Vatrog Me Bahuupyogi Calcium V Vitamin D

आधुनिक जीवन शैली के सहारे जीने वालों करोडों लोग आज वातरोग से पीडित है। सच तो यह है कि शरीर में पाए जाने वाले हर एक तत्व की मात्रा जब तक संतुलित बनी रहती है तब तक हमारा शरीर स्वस्थ बना रहता है। शरीर मे युरिक एसिड की बढ़ोतरी से ही गाउट ;वातरोगद्ध रोग होने से शरीर के जोड़ों में असहनीय दर्द रहने लगता है। उम्र बढ़ने पर अक्सर लोगों में वातरोग की शिकायत होने लगती है। इसी कारण  जोड़ो  में दर्द और ऐंठन होती है जिससे सूजन आ जाती है। इस रोग में प्रायः जोड़ों में गांठें बन जाती है। यह कई तरह की होती हैंए जैसे . एक्यूटए आस्टियोए रुमेटाइड़ इत्यादि। 

मनुष्य जीवन में तीन अवस्थाओं में वृद्धावस्था में ही व्यक्ति अधिकांशतः वातरोग की समस्या से ज्यादा परेशान रहता है। वैसे  तो आयुर्वेद में अस्सी प्रकार के वातरोग निहित हैं। आजकल युवापीढ़ी भी अनियमित खान.पान व रहन सहन से इस रोग की चपेट में आ गए हैं। वातरोग से आम व्यक्ति तभी प्रभावित होता है जब शरीर एक प्राकृतिक पदार्थ यूरिक एसिड से छुटकारा पाने में असमर्थ होता है। वात रोग साधारणतया अंगूठेए घुटने और कलाइयों को प्रभावित करता है। वात रोग होने का मुख्य कारण फास्टफूडए जंक फूड व वसायुक्त खाना खाने तथा अजीर्ण की समस्या भी है। वैदिक आयुर्वेद के अनुसार दूषित आम खाने से भी गठिया रोग हो सकता है। यही नहीं अब तो चिकित्सकों की मानें तो कॉफी  के सेवन  से भी वातरोग का खतरा बढ़ सकता है। एक अनुसंधान में यह पाया गया है कि जो लोग एक दिन में चार कप कॉफी  का सेवन करते हैंए उनमें भी गठिया रोग होने की आशंका का दुगुनी होती है। वातरोग में अधिकांश मामलों में मूल कारण अवशोषण की कमी होती है! जैसे जैसे उम्र चालीस पार पहुंचती है तो लोगों मे अवशोषण की क्षमता भी कम होती रहती है। 

हमारे देश की लगभग 60 से 70 प्रतिशत आबादी विटामिन्स की कमी से प्रभावित है। स्वास्थ्य संबंधी शोधों के मुताबिक अब तो 25 वर्ष की उम्र के बाद प्रोटीन युक्त खान पान में कमी लाना जरूरी हो गया है। हमें संतुलित आहार लेने की आदत को अपनाना चाहिए जिसमें कार्बोहाइड्रेटए प्रोटीनए वसाए विटामिन और खनिज सब कुछ सीमित और संतुलित मात्रा में हो जहाँ तक हो सके शाकाहारी भोजन पर ही जोर देना चाहिए।

वातरोग में पीड़ितों को ज्यादा से ज्यादा पानी पीना चाहिए व हरी सब्जी का सेवन करना चाहिए ताकि बॉडी में ऊर्जा बनी रहे। लहसुन इस रोग में बेहद लाभकारी है। यह मानकर चलें कि शरीर में पाए जाने वाले हर तत्व की मात्रा जब तक संतुलित बनी रहती है तब तक ही हमारा शरीर स्वस्थ बना रहता है। 

