आयुर्वेद में मन व मस्तिष्क पर सकारात्मक कार्य करने वाले वनौषधियों को मेध्य रसायन कहा जाता है, इन मेध्य रसायनों का प्रयोग करने से शांति, संतुष्टि, आनंद का भाव उत्पन्न होता है। मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है, बुद्धि की ग्रहण, धारण व स्मृति आदि शक्तियों का विकास होता है, जिनमें मंडूकपर्णी (Centella asiatica), यष्टीमधु (Glycirrhiza Glabra) , शंखपुष्पी(Convolvulus pleuricautos), एट्री (Bacapa monniera), ज्योतिष्मति (Celastrus panniculata), कुष्मांड (Benincasa hispidaaa), जटामांसी (Nardostechys jatamansi), गुडूची।
मानव शरीर सृष्टि की अनुपम रचना है, इसे स्वस्थ और सेहतमंद रखना हमारा परम कर्तव्य है। व्यक्ति जब शारीरिक, मानसिक, आत्मिक और सामाजिक रूप से स्वस्थ हो, तब ही उसे संपूर्ण स्वास्थ्य कहा जा सकता है। हमारा शरीर कई रचनात्मक व क्रियात्मक तत्वों से बना होता है। या हार्मोन्स शरीर में स्त्रवित होने वाले ऐसे स्त्राव है, जो शरीर की सारी क्रियाओं को नियंत्रित करते है जिनका असर तन, मन और संपूर्ण स्वास्थ्य पर होता है।
ऐसे हार्मोन्स जो हमें खुशी, आनंद और सुख की अनुभूति कराते है उन्हें Happy Hormones कहा जाता है और ऐसे हार्मोन्स जिनसे शरीर और मन में किसी तरह की परेशानी, दुख, तकलीफ और प्रतिकुल अनुभूति होती है उसे स्ट्रेस हार्मोन्स कहा जाता है।
एड्रिनल ग्लैंड से स्त्रवित होनेवाले Cortisol steriod हार्मोन को “Stress Hormone” भी कहा जाता है, चुंकि Cortisol शरीर की कई सारी कोशिकाओं में मौजूद होता है। अतः इसका कार्य भी उसी आधार पर अलग अलग होता है।
कार्टीसोल के कार्य – कार्टीसोल न सिर्फ तनाव की अनुभूति करवाता है बल्कि अन्य प्रकार से भी शरीर को प्रभावित करता है। यह केमिकल रक्त में ग्लुकोज चयापचय की क्रिया नियंत्रित करता है, शरीर की सूजन को कम करता है साथ ही साथ स्मरण शक्ति को नियंत्रित करने में कार्टीसोल की अहम भूमिका है। कार्टीसोल महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान भ्रूण के समग्र विकास को भी बढ़ावा देता है। स्वास्थ्य की संपूर्ण देखभाल का गुण इस हार्मोन को विशेष बनाता है।
कार्टीसोल अनियंत्रित होने के परिणाम – स्ट्रेस यदि हो जाए तो शरीर में ढेर सारी परेशानियां खड़ी कर सकता है, जिसमें वजन कम होने से लेकर, प्रजनन क्षमता तक प्रभावित हो सकती है। स्टेªस हार्मोन बढ़ने से शरीर में ब्लड प्रेशर बढ़ने लगता है और हृदय की धड़कने बढ़ने लग जाती है। इसीलिए यह जरूरी है कि हम स्ट्रेस हार्मोन्स की निर्मिती और लेवल की प्रति जागरूक हो और उसके प्रति सावधानियां बरते।
1.पाचन समस्याएं – सुबह 2-3 बार शौच जाना, खासकर सुबह शौच संबंधी शिकायत हो तो समझें, स्ट्रेस हार्मोन बढ़ा हुआ है।
2.भूख न लगना – स्ट्रेस हार्मोन ज्यादा होने से भूख मर जाती है।
3.बार बार नींद खुलना – बार बार आधी रात को नींद खुलना, इस बात का संकेत है कि शरीर में स्ट्रेस हार्मोन की लेवल बढ़ी हुई है।
4.वजन बढ़ना या घटना – स्ट्रेस हार्मोन न सिर्फ वजन को प्रभावित करता है बल्कि संतुष्टि की भावना को भी कम कर देता है, जिससे बार बार खाकर भी किसी भी प्रकार के खाने से संतोष नही मिलता।
