वातरक्त रक्त विकारों के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द का एक विशिष्ट रूप है। आधुनिक चिकित्सा में इसके लिए दर्दनाशक दवाइयां दी जाती हैं लेकिन आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से इस बीमारी को जड़ से ठीक करने के उपाय बताए गए हैं।

वातरक्त (गाउट) क्या है ?
विभिन्न कारणों से जब रक्त में प्यूरिन का चयापचय गड़बड़ा जाता है तो रक्त में ष्यूरिक एसिडष् की मात्रा 7 मिलीग्राम से अधिक होती है जो कि शारीरिक ऊर्जा के उत्पन्न होने के बाद बनने वाले कचरे का हिस्सा होता है। जब शरीर इसे सही से बाहर नहीं निकाल पाता है और परिणामस्वरूप उत्पन्न होने वाले विभिन्न क्षार जोड़ों के अंदर और मांसपेशियों में जमा हो जाते हैं और इसके परिणामस्वरुप जोड़ों में सूजन हो जाती है और जोड़ों में दर्द होने लगता है।

गाउट के कारण क्या हैं ?
रक्त में उत्पन्न यूरिक एसिड  की एक निश्चित मात्रा मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाती है। जब यह उत्सर्जन ठीक से नहीं होगा तो रक्त में इसकी मात्रा बढ़ जाएगी। जैसे मोटापाए अधिक वजनए उच्च रक्तचापए रक्त में अतिरिक्त वसाए किडनी संबंधी विकारए अत्यधिक शराब का सेवनए कुछ रासायनिक दवाओं के दुष्प्रभावए अत्यधिक यात्राए कम पानी पीना आदि। इन कारणों से यूरिक एसिड का उत्सर्जन पर्याप्त नहीं हो पाता है और रक्त में इसका स्तर बढ़ सकता है।

कभी.कभी रक्त में यूरिक एसिड का अधिक उत्पादन होता है और इसका स्तर बढ़ा हुआ पाया जाता है। हेमोलिटिक एनीमियाए सोरायसिसए चयापचय संबंधी विकारों के कारण रक्त विकारए कभी.कभी हार्मोनल असंतुलन के कारण यूरिक एसिड बढ़ने से  गठिया हो सकता है।

“गाउट” आयुर्वेद द्वारा वर्णित विकार ‘वातरक्त’ के समान है। आयुर्वेद के अनुसार इस विकार का कारण यह है कि जो लोग बहुत अधिक तीखेएखट्टे, तले हुए, मसालेदार, पित्त बढ़ाने वाले भोजन का बार.बार सेवन करते हैं, मांस खाते हैं, बहुत अधिक शराब पीते हैं, बहुत अधिक यात्रा करते हैं, बहुत अधिक व्यायाम करते हैं, अतिकष्ट करते है यह वातरक्त की कारणमीमांसा आयुर्वेद मे वर्णन की गई है।

गाउट के कारण क्या शिकायतें होती हैं :
अत्यधिक व्यायाम, अत्यधिक यात्रा, कोई दुर्घटना, सर्जरी, वजन कम होना, अत्यधिक शराब का सेवन, अधिक खाना खाने के कारण जब रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है तो जोड़ों की विभिन्न शिकायतें शुरू हो जाती हैं। पैर के अंगूठे के जोड़ों में सूजन आ जाती है। तेज दर्द होने लगता है. समय के साथ यह बीमारी, घुटनों, कोहनी, कलाई और अन्य जोड़ों तक फैल सकती है। तीव्र दर्द रात में अधिक होता है। जोड़ सूजा हुआए लाल और गर्म होता है। समय के साथ यह सूजन कम हो जाती है। कभी.कभी त्वचा छिल जाती है। कुछ रोगियों को हल्का बुखारए भूख न लगना और शरीर में दर्द जैसी शिकायतें भी अनुभव होती हैं। यह विकार लंबे समय तक रहने पर बाद में दर्द और जकड़न बढ़ जाती है। सूजन कम ज्यादा होती जाती है

गठिया के दुष्प्रभाव
गाउट के विकार इन लक्षणो के साथ मे गुर्दे में पथरी (kidney stones), गुर्दे की कार्यक्षमता में कमी, मोटापा, वजन बढ़ना, उच्च रक्तचाप जैसी शिकायतें हो सकती हैं।

वातरक्त अवसरवादी उपचार: जब गाउट का निदान किया जाता हैए तो कई लोगों को शुरू में दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं। दर्द गंभीर होने पर कभी.कभी स्टेरॉयड भी निर्धारित किया जाता है। साथ हीए रक्त में यूरिक एसिड के उत्पादन को कम करने और यूरिक एसिड के उत्सर्जन को बढ़ाने वाली रासायनिक दवाएं दी जाती हैं। इससे कई लोगों को राहत भी मिलती है। लेकिन अगर खान.पान ठीक से न रखा जाए तो यह बार.बार परेशानी का कारण बनता है। कुछ लोग दर्द निवारक दवाओं के आदी हो जाते हैं जबकि अन्य को इसके दुष्प्रभाव का अनुभव होता है।

आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
आयुर्वेद के अनुसार गाउट वातए पित्त और कफ दोषों के असंतुलन के कारण होता है जिसमें विशेष रूप से वात दोष की भूमिका होती है। आयुर्वेद में इसे ष्वातरक्तष् के नाम से जाना जाता हैए जो वात और रक्त के दूषित होने के कारण होता है। 

आयुर्वेद मे गाउट का इलाज करते समय रोगी का उम्र, वजन, शारीरिक स्थिति, आहार, यात्रा की मात्रा, व्यसन, शरीर में पहले से इलाज किए गए अन्य विकार, अन्य रासायनिक दवाएं और तनाव को ध्यान में रखा जाता है और इस प्रकार का निर्धारण करके उपचार शुरू किया जाता है। 

गाउट को ठीक करने के लिए आयुर्वेद में शोधन (शरीर का शुद्धिकरण), शमन (लक्षणों को कम करना) और उचित आहार.विहार के माध्यम से संतुलन बहाल करने के उपाय बताए गए हैं।

आयुर्वेदिक उपचार

औषधि

  1. त्रिफला :- त्रिफला का उपयोग शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने और पाचन तंत्र को ठीक रखने में किया जाता है। यह यूरिक एसिड के स्तर को नियंत्रित करने में सहायक हो सकता है।
  2. गुग्गुल :- गुग्गुल गाउट के दर्द और सूजन को कम करने में प्रभावी है। यह वात दोष को संतुलित करने और जोड़ों के स्वास्थ्य में सुधार लाने के लिए उपयोगी है।
  3. अश्वगंधा :- अश्वगंधा एक शक्तिशाली हर्बल औषधि है, जो जोड़ों की ताकत बढ़ाने और शरीर में वात दोष को संतुलित करने में मदद करती है।
  4. हरिद्रा (हल्दी) :- हल्दी में मौजूद करक्यूमिन गाउट के दर्द और सूजन को कम करने में सहायक है। हल्दी का नियमित सेवन शरीर में यूरिक एसिड को नियंत्रित करता है।
  5. निर्गुंडी तेल :- इस तेल की मालिश से जोड़ों का दर्द कम होता है और सूजन में राहत मिलती है।

पंचकर्म उपचार
औषधीय तेल से हल्की मालिश (oil massage) और फिर स्वेदन (steam) के बाद आवश्यकतानुसार एक निश्चित अवधि के लिए तेलबस्ती (oil enema), निरुह बस्ती (medicated decoction enema), विरेचनकर्म (purgation), रक्तमोक्षण (blood letting) इन पंचकर्म उपचार (detox procedures) का उपयोग किया जाता है।

विकार की गंभीरता कम होने के बाद भी पेट की कुछ दवाओं को थोड़ी देर तक जारी रखना फायदेमंद होता है

आयुर्वेदिक आहार और जीवनशैली
  1. पानी का भरपूर सेवन :- शरीर से यूरिक एसिड को बाहर निकालने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पीना आवश्यक है।?
  2. संतुलित आहार :- गाउट से पीड़ित लोगों को हल्का और सुपाच्य आहार लेना चाहिए। मसालेदारए तैलीय और अधिक प्रोटीन वाले भोजन से बचना चाहिए क्योंकि यह यूरिक एसिड की मात्रा को बढ़ा सकता है।
  3. योग और व्यायाम :- योगासन और हल्का व्यायाम करने से शरीर में वात दोष को नियंत्रित किया जा सकता है और जोड़ों में लचीलापन आता है।
  4. अनुलोम.विलोम :- यह प्राणायाम वात दोष को नियंत्रित करने में अत्यधिक सहायक है।

क्या न करें ?

  1. शराब और अत्यधिक प्रोटीन युक्त आहारए जैसे रेड मीट और सी.फूड से बचें।
  2. ज्यादा तनाव लेने से बचेंए यह वात दोष को बढ़ा सकता है।
  3. ठंडे और भारी भोजन का सेवन न करें।

निष्कर्ष
गाउट एक जटिल समस्या हो सकती है लेकिन आयुर्वेदिक उपचारए उचित आहार और जीवनशैली में बदलाव से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। नियमित आयुर्वेदिक उपचार और स्वस्थ जीवनशैली अपनाकर गाउट के दर्द से राहत पाई जा सकती है। आयुर्वेद की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह बीमारी को जड़ से ठीक करने की दिशा में कार्य करता है न कि सिर्फ लक्षणों को दबाने पर जोर देता है।

आयुर्वेद का उद्देश्य शरीर में संतुलन बनाए रखना और दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रदान करना है।

डॉ. संजना धोटकर
BAMS, MD SCHOLAR
शासकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय, नागपुर

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