वातरोग में विटामिन डी व कैल्शियम की भूमिका 

विटामिन डी

  1. विटामिन डी वातरोग के प्रभावी प्रबन्धन हेतु महत्वपूर्ण है जोकि हड्डियों और जोड़ों को मजबूती व सूजन को कम करने में सहायक होता है। रोगी की जीवन गुणवत्ता में सुधार करने हेतु विटामिन डी शरीर को कैल्शियम अवशोषित करने में मदद करता है।
  2. विटामिन डी हड्डियों के घनत्व को बनाए रखने में मदद करता है यानि कि हड्डि़यों के फ्रैक्चर के जोखिम को कम करता हैं व उन्हें घिसने से बचाता है।
  3. विटामिन डी सूजन.रोधी होते हैं जो कि वातरोग में सूजन व दर्द को कम करते है। विटामिन डी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करता है साथ ही शरीर को स्वप्रतिरक्षित बीमारियों से लड़ने में मदद करता है।
  4. वातरोग में विटामिन डी का पर्याप्त स्तर बनाए रखना जरूरी है जैसे विटामिन डी युक्त आहार लेना व डॉक्टर की सलाह से सप्लीमेंट लेना लाभदायक होता है।
  5. विटामिन डी की मदद से फिजिकल फंक्शन में सुधार से जोड़ों और मांसपेशियों की कार्यक्षमता बेहतर होती है जिससे मरीजों में होने वाली कमजोरी व चलने फिरने में कठिनाई कम होती है।
  6. विटामिन डी प्रतिरक्षा प्रणाली संतुलित करता है जिससे ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया को कंट्रोल किया जा सकता है। इससे वात रोग के लक्षणों में कमी आती है।
  7. विटामिन डी का पर्याप्त स्तर बोन्स और जोड़ों की संरचना को बनाए रखने में मददगार होता है।
  8. विटामिन डी रक्त वाहिकाओं की कार्यक्षमता को बनाए रखने में मदद करता है तो हृदय रोग के जोखिम को भी कम करता है।
  9. डॉक्टर की सलाह लिए बिना विटामिन डी के सप्लिमेंटस का सेवन न करें चूंकि इससे अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्यांए हो सकती हैं।

वातरोग के प्रबन्धन में विटामिन के पर्याप्त स्तर को बनाए रखने में कई महत्वपूर्ण स्त्रोत हैं जैसे  प्राकृतिक और प्रमुख स्त्रोत सूरज की रोशनी है जिससे त्वचा सूरज की किरणों के सम्पर्क में आने से शरीर  में विटामिन डी का निर्माण होता है।

नियमित रुप से अंडे के सेवन से पर्याप्त विटामिन डी शरीर को मिलता है। फोर्टीफाइड खाद्य पदार्थों में दूध, अनाज, संतरा ले सकते हैं।
वसायुक्त मछली में सैल्मेनए मैकेरलए सार्डिन और ट्यूना जैसी फिश विटामिन डी का उत्कृष्ट स्त्रोत है।

कैल्शियम

  1. कैल्शियम हड्डियों का मुख्य घटक है। वातरोग में हड्डियों और जोड़ों में कमजोरी आती है। कैल्शियम बोन्स को मजबूती बनाए रखने में मदद करता है व बोन्स के घनत्व  को बढ़ाता है।
  2. वात रोग में हड्डियों और जोड़ों के घिसने ;क्षरणद्ध की समस्या होती है लेकिन पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम का सेवन करने से दर्द में निजात मिलती है। जोड़ों की कार्यक्षमता भी बढ़ती है।
  3. वातरोग से पीड़ित मरीजों में ऑस्टियोपोरोसिस ;हड्डियां कमजोर व पतलीद्ध का खतरा बढ़ जाता है तब पर्याप्त कैल्शियम के सेवन से इस स्थिति को रोका जा सकता है।
  4. कैल्शियम का सीधा प्रभाव सूजन पर नहीं होता है लेकिन हड्डि़यों को मजबूती प्रदान करने से दर्द व सूजन से राहत मिलती है।
  5. कैल्शियम हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु अति आवश्यक है। यह हड्डि़यों का पुर्ननिर्माण और मरम्मत करने में सहायक है।
  6. फ्रैक्चर के जोखिम को कम करना व बोन्स को टूटने से बचाता है।

कैल्शियम के स्त्रोत
भोजन के माध्यम से पर्याप्त कैल्शियम हमें प्राप्त होता है। दूधए दहीए पनीरए हरी पत्तेदार सब्जियां व बादाम  कैल्शियम के अच्छे स्त्रोत हैं। यदि आहार से पर्याप्त कैल्शियम न मिले तो डाॅक्टर की सलाह से सप्लिमेंट्स ले सकते हैं। हाँए यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि कैल्शियम का सेवन करते समय विटामिन डी का पर्याप्त स्तर बनाए रखना जरूरी है क्योंकि विटामिन डी . कैल्शियम अवशोषण में सहायक होता है। 

चेतन चौहान
महामंदिर गेट के निकट, जोधपुर (राज.)

Preventive measures of Osteoporosis

बढ़ती उम्र के साथ कई बीमारियां स्वाभाविक रूप से होती हैं। जिसमे से आस्टीओपोरोसिस एक है। इस विडिओ के माध्यम से डॉ. अंजू ममतानी द्वारा आस्टीओपोरोसिस से बचने के उपाय, पंचकर्म, घरेलू नुस्खे व आयुर्वेदिक औषधि की जानकारी प्राप्त करें।

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