जब भी किसी के पैरों में दर्द होता है तो सबसे पहले लोगों के मन में यही ख्याल आता है कि यह कैल्शियम की कमी के कारण होने वाला मामूली दर्द है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। इसलिए जब भी पैरों में दर्द हो, इस बात पर गौर करें कि रात को सोते समय दर्द के साथ कहीं आपके पैरों में खिंचाव या कंपन तो महसूस नहीं होता? अगर ऐसे लक्षण नजर आएं तो इसे केवल ऑस्टियोपोरोसिस या आर्थराइटिस की वजह से होने वाला दर्द समझकर नजरअंदाज न करें। कई बार ’रेस्टलेस लेग सिंड्रोम’ नामक न्यूरोलॉजिकल समस्या की वजह से भी ऐसी दिक्कतें नजर आती हैं।

आज की महिला का जीवन घर-परिवार और ऑफिस की जिम्मेदारी निभाते हुए अति व्यस्त हो गया है। इसी व्यस्तता के कारण वह अपने स्वास्थ्य की अपेक्षित देखभाल नहीं कर पाती। असमय खानपान, व्यायाम का अभाव, पर्याप्त नींद न लेना, आहार में पोषक तत्वों की कमी, तनावग्रस्त जीवन इत्यादि कारणों से वह अनेक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रही है। आज अधिकांश महिलाओं की शिकायत है ’पैरों में दर्द’। सामान्य-सी तकलीफ समझा जाने वाला पैरों का दर्द अनेक कारणों से होता है। उनमें से एक कारण है ’’रेस्टलेस लेग सिन्ड्रोम’’ (RLS)। आइए, इसकी विस्तृत जानकारी प्राप्त करें।

यह एक ऐसा रोग है जिसमें रोगी को पैरों में असहज अनुभूति होती है। उसे ऐसा महसूस होता है, जिसका वर्णन करना मुश्किल है। रोगी के कथनानुसार असहज प्रकार का दर्द, वेदना, सुई या पिन चुभने जैसी पीड़ा, खिंचाव जैसी अनुभूति, पैर सुन्न होना इत्यादि तकलीफें होती हैं। बस, यही रेस्टलेस लेग सिन्ड्रोम है। कुछ रुग्णों को कम तो कुछ को अधिक तकलीफ होती है। इसमें रोगी सो नहीं सकता, चलने की इच्छा (Urge to move) होती है। चलने से तुरंत आराम मिलता है, भले ही वह लाभ अस्थायी हो। पैरों को खींचने (Streching), योग या अन्य शारीरिक कार्यों से आराम मिलता है। लगातार, तीव्रगति से पैरों की ऊपर-नीचे हलचल करने से भी लाभ होता है। अलग-अलग रोगियों को तकलीफ कम-ज्यादा रहती है। कभी-कभी यह अनुभूति हाथों में भी हो सकती है।

लगातार बैठने या लेटने, निरंतर टी.वी, देखने, पुस्तक पढ़ने से भी ये लक्षण बढ़ते हैं। इस रोग के लक्षण शाम के समय तक बढ़ते जाते हैं। कुछ रुग्णों में लक्षण सोते समय तथा कुछ को पूरे दिन व रात को महसूस होते हैं। अधिकांश रोगियों को शाम के समय दर्द की ज्यादा शिकायत रहती है व सुबह के समय तकलीफ कम महसूस करते हैं। इसमें रोगी को नींद में कष्ट होता है। RLS से ग्रस्त रुग्ण को डिप्रेशन व एन्जाइटी अधिक होती है।

RLS रोग महिलाओं में पुरुषों की अपेक्षा दुगना होता है। यह सामान्यतः उम्र बढ़ने के साथ होता है। उम्र की किसी भी अवस्था में हो सकता है, यहां तक की बाल्यावस्था में भी। रेस्टलेस लेग्स सिन्ड्रोम फाउंडेशन द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार 20 वर्ष की आयु से पहले 45 प्रतिशत रोगियों को पहली बार इस व्याधि के लक्षण हुए थे। वृद्धावस्था में होने वाला त्स्ै कष्टप्रद होता है। लौह तत्व की कमी, गर्भावस्था व किडनी विकार की अंतिम स्टेज में यह प्रायः होता है। कुछ न्यूरोलाजिकल रोग RLS से जुड़े होते हैं, जैसे-पार्किन्सन, स्पाइनल सेरिबेलर एट्रोपी, स्पाइनल स्टेनोसिस, लम्बोसैक्रल रेडिकुलोपैथी इत्यादि। इसके अलावा नेशनल स्लीप फाउंडेशन के अनुसार 25 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं तृतीय ट्राइमेस्टर (7,8,9 माह) में RLS से आक्रान्त होती हैं। 1672 में सर थॉमस विलियस RLS के बारे मे जानकारी देने वाले प्रथम वैज्ञानिक थे। उन्होंने RLS के कारण होने वाली नींद में बाधा व पैरों की असहज चालध्गति (Movement) की जानकारी दी ।

