इसके लिये मनोरोग तज्ञ के पास क्यों भेज रही है, अब क्या मनोरोग तज्ञ दिमाग का इलाज छोड़कर पेट का इलाज करेंगे” वैसे भी हमारे देश में मनोरोग तज्ञ से इलाज को लेकर गलत अवधारणा बनी हुई है। फिर भी विशुध्द मनोरोगों का इलाज तो लोग मनोरोग तज्ञ से करवा लेते हैं, लेकिन अधिकांश रोग जो  Psychosomatic होते हैं, उनका इलाज सही ढंग से नहीं हो पाता है।

चिंता, तनाव दो मूल कारण हैं Somatoform Disorder के। इसके अलावा बचपन में बच्चों के साथ बुरा व्यवहार, बुरी घटना, शारीरिक शोषण, माता-पिता का झगड़ना, बच्चों को अधिक लाड़-प्यार से पालना, उनकी हर माँग को तुरंत पूरी करना, बच्चों सें भेदभावपूर्ण व्यवहार, लड़का-लड़की की परवरिश में भेद-भाव करना, युवक-युवतियों में समय से पहले ही बहुत कुछ पाने की लालसा अति महत्वाकांक्षी होना, वक्त से पहले ही मोबाइल से अधिक जानकारी लेना, अति भावुक होना, विवाह के बाद लड़कियों का ससुराल के वातावरण में Adjust नही होना, पति-पत्नी के आपसी झगडे़ होना, बहुत जल्दी दोस्ती, प्यार, तकरार, संबंध विच्छेद होना ये सभी कारण है Somatoform Disorder के। ये बच्चों से लेकर अधेड़ उम्र की कालावधि में अधिक मिलते हैं।  महिलाओं में पुरूषों की अपेक्षा अधिक प्रमाण मिलता है क्योंकि वे स्वभावतः Sensitive अधिक होती हैं, उनमें हाॅरमोन्स के स्तर लगातार बदलते रहते हैं, अपनी समस्याओं को खुलकर बताने की बजाय अंदर ही अंदर दबाते रहती हैं कभी माँ, पिता के डर से, कभी ससुरालवालों के डर से।

अब आईये हम Somatoform Disorder के इलाज के विषय में कुछ जानकारी हासिल करेंगे, Soma याने शरीर, form याने रूप अर्थात् ऐसी मानसिक व्याधि जो शारीरिक लक्षणों का रूप लेती है, उन्हें Somatoform Disorder कहते हैं। अब ज़ाहिर है यदि बीमारी ’मन’ में है तो इलाज भी ’मन’ का ही करना पड़ेगा। सबसे पहले तो हमें ये स्वीकार करना पडे़गा कि हमें Somatoform Disorder है और चिकित्सक को भी निदान व काउंसलिंग में निपुण होना चाहिये क्योंकि ये सामान्य बीमारी है, लेकिन सामान्य समझी नहीं जाती है। मेरे पास एक 10 वर्ष की बच्ची, जिसको 2 माह से उल्टियाँ हो रही थी मेरे पास लाया गया। उस बच्ची का इलाज Gastroenterologist, Paediatricians से हो चुका था। कोई बीमारी न मिलने पर झाड़ फूँक, टोना टोटका भी हो चुका था, लेकिन उसकी उल्टियाँ बंद नहीं हो रही थी। पहली बार में तो मुझे भी कोई कारण समझ में नहीं आया, न दवाई से उसे आराम पड़ा। दूसरी Visit में मैंने उससे बातें करना शुरू किया। उसकी पढ़ाई, शिक्षक व मित्रों के बारे में पूछा, सबकुछ ठीक था। उसकी मम्मी ने बताया कि बच्ची पढ़ने में बहुत होशियार है, बहुत Sincere है, इसकी शिक्षक इससे खुश रहती है। मैंने बच्ची से और बातें की तो पता चला कि 2 माह पूर्व ही उसकी नए स्कूल में एडमिशन ली गई है और नये स्कूल में नये माहौल में वो adjust नहीं कर पा रही है। मैंने उसको समझाया और आयुर्वेदिय मेद्य रसायनयुक्त दवाई दी। उसकी मम्मी से कहा कि उसकी स्कूल जाकर उसके शिक्षक से बात करें और उसके सहपाठियों से बात करें, उसकी दोस्ती करवाने में मदद करें। तकरीबन 2-3 हफ्ते में वो पूरी तरह से ठीक हो गई बिना एक भी उल्टी की दवाई के।