स्ट्रेस से शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य भंग होकर शरीर कई प्रकार के रोगों का घर बन जाता है।
जैसे स्ट्रेस हार्मोन शरीर में स्ट्रेस बढ़ाकर दुष्प्रभाव डालते है वैसे ही कुछ Happy Harmones जो आनंद, संतोष और अनुकूलता की अनुभूति करते है। आक्सीटोसिनए डोपामिन, एन्डारफिन और सेरोटोनिन को हैप्पी हार्मोन्स भी कहा जाता है।
Endorphin – इसे Feel good Brain chemical भी कहा जाता है, इसे Natural Pain & Stress Killer भी कहा जाता है। व्यक्ति जब आनंदित अवस्था में होता है, जैसे व्यायाम करने से, यौन क्रिया करने से, या कोई पसंदीदा कार्य करने से, मनपसंद खाना खाने से, मनपसंद व्यक्ति या वस्तु के मिलने पर अधिक मात्रा में Endorphin chemical स्त्रावित होता है।
Endorphin हायपोथैलेमस और पिटयूटरी ग्रंथि में उत्पन्न होता है। जब व्यक्ति मानसिक संक्षोभ या मानसिक आघात में हो, तनाव और विशाद (Depression) में हो, आत्मविश्वास की कमी महसूस हो, तब Endorphin की जरूरत होती है। संपूर्ण स्वस्थ रहने के लिए यह जरूरी है कि आवश्यक मात्रा में Endorphin स्त्रावित होते रहे। इससे चिंता, तनाव में राहत बनी रहती है, मूड में सकारात्मक परिवर्तन होते है, आत्मसम्मान बढ़ता है। बुद्धि की ग्रहण, धारण और स्मरण शक्ति बढ़ती है। रोग प्रतिकार क्षमता बढ़ती है, शरीर में कहीं भी सूजन हो तो वह कम हो जाती है। भूख नियंत्रित रहती है। हर एक व्यक्ति में Endorphin का प्रमाण अलग-अलग और उसके कारण भी अलग-अलग होते है।
रिसर्च से सिद्ध किया जा चुका है कि नियमित रूप से व्यायाम करने से म्दकवतचीपद स्त्रावित होकर, डिप्रेशन के लक्षणों में कमी आती है, शरीर सबल बनता है। अन्य शारीरिक क्रियाएँ जैसे नृत्य व यौनक्रियाएं करने से इसका प्रमाण बढ़ता है। Dark Chocolate, Cocoa का सेवन भी शरीर में म्दकवतचीपद समअमसे बढ़ाते है।
Dopamine : को भी Feel good chemical कहा जाता है इसे Reward Hormone भी कहते है। जब खुशी महसूस होती है या Reward मिलने का अनुमान किया जाता है, तब शरीर में Dopamine का प्रमाण बढ़ जाता है। इसका शरीर में प्रमाण सही रहने से तन और मन समन्वयात्मक रूप से कार्य करते है।
कपिकच्छु (Murina pruriens) – को Dopamine Bean भी कहा जाता है। यह Nervous system को सबल बनाकर, प्रजनन अवयवों का बल बढ़ाना है। इसमें Natural Dopamine precursor होते है जो Dopamine को स्त्रवित करने में मदद करते है। छोटी छोटी खुशियों को जाहिर करना और उत्सव मनाना Dopamine को बढ़ाने में मददगार होता है।
Oxytocin : को Love Harmone भी कहा जाता है। कुनकुने तेल से मालिश करने से शरीर तो उत्साहित और तरोताजा महसूस करता है, बल्कि मन में भी आनंद की अनुभूति होती है। सत्संग आदि में जाने से खुशी और तनावरहित महसूस होता है और इस केमिकल की मात्रा बढ़ने में मदद होती है। दूसरों पर दया, सहानुभूति या करुणा का भाव जागृत होने पर भी विचारों में सकारात्मकता आकर, Oxytocin की मात्रा नियंत्रित होने लगती है।
