प्रार्थना में अपार शक्ति होती है। शोध/अध्ययनों से भी यह स्पष्ट हो गया है कि प्रार्थना करने से स्वास्थ्य बेहतर होता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि बीमारी होने पर दवाइयों के सेवन से हम स्वस्थ हो जाते हैं लेकिन वही दवाइयां और अधिक असरदार हो जाती हैं, जब हम मानसिक रूप से सबल हो जाएं और यह मानसिक सबल हमें प्रभु की आराधना/पूजा से मिल सकता है। पूजा किसी निश्चित समय और निश्चित स्थान पर की जाने वाली क्रिया नहीं है।
यह बात कहने सुनने में भले ही अजीब लगे किंतु है बिल्कुल सही कि ईश्वर आराधना से आत्म संतोष के साथ-साथ मानसिक शांति की अनुभूति भी होती है। ऐसा कहते है जो लोग ईश्वर में विश्वास करते हैं, वे अधिकतर दीर्घजीवी होते हैं। आधुनिक जीवनशैली में केवल भौतिक सुख सुविधाओं को ही सुख का साधन माना गया है जिसे पाने की लालसा में व्यक्ति तनावग्रस्त हो गया है जिसका सीधा असर स्वास्थ्य पर पड़ता है ऐसे में यदि प्रार्थना/अध्यात्म को जीवन का हिस्सा बना लिया जाये तो तनाव से निपटने में काफी हद तक सफलता मिल सकती है।
अध्ययनकर्ताओं का मानना है कि पूजा एक डोर है जो कि विज्ञान, अध्यात्म और स्वास्थ्य के बीच के रिश्ते को बांधे रखती है। इसमें असीम शक्ति होती है। पूजा से व्यक्ति में बढ़ रहे तनाव और दबाव का स्तर कम होता है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि प्रार्थना मन की दवा है। वह व्यक्ति को जीवन के प्रति सकारात्मक ढंग से सोचने के लिए प्रेरित करती है। यही कारण है कि प्रार्थना का प्रचलन हर धर्म में है। हां, प्रार्थना के तरीके अवश्य अलग अलग है।
मन मस्तिष्क पर अध्यात्म का प्रभाव
पूजा-प्रार्थना करने से मन सबल होता है और शरीर पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
प्रार्थना करने से स्वयं में शक्ति पैदा होती है। प्रार्थना जीने का उत्साह बढ़ाती है, यह स्वयं को प्रेरित करती है। प्रार्थना करने से व्यक्ति अस्तित्व से जुड़ता है। यह मन को बल देती है।
पूजा करने से मन-मस्तिष्क मजबूत होता है। याददाशत बढ़ती है, तनाव कम होता है, शांति मिलती है।
पूजा के प्रभाव से हमारे मन को इतना बल मिलता है कि दिनभर के सारे तनाव आसानी से सहन कर सकें। दिमाग तेजी से चलता है, हम एक साथ कई योजनाओं पर कार्य कर पाते हैं।
पूजा से दिमाग को एक ऐसी शक्ति मिलती है, जिससे वह अपने नकारात्मक भावों को मन से बाहर कर सीधे सादे रास्ते पर चलता रहे।
पूजा की आदत एवं अभ्यास हमारी ध्यान शक्ति एवं विवेक शक्ति का विकास करती है।
पूजा से सहनशीलता, शांति एवं मानवीयता प्राप्त होती है। will power बढ़ता है।
प्रार्थना से क्रोध पर नियंत्रण पाया जा सकता है तथा मन स्थिर और शांत रहता है।
प्रतिदिन 15-20 मिनट प्रार्थना करने से व्यक्ति को अपना ध्यान एक जगह केंद्रित करने में मदद मिलती है। प्रार्थना शरीर में स्फूर्ति प्रदान करती है। भजन-कीर्तन में ताली बजाने से रक्तसंचार दुरूस्त रहता है।
परिवार के सभी सदस्य मिलकर प्रार्थना करें तो घर में व्याप्त तनाव दूर होता है तथा सदस्यों में परस्पर प्रेम बढ़ता है। प्रार्थना करने से प्रसन्नता, भक्ति, कृपा, आशीष मिलते हैं जिससे हमारे तनाव घटते है।
ओम की महिमा
अ, उ और म। उक्त तीन अक्षरों वाले इस शब्द के सभी गुणों का वर्णन संभव नहीं है। मतलब यह कि इस शब्द की महिमा अव्यक्त है। यह नाभि, हृदय और आज्ञा चक्र को जगाता है। ओम के निरंतर उच्चारण करते रहने से व्यर्थ के मानसिक द्वंद्व, तनाव और नकारात्मक विचार मिटकर मन की शक्ति बढ़ाती है। मन की शक्ति बढ़ने से संकल्प और आत्मविश्वास बढ़ता है।
जीवन शक्ति का आधार मौन
मौन रहना एक स्वास्थ्यकर जीवन, अंतिम मुक्ति एवं आनन्द की प्राप्ति के लिये खुलने वाले दरवाजे की कुंजी है। मौन का अभ्यास शान्ति लाता है। हमारी काफी ऊर्जा बोलने में नष्ट हो जाती है। इस ऊर्जा को बचाने के लिए प्रतिदिन कुछ समय मौन रहना चाहिए। वैदिक काल से ही ऋषि-मुनियों और विद्वानों द्वारा मौन रहने के फायदे बताए गए है। कुछ समय मौन रहने से हमारा मानसिक तनाव तो कम होता है साथ ही स्वास्थ्य को भी लाभ प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार प्रातःकाल और सायंकाल जितनी देर संभव हो, मौन रहना चाहिए। दिनभर के कई जरूरी काम मौन रहकर भी किए जा सकते हैं। इससे मन को शांति मिलती है। सुबह-सुबह मौन रहने से हमारा मन एकाग्र रहता है और प्रतिदिन के खास कार्यों को हम ठीक से कर पाते है। शाम के समय मौन रहने से दिनभर के कार्य से उत्पन्न मानसिक तनाव से मुक्ति मिलती है, जिससे पारिवारिक जीवन पर बाहरी तनाव का बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। यदि आाप मौन रहते हैं, तो स्पष्ट है कि आप में सहनशीलता है। मानसिक तनाव, व्याकुलता और अशांति के क्षण में मौन रहना शांतिदायक होता है। कलह और निंदा से बचने का एकमात्र उपाय मौन है।
प्रभु गुणगान का महत्व
अंत में यही कहना चाहुंगा कि ‘‘गुन गावत तेरी उतरसि मैलु’’ – अर्थात परमात्मा के गुणगान करने से आपके मन की मैल दूर होकर मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति ने प्रभु का गुणगान अवश्य गाकर करना चाहिए चाहे किसी भी इष्टदेवता को मानते हैं। गुरबाणी भी फरमाती है ‘‘गुन गोबिंद गाइओ नही जनमु अकारथ कीनु’’ अर्थात प्रभु के गुणगान के बिना जीवन व्यर्थ है।