ऐसे ही एक नई शादीशुदा युवती को उसका पति मेरे पास आए-दिन सिरदर्द के इलाज के लिए लाता था। दर्द निवारक औषधि से फायदा हो जाता था, लेकिन कुछ दिनों बाद पुनः वही शिकायत लेकर मेरे पास वह रूग्णा आती थी। वह युवती मेरे साथ धीरे-धीरे थोड़ा खुलने लगी थी। Personal History लेने पर मालुम पड़ा कि वह डण्च्ण् के एक छोटे से गाँव की कम पढी-लिखी, सीधी-सादी लड़की थी, जो कि संयुक्त परिवार से थी। उसका पति नागपुर में एक प्रायवेट फर्म में काम करता था। प्रायवेट जॉब  की वजह से वह घर पर बिल्कुल वक्त नही दे पाता था। ये लड़की नागपुर शहर में एक छोटे फ्लॅट में रहती थी, जिसकी कोई सहेली नहीं, किसी से बातचीत नहीं थी। दिनभर घर में अकेलापन महसूस करती थी। मेरे क्लिनिक से उसका घर काफी दूर था। जब उसका पति मेरे क्लिनिक में उसे इलाज के लिये लाता था, तो लौटते समय वो मंदिर जाते थे, फिर खा पीकर आराम से घर पहुँचते थे। मैंने उसके पति को समझाया कि अपनी पत्नी को वक्त देना ज़रूरी है। जैसे समय निकालकर मेरे पास लाते हो, वैसे ही हफ्ते में 2-3 दिन समय निकालकर मंदिर जाओ, घूमो फिरो, खाओ पीओ और फिर तुम्हारी पत्नी का सिरदर्द ठीक ही हो जायेगा। कुछ समय बाद वह गर्भवती हुई, एक बेटे को जन्म दी। अब उसका समय पूरा दिन बच्चे की परवरिश में गुजरने लगा और सिरदर्द से छुटकारा मिल गया।

रोगी और उसके परिजनों को धैर्य बनाकर रखना, डॉक्टर पर डॉक्टर न बदलना, मन को मज़बूत बनाना- ये महत्वपूर्ण है। अपनी जीवन शैली में बदलाव लाना, समय पर सोना, समय पर उठना, व्यायाम करना, प्राणायाम, ध्यान करना, प्रकृति के बीच कुछ समय बिताना, मनोरंजन ज़रूरी है लेकिन नकारात्मक, हिंसक फिल्में, फिजूल वीडियो, सीरियल देखना बंद कर देना चाहिये। शुध्द, हल्का, सुपाच्य सात्विक आहार का सेवन करना चाहिये। ”जैसा अन्न-वैसा मन” इसलिये सात्विक आहार से मन के सत्व गुण की वृध्दि होती है।

आयुर्वेद के अनुसार चिकित्सा के तीन प्रकार है

दैवव्यपाश्रय चिकित्सा :- इसमें ईश्वर से प्रार्थना, जप, पूजन, हवन आदि उपाय आते हैं। भगवान पर हम श्रध्दा रखकर सब कुछ उनपर छोड़ देते हैं, आधी चिंता-तनाव यहीं पर खत्म हो जाता है।

युक्तिव्यपाश्रय चिकित्सा :- जिस कारण से रोग उत्पन्न हुआ हो उसका त्याग करना एवं रोग और रोगी परीक्षा करके युक्तिपूर्वक उनको औषधि देना। आयुर्वेद में बहुत सारी औषधियाँ चिंता, तनाव दूर करती हैं, मानसिक बल बढ़ाती है – जैसे ब्राम्ही, मंडुकपर्णी, अश्वगंधा, शंखपुष्पी, जटामांसी, ज्योतिष्मती, तगर, वचा, गिलोय, पारसिक यवानी, जायफल, अकरकरा आदि।

सत्वावजय चिकित्सा :- सत्व याने मन अर्थात् मन पर विजय प्राप्त करना। इसके लिये बहुत से उपायों का वर्णन आयुर्वेद में मिलता है। सद्वृत्त का पालन, आचार रसायन का पालन, यम-नियम, का पालन, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि इन अष्टांग योग का नियमित पालन करना, इनके व्दारा इंद्रिय और मन नियंत्रित होता है। विज्ञान ने भी सिध्द कर दिया है कि हमारे मस्तिष्क में चार प्रकार के Happy Hormones होते है, जिनके सही प्रमाण में होने से हमारा मन खुश, आनंदित, संतुष्ट रहता है। ये Exercise करने से, किसी की मदद करने, अपना काम पूरा करने, स्नेह पूर्ण व्यवहार करने से हमारा Brain स्वयं इन्हें Release करता है। ये Endorphin, Serotonin, Dopamine, Oxytocin हैं।

अंत में इतना कहूँगी कि Somatoform Disorder पूर्णतः ठीक होनेवाली बीमारी है, बशर्ते सही डॉक्टर और सही इलाज मिले। सकारात्मक रहें, अपनी सोच बदले और चिकित्सक के अनुसार पूरा Treatment लें।

डाॅ. संगीता जैन गुप्ता
M.D., आयुर्वेद
M.R.A.V. (पंचकर्म) नागपुर

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