Serotonin : को Mood Stabilizer भी कहा जाता है। यह केमिकल मुड, भूख और नींद पर नियंत्रण रखता है। इसका प्रमाण कम होने पर चिंता, तनाव, अवसाद, अनियमित निद्रा, परेशान मुद्रा, यहाँ तक कि कभी कभी स्थिती गंभीर होने पर आत्महत्या के विचार भी आने लगते है। यदि यह केमिकल उपयुक्त मात्रा में स्त्रवित हो तो बुद्धि की कार्यक्षमता बढ़कर व्यक्ति हर कार्य को ध्यानपूर्वक सावधानी से करता है, emotionally balance रहता है और आनंद, शांति व संतुष्टि का अनुभव करता है। अन्न का सही तरीके से ग्रहण करने और पचाने के लिए व्यक्ति की मानसिकता की बहुत भूमिका होती है। Serotonin आदि केमिकल के प्रभाव से यदि मन प्रफुल्लित और प्रसन्नचित है तो भूख भी बराबर लगती है और अन्न पचन भी सुचारू रूप से होकर शरीर का पोषण भी व्यवस्थित होता है और शरीर की रोग प्रतिकारक शक्ति बढ़ती है।
अंडे, pineapple, cheeze, tofu, oats और Seeds (Pumpkin, Chia) से इसका प्रमाण बढ़ता है।
Thyroid Hormone : जिन व्यक्ति को थायराइड संबंधी विकार जैसे T3 (Tri-iodothyronine), TSH Response to TRH (Thyrotropin Releasing Hormone) होते हैं उनमें तनाव और अवसाद का प्रमाण अधिक होता है। इसीलिए Anxiety और Depression वाले रोगी में Thyroid profile भी check कराने की सलाह दी जाती है।
Insulin : यह शरीर में ग्लुकोज के चयापचय से संबंधित केमिकल है, जिसका प्रमाण कम होने पर diabetes Type-2 होने की संभावना बनी रहती है। रिसर्च से प्रमाणित किया जा चुका है कि Insulin resistent patients में डिप्रेशन के लक्षण अधिक पाए जाते है या यूं ही भी कह सकते है कि जिनमें Depression हो उन्हें Type-2 Diabetes होने की अधिक संभावना रहती है।
Oestrogen : इस्ट्रोजेन और प्रोजेस्ट्रोन यह दो हार्मोन्स स्त्रियों के प्रजनन क्रिया विशेष रूप से मासिक स्त्राव को नियंत्रित करते है। ओवरी से Oestrogen स्त्रवित होता है और ब्लड कॅलोटिंग,Stress response, emotional regulation और मस्तिष्क संबंधित कार्यों को संयमित करता है। रिसर्च से ज्ञात हुआ है कि Oestrogen की असामान्य मात्रा अवसाद के लक्षणों को बढ़ा देती है।
प्रोजेस्ट्रोन (Progestrone) : Oestrogen के साथ साथ Progestrone का भी तन, मन और विशेषकर प्रजनन अंगों के कार्यों पर विशेष असर होता हैं। यह ovulation (स्त्री अंड निर्माण) में एक आवश्यक घटक है, जो गर्भधारणा के लिए जरूरी प्रक्रिया हैं।
माहवारी के चैदह दिनों बाद प्रोजेस्ट्रोन धीरे-धीरे घटने लगता है, जिससे स्त्रियों में चिड़चिड़ापन थकावट, मुड में बदलाव, तनाव आदि लक्षण रहते है, जिसे प्री मेन्सटूअल सिंड्रोम (Pre- Menstrul syndrome) भी करते है।
Oestrogen-Progestrone की मात्रा, खासकर माहवारी के समय, मेनोपॉज और उसके आसपास के समय में विषम हो जाती है इसीलिए महिलाएं मुख्य रूप से मेनोपॉज के आसपास के समय भी चिड़चिड़ाहट, गर्माहट (Hot Flashes), रात में पसीना आना, तनाव, मूड बदलना आदि महसूस करती है। इसीलिए मेनापॉज के समय Reproductive Harmonal Profile करवाना बहुत जरूरी है।