प्रकार:- इसके 2 प्रकार होते है-प्राथमिक (Primary) व द्वितीयक (Secondary) ।

1.प्राथमिक RLS – का कोई कारण नहीं होता जिसे Idiopathic कहते हैं। इसकी शुरुआत धीरे-धीरे, 40-45 वर्ष की उम्र से पहले होती है। कुछ महीनों या वर्षों तक यह गायब हो जाता है। धीरे-धीरे यह बढ़ता है और उम्र के साथ इससे ग्रस्त रुग्ण में अधिक तकलीफ होती है। बच्चों में होने वाले RLS को बढ़ती उम्र का दर्द (Growing Pain) कहकर गलत निदान किया जाता है।

द्वितीयक RLS – यह प्रकार 40 वर्ष की उम्र के बाद अचानक होता है और प्रारंभ से ही इसका दर्द प्रतिदिन होता है। यह किसी रोग के कारण या औषधि के सेवन से भी हो सकता है।

क्यों होता है ऐसा
सामान्य अवस्था में पैरों की मांसपेशियों और जोड़ों को सक्रिय बनाए रखने के लिए ब्रेन से न्यूरोट्रांसमीटर्स के जरिये विद्युत तरंगों का प्रवाह होता है। बैठने या लेटने की स्थिति में स्वाभाविक रूप से यह प्रवाह अपने आप रुक जाता है, लेकिन जब ब्रेन से विद्युत तरंगें लगातार प्रवाहित हो रही होती हैं तो लेटने या बैठने पर भी पैरों में कंपन जारी रहता है। दरअसल, ब्रेन से निकलने वाला हॉर्मोन ’डोपामाइन’ इन तरंगों के प्रवाह को नियंत्रित करता है और इसकी कमी की वजह से लगातार इन तरंगों का प्रवाह उसी ढंग से हो रहा होता है जैसे नल को ठीक से बंद न करने पर उससे लगातार पानी की बूंदें टपकती रहती हैं। 

कारण:- रक्ताल्पता अधिकांशतः 20 प्रतिशत रुग्णों में यह रक्त में लौह तत्व की कमी से होता है। इसके अन्य कारणों में वेरीकोज वेन्स (Varicose Veins), फोलेट व मैग्नेशियम की कमी (Folate & Magnesium Deficiency), फाइब्रोमाइलजिया (Fibro Myalgia), नींद में सांस लेने में कष्ट (Sleep Apnea), यूरेमिया (Uremia), थायराइड का रोग, हाथ-पैरों की नसों में विकृति (Peripheral Neuropathy), पार्किन्सन रोग, आटोइम्यून रोग जैसे Sjogren’s Syndrome, सीलियक रोग, गठिया वात हैं। गर्भावस्था में रोगग्रस्त रुग्णा के लक्षण बढ़ जाते हैं। इसके अलावा, डायबिटीज और किडनी के मरीजों को भी यह बीमारी हो सकती है। प्रेग्नेंसी के दौरान भी कुछ स्त्रियों को ऐसी समस्या होती है, जो कि डिलीवरी के बाद अपने आप दूर हो जाती है। शरीर में हॉर्मोन संबंधी असंतुलन की वजह से भी व्यक्ति के शरीर में ऐसे लक्षण नजर आते हैं। हाई ब्लडप्रेशर के मरीजों के पैरों में तकलीफ हो सकती है। आनुवंशिक कारण भी इसके लिए जिम्मेदार होते है। 

अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि 36 प्रतिशत रुग्णों में रक्तवाहिनियों के रोग (Vein Diseases) होते हैं। इस रोग का संबंध ADHD (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) से होता है। दोनों रोगों में न्यूरोट्रांसमीटर डोपामिन की विकृति होती है। इन दोनों रोगों में दी जाने वाली औषधि से मस्तिष्क स्थित डोपामिन का स्तर प्रभावित होता है। कुछ औषधियों से भी RLS हो सकता है। RLS से ग्रस्त रुग्णों में यह औषधियां लेने से लक्षण बढ़ते जाते हैं, जैसे उलटी दूर करने की कुछ औषधियां (¼Some Antiemetics), सर्दी की औषधियां (Anti Cold Medications), डिप्रेशन दूर करने की औषधियां (Antidepressants), मानसिक विकार व मिर्गी की औषधि  (Antipsychotics and Certain Anticonvulsants) इत्यादि ।

