गठियावात (आर्थराइटिस) एक ऐसी स्थिति है जिसमें जोड़ों में सूजन और दर्द होता है, जिससे व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है। यह बीमारी मुख्य रूप से उपास्थि (कार्टिलेज) के क्षरण के कारण होती है, जिससे हड्डियों के बीच घर्षण बढ़ता है और दर्द तथा सूजन का अनुभव होता है। गठियावात एक दीर्घकालिक स्थिति हो सकती है लेकिन सही उपचार और जीवनशैली में बदलाव से इसे नियंत्रित किया जा सकता है । आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा के समन्वय से गठियावात के मरीज अपने जीवन की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं। आयुर्वेदिक चिकित्सा गठियावात के लक्षणों को कम करने और जोड़ों को पुनः स्वस्थ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं ।

गठियावात के कारण व्यक्ति की गतिशीलता भी सीमित हो जाती है। गठियावात को ठीक से समझने और इसका प्रभावी उपचार करने के लिए इसके कारणों, निदान और चिकित्सा को जानना आवश्यक है।

गठियावात के कारण: गठियावात कई कारणों से उत्पन्न हो सकता है। इनमें से कुछ मुख्य कारण इस प्रकार हैं:-

  1. आनुवंशिकता (Genetics): अगर परिवार में किसी को गठियावात की समस्या रही है, तो इसकी संभावना अगली पीढ़ी में भी बढ़ सकती है।
  2. आयु (Age): उम्र बढ़ने के साथ-साथ जोड़ों की उपास्थि कमजोर हो जाती है, जिससे गठियावात का खतरा बढ़ता है।
  3. मोटापा (Obesity): शरीर का अतिरिक्त वजन जोड़ों पर दबाव डालता है, विशेष रूप से घुटनों, कूल्हों और रीढ़ की हड्डी पर, जिससे गठियावात का खतरा बढ़ जाता है।
  4. संक्रमण (Infection): जोड़ों के संक्रमण या चोट के कारण भी गठियावात हो सकता है। अगर जोड़ों के आसपास संक्रमण होता है, तो वह जोड़ों की संरचना को नुकसान पहुंचा सकता है।
  5. ऑटोइम्यून रोग (Autoimmune Diseases): कुछ स्थितियों में शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अपनी ही उपास्थि को नुकसान पहुंचाने लगती है जैसे रुमेटॉइड आर्थराइटिस में होता है।
  6. आघात (Injury): यदि किसी व्यक्ति को पहले कोई गंभीर चोट लगी हो तो उस जोड़ में गठियावात विकसित होने की संभावना अधिक होती है।

आयुर्वेद के अनुसार, गठियावात को “संधिवात” या ‘आमवात’ के रूप में जाना जाता है। यह वात दोष के असंतुलन और शरीर में आम (विषैले पदार्थों) के संचय के कारण होता है। आयुर्वेद में इसका निदान शरीर के तीन दोषों-वात, पित्त और कफ के संतुलन और रोगी की व्यक्तिगत प्रकृति (प्रकृति), रोग की अवस्था, और जीवनशैली के आधार पर किया जाता है। आयुर्वेदिक निदान का आधार नाड़ी, मल, मूत्र, जिह्वा, आवाज, स्पर्श, नेत्र, और आकृति जैसे आठ आयामों पर आधारित होता है, जिसे ‘अष्टविध परिक्षा’ कहा जाता है।

नाड़ी परिक्षण और गठियावात
गठियावात का निदान मुख्य रूप से वात दोष के असंतुलन पर आधारित होता है। यदि वात दोष की प्रधानता दिखती है, तो इसका अर्थ है कि वात दोष अधिक सक्रिय है, जिससे शरीर में शुष्कता, कठोरता, और दर्द उत्पन्न होता है। नाड़ी की गति और बल का परीक्षण करके यह निर्धारित किया जाता है कि रोग कितनी गहराई तक फैल चुका है।

आयुर्वेद में निदान का महत्व
आयुर्वेदिक चिकित्सा में निदान केवल शारीरिक लक्षणों पर ही आधारित नहीं होता, बल्कि यह व्यक्ति की मानसिक स्थिति, जीवनशैली, आहार और उनके पर्यावरण के प्रभाव को भी ध्यान में रखता है। इसका उद्देश्य रोग के मूल कारण को समझकर दोषों के संतुलन को बहाल करना होता है। इस आयुर्विज्ञान में निदान के बाद रोगी के लिए व्यक्तिगत उपचार योजना बनाई जाती है, जिसमें आयुर्वेदिक दवाएं, पंचकर्म उपचार, और जीवनशैली में सुधार शामिल होते हैं।

गठियावात का निदान
  1. लक्षणों का मूल्यांकन (Symptom Evaluation): गठियावात के लक्षणों में दर्द, सूजन, कठोरता और जोड़ों की गतिशीलता में कमी शामिल होती है। इन लक्षणों का मूल्यांकन चिकित्सक द्वारा किया जाता है।
  2. शारीरिक परीक्षण (Physical Examination): चिकित्सक जोड़ों की जांच करते हैं, सूजन, गर्माहट, लालिमा, और जोड़ों की गति को देखते हैं।
  3. इमेजिंग परीक्षण (Imaging Tests): एक्स-रे, एमआरआई (MRI), और अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके जोड़ों के अंदरूनी हिस्सों की स्थिति को देखा जाता है। इससे उपास्थि के क्षरण और हड्डियों के बीच घर्षण का पता चलता है।
  4. रक्त परीक्षण (Blood Tests): कुछ प्रकार के गठियावात, जैसे रुमेटॉइड आर्थराइटिस, के निदान के लिए रक्त परीक्षण किया जाता है। यह परीक्षण सूजन व प्रतिरक्षा प्रणाली से संबंधित जानकारी प्रदान करते हैं।

गठियावात (आर्थराइटिस) के कई प्रकार होते हैं, जिनमें से कुछ प्रकार, जैसे रुमेटॉइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis), का निदान रक्त परीक्षण के माध्यम से किया जाता है। रक्त परीक्षणों का उद्देश्य शरीर में सूजन, प्रतिरक्षा प्रणाली की गतिविधि, और अन्य संकेतकों का मूल्यांकन करना होता है, जो इस स्थिति के निदान में सहायक होते हैं। रुमेटॉइड आर्थराइटिस एक ऑटोइम्यून रोग है, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली गलती से अपने ही जोड़ों पर हमला करती है, जिससे सूजन, दर्द, और जोड़ों की क्षति होती है।

रुमेटॉइड आर्थराइटिस और रक्त परीक्षण
  1. रुमेटाइड फैक्टर (Rheumatoid Factor – RF)
  2. एंटी-सीसीपी एंटीबाबॉडी (Anti-Cyclic Citrullinated Peptide Antibody – Anti-CCP)
  3. ईएसआर (Erythrocyte Sedimentation Rate – ESR)
  4. सी-रिएक्टिव प्रोटीन (C-Reactive Protein – CRP)
  5. पूर्ण रक्त गणना (Complete Blood Count – CBC)