टेस्टोस्टेरान : उसी तरह टेस्टोस्टेरोन पुरूषों के प्रजनन अवयवों और शुक्राणु निर्माण एवं मानसिक अवस्था को प्रभावित करनेवाला हार्मोन है। यद्यपि हार्मोन और मूड (मनोदशा) का आपस में गहरा संबंध है इस दिशा में कई रिसर्च भी हुई है पर इस दिशा में अभी शोधकार्य की गुंजाइश बाकी है।
आयुर्वेद में मन व मस्तिष्क पर सकारात्मक कार्य करने वाले मेध्य रसायन कहा जाता है, इन मेध्य रसायनों का प्रयोग करने से शांति, संतुष्टि, आनंद का भाव उत्पन्न होता है। मस्तिष्क की कार्यक्षमता बढ़ती है, बुद्धि की ग्रहण, धारण व स्मृति आदि शक्तियों का विकास होता है, जिनमें मंडूकपर्णी (Centella asiatica), यष्टीमधु (Glycirrhiza Glabra), शंखपुष्पी (Convolvulus pleuricautos), एट्री (Bacapa monniera), ज्योतिष्मति (Celastrus panniculata), कुष्मांड (Benincasa hispida), जटामांसी (Nardostechys jatamansi), गुडूची (Tinospora cardifolia) का वर्णन है।
1. मंडूकपर्णी :- इसके पत्तो का आहार मेंढ़क (मंडूक) के पैरों के समान होता है, इसलिए इसको मंडूकपर्णी कहा जाता है। इसमें कुछ Bioactive Chemicals पाए जाते है, यह स्मृतिवर्धन, मिर्गी रोग, अवसाद, तनाव को दूर करने में मददगार होती है।
मंडूकपर्णी का प्रयोग मानसिक सजगता और मानसिक कार्यक्षमता को बढ़ा देता है। शारीरिक व मानसिक थकान को दूर करके तुरंत ऊर्जावान बनाकर, तन और मन को सबल बनाती है।
मात्रा :- पत्रचूर्ण 1-3gm 2 बार , खाने के बाद इसका प्रयोग 6 हफ्ते से ज्यादा नहीं करना चाहिए फिर कुछ दिनों बाद गैपदेकर फिर से शुरू कर सकते है।
2. ब्राम्ही :- इसकी गणना उत्तम मेध्य रसायनों में की गई है। शरीर मे मस्तिष्क को सारी क्रियाओं का मूल केन्द्र कहा गया है, और ब्राह्मी विशेषरूप से मस्तिष्क को स्वस्थ बनाने में मदद करती है, इसीलिए ऐेसा नामकरण है। ब्राह्मी का प्रयोग बुध्दि की सोचने, कार्य करने और निर्णय लेने की क्षमता एवं स्मरणशक्ति को बढ़ाता है। विशेषरूप से Endorphin Chemical के कार्यो में मदद करता है, उसको स्त्रवित होने में मदद करता है। विशेषतः इसमें पाई जानेवाली Antioxidant Properties के कारण स्मरण शक्ति बढ़ाकर भुलने की क्रिया में विजय प्राप्त कर सकते है। इसीलिए बच्चों में, अल्झाइमर के रूग्ण में, वृद्धावस्था में मुख्य रूप से लाभकारी है। ब्राह्मी तनाव मुक्त करके, किसी विषय पर ध्यान एकाग्र करने में मदद करता है और मानसिक थकान को दूर करता है।इसके पंचांग का चूर्ण 1-3 gm की मात्रा में प्रयोग करते है।
3. यष्टिमधू :- इसे सामान्य भाषा में मुलेठी भी कहते हैं इसके Underground stem (Stalon) को सुखाकर उसका चूर्ण रूप में प्रयोग 2-4 gm तक प्रयोग करते है। वैसे तो मुलेठी का बहुत सारे रोगों में प्रयोग होता है, लेकिन यह एक मेध्यरसायन भी है यह अपने शीत वीर्य और मधुर रस से तपर्क कफ का पोषण कर मस्तिष्क सहित सभी इंद्रियों को तृप्त करके उनकी कार्य क्षमता बढ़ाता है।
4. गुडुची :- गुडुची को सामान्य भाषा में गुडवेल कहा जाता है, बहुगुणकारी होने से इसे अमृता भी कहा जाता है। इसके stem के कई सारे औषधीय प्रयोग शास्त्रों में बताए है, इसे क्वाथ, चूर्ण, आसव या सत्व के रूप मे उपयोग कर सकते है। इसकी मूल का प्रयोग तनाव दूर करने में होता है। यह जिंक और कॉपर का अच्छा स्रोत है। Oxidation