  • कमर या पीठ की सर्जरी से RLS के लक्षण बढ़ते हैं या अन्य प्रकार की सर्जरी से RLS भी हो सकता है। 
  • 60 प्रतिशत से अधिक रुग्णों में जीन्स की विकृति (Genetics) से RLS के लक्षण मिलते हैं।
  • रिसर्च में ज्ञात हुआ है कि RLS से ग्रस्त रुग्णों में डोपामिन व लौहतत्व (Iron System) का स्तर (Level) प्रभावित होता है।

निदान:- RLS के निदान के लिए कोई विशेष जांच नहीं होती। इसके निदान में 4 लक्षण मुख्यतः मिलते हैं।

  1. इसके लक्षण रात्रि में बहुत तीव्र होते हैं, जबकि रोगी को सुबह कोई तकलीफ नहीं रहती। बहुत कम रुग्णों को दिन में भी तकलीफ हो सकती है।
  2. रोगी को एक प्रकार का दर्द महसूस होता है, जिसमें दाहयुक्त, चुभने वाली, सुन्न कर देने वाली या अलग प्रकार की पीड़ा पैरों में होती है। इसमें रोगी की तीव्र इच्छा होती है कि उसे कुछ देर के लिए चलना चाहिए।
  3. दर्द की अनुभूति आराम करने व नींद में बढ़ती है। रोगी शिकायत करता है कि लंबे समय तक बैठे रहने से दर्द बढ़ता है, जैसे कि लंबे समय तक कार या हवाई जहाज की यात्रा, किसी मीटिंग में या लंबे समय तक कार्यक्रम में बैठे रहना।
  4. RLS से ग्रस्त रुग्ण को चलने से पैरों में आराम मिलता है। यह आराम तब तक रहता है, जब तक रोगी चलता रहता है। तीव्र प्रकार के रोग में जब शरीर की हलचल कम हो जाती है, तब फिर लक्षण बढ़ जाते हैं।

उपरोक्त चारों लक्षणों को 2003 में National Institute of Health (NIH) पैनल में अंतर्भाव किया है।

उपचार:- RLS की रोकथाम के लिए कोई विधि नहीं बताई गई है। यदि RLS किसी रोग के कारण होता है, तो उस रोग का उपचार ही इसकी चिकित्सा है। उपचार के अंतर्गत जीवनशैली में परिवर्तन मुख्य मुद्दा माना गया है। इसके अंतर्गत रोगी को दोपहर में नींद नहीं लेने की सलाह दी जाती है ताकि रात में गहरी नींद आए। आधुनिक औषधि में Dopamine Antagonist या Gabapentin Enacarbil दी जाती है। आराम न होने पर (Resistant Cases)Opioids दी जाती है, पर इन औषधियों के दुष्प्रभाव भी होते हैं जैसे कि जी मिचलाना, चक्कर, भ्रम, दोपहर में नींद के वेग (Attack) आना इत्यादि ।

द्वितीयक प्रकार के RLS का उपचार रोगानुसार किया जाता है। इसमें लौह तत्व व विटामिन ’ई’ की कमी, वेरीकोज वेन व थायराइड रोग के कारण होती है। इनकी चिकित्सा करने से RLS के लक्षण स्वयं ही समाप्त हो जाते हैं। पैरों की मांसपेशियों को खींचने, चलने व पैरों को घुमाने (स्ट्रेच करने) से अस्थायी लाभ मिलता है। चलने व घूमने के बाद आराम करने से लक्षण फिर होते हैं। पैरों की मालिश, गर्म सेंक, हीटिंग पैड या बर्फ के पैक, वाइब्रेटरी पैड, अच्छी नींद की आदत (Good Sleep Habit) से दर्द में राहत मिलती हैं।

आधुनिक उपचार 
लौह तत्व (आयरन) – RLS से ग्रस्त रोगी को सिरम फेरिटिन लेवल (Serum Ferritin Level) की जांच करानी चाहिए। इसका स्तर कम से कम 50 नहसस होना जरूरी है। आयरन की औषधियां फेरिटिन लेवल चेक करने के बाद ही दी जाती हैं।

  • डोपामिन एंटागोनिस्ट का प्रयोग भी लाभकारी है। इसके अंतर्गत प्रामीपैक्सोल (Pramipexole), रोपीनीरोल (Ropinirole), रोटीगोटीन (Rotigotine), व कैबरगोलिन (Cabergoline) इत्यादि औषधियों का समावेश होता है। इनसे RLS के रुग्ण को लाभ होता है, नींद अच्छी आती है। लिवोडोपा (Levodopa) भी प्रभावकारी औषधि है। Ropinirole से बेहतर औषधि प्रामीपैक्सोल है।
  • RLS में प्रयुक्त अन्य औषधियां गाबापेन्टीन (Gabapentin) या प्रेगोबेलिन (Pregabalin) है। यह तीव्र (Moderate o Severe) प्राथमिक RLS में प्रयोग करते हैं। इसके अलावा ओपीऑइड्स (Opioids) का प्रयोग भी किया जाता है, पर इसके दुष्प्रभाव अधिक हैं। ऐसे रोगी को निद्राजनक औषधियां डायजेपाम (Diazepam) या क्लोनेजेपाम (Clonazepam) नहीं दी जातीं।

आयुर्वेदिक उपचार
आयुर्वेदानुसार इसका कारण त्रिदोष असंतुलन से रस – रक्तादि धातु में विकृति होकर पैरों की नाड़ियां दूषित होती है, जिससे नाड़ियों में संचार बराबर न होने से पैरों में ऐंठन, चिमचिमायन, अजीब दर्द इत्यादि RLS के लक्षण मिलते हैं। अतः आयुर्वेद में रस व रक्तधातुगत चिकित्सा करनी चाहिए। इसमें मुख्यतः पुनर्नवा मंडूर, स्वर्णमाक्षिक, अभ्रक भस्म, कासीस भस्म, लौह भस्म, मुक्ता भस्म, ताप्यादि लौह, यशद भस्म, कामदूधा रस, गोदंती भस्म, ताम्र भस्म इत्यादि औषधियां चिकित्सक के मार्गदर्शन में लें। दर्द, ऐंठन होने पर महावातविध्वंस रस, एकांगवीर रस, सूतशेखर रस, महायोगराज गुग्गुल का सेवन करें।

  • एकल द्रव्यों में त्रिफला, पुनर्नवा, अर्जुन, दशमुल, तुलसी, अजवायन, त्रिकटु, गुडूची. शतावरी, नागरमोथा, कुटकी, चित्रक, काली द्राक्ष, हरिद्रा, दारूहरिद्रा, इन्द्रजव, वचा के प्रभावकारी परिणाम मिलते हैं।
  • पंचकर्म में स्नेहन, स्वेदन, बस्ति चिकित्सा, पिंडस्वेद के उत्तम परिणाम मिलते हैं। 
  • योग चिकित्सा में पैरों का संधि संचालन, पैरों के सूक्ष्म व्यायाम, शलभासन, धनुरासन, नौकासन, उत्तानपादासन, ताड़ासन, कोणासन उत्कटासन, का नियमित अभ्यास करने से लाभ होता है।

सावधानियां एवं बचाव
अपने भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियों और मिल्क प्रोडक्ट्स को प्रमुखता से शामिल करें।
एल्कोहॉल एवं सिगरेट से दूर रहने की कोशिश करें।
इससे संबंधित कोई भी लक्षण दिखाई दे तो बिना देर किए डॉक्टर से सलाह लें। आमतौर पर डोपामाइन हॉर्मोन का स्तर बढ़ाने वाली दवाओं के नियमित सेवन से यह समस्या दूर हो जाती है।
अगर 40 साल की उम्र के बाद इस बीमारी से संबंधित कोई भी लक्षण नजर आए तो उसे अनदेखा न करें।
चूंकि यह न्यूरोलॉजी से जुड़ी समस्या है, इसलिए सिंकाई या मालिश जैसे घरेलू उपचार से थोड़ी देर के लिए राहत मिलती है, पर यह इसका स्थायी हल नहीं है।
इस प्रकार RLS से ग्रस्त रुग्णों को उपरोक्त आयुर्वेदिक औषधियों के साथ ही पंचकर्म व योगाभ्यास नियमित करने से निश्चित रूप से लाभ मिलता है।

डॉ. अंजू ममतानी
'जीकुमार आरोग्यधाम',
238, गुरु हरिक्रिशन मार्ग, जरीपटका, नागपुर

Health benefits of Fenugreek Seeds

Kitchen is a dispensary, the spices available here are useful in digestion and many diseases. Among the spices, “Fenugreek” is a very beneficial spice. Know its medicinal uses from Dr. Anju Mamtani

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