के कारण free O2 Radicalsसे जो कोशिकाओं के नाश को रोकती है।
5. ज्योतिष्मती :- जैसे की नामकरण से ही पता लगता है, मति को प्रकाशित अथवा प्रखर बनाती है। अगर अनेक विषयों की तरफ मन का भटकाव हो तो व्यक्ति किसी भी कार्य में ध्यान केंद्रित नही कर पाता है। Dopamine & GABA ( Gamma Aminobutyric Acids) को शांतिप्रेरक (Calming effect agent) कहते हैं जो तनावको दूर करने में मदद करते हैं। रिसर्च के अनुसार ज्योतिष्मति के प्रयोग से GABA & Dopamine स्त्रवित होकर तनाव, भय, चिंता आदि से मुक्ति होकर व्यक्ति किसी कार्य में ध्यान केंद्रित करना उसमें सफलता पा सकता है। यह काफी हद तक मदद करती है। Stress Hormone को भी कम करने में मदद करती है।ज्योतिष्मति बीजतेल का प्रयोग मतिमंद रोगियों के लिए मददगार साबित होता हैं। इसके बीज में fatty acids, aleic acids, linoleic acid, palmitic acids, steril, benzoic & acetic acids भी पाए जाते हैं।
6. कुष्माण्ड :- यह एक उत्तम मेध्यरसायन है कुष्माण्ड का सब्जी के रूप में या अवलेह या घृत के रूप में भी प्रयोग है। कुष्माण्ड (कोहळा) घृत मुख्य रूप से चित्तोद्वेग को कम करता है। अल्ज़ाइमर में कोशिका के क्षय को रोककर उनका संरक्षण करता है अपनीAntioxidant property के कारण। कुष्माण्ड अवलेह का प्रयोग इंद्रियों व मस्तिष्क की ग्रहण, धारण व स्मरण की शक्ति बढ़ाता है।
7. शंखपुष्पी :- इसकी गणना उत्तम मेध्य रसायन में की गई है। शंखपुष्पी में मौजूद Phytochemicals, Antioxidant से भरपूर होते है Specially मस्तिष्क के cells के विघटन को रोकते है और मस्तिष्क के लिए संप्रेरक का कार्य करते हैं। शंखपुष्पी को विशेषरूप से स्मृतिवर्धन के लिए प्रयोग किया जाता है पर इसके प्रयोग से बृद्धि की तार्किक क्षमता व अनवयात्मक क्षमता का भी बहुत विकास होता है। शंखपुष्पी के क्वाथ का 10ml प्रयोग serotonin के मात्रा को संयमित करता है साथ ही अनिद्रा, तनाव आदि को भो दूर करने में शंखपुष्पी सहायक होती है।
ये सारे हर्बल्स मन और मस्तिष्क पर अपना अच्छा प्रभाव दिखाते हैं, लेकिन यदि समस्या गंभीर हो तो मनोरोगतज्ञ की सलाह अवश्य ले ।
स्मरण बिंदु (हार्मोनस को संतुलित रखने के लिए) :-
*व्यायाम के लिए कुछ समय अवश्य निकाले, खासकर अकेले व्यायाम करने की अपेक्षा समूह में व्यायाम करने से ज्यादा फायदा होता है।
*हर रोज दिल खोलकर हँसना चाहिए
*सौम्य और मनपसंद संगीत का लुत्फ जरूर उठाएं।
*निश्चित समय पर खाने और सोने का नियम बनाए
*कम से कम सप्ताह में १-२ बार सत्संग अवश्य जाए और रोज सुबह शुद्ध होकर दैनिक पूजा-अर्चना जरूर करनी चाहिए।
*रोज कुछ समय प्रकृति के सान्निध्य में अवश्य रहें।
*पालतु जानवरों को भी प्रेम करें ।
*Aromatherapy मन प्रसन्न करता है।
*कुछ समय मनोरंजन के लिए अवश्य निकालें ।
*चाय की जगह ग्रीन टी का ज्यादा इस्तेमाल करें।
*खाने में सलाद,Nuts, eggs,oats, seeds, Citrus fruit अखरोट, बादाम का प्रयोग करें।
*Dark chocolates और cocoa के प्रोडक्टस भी लें।
*रोज नृत्य की आदत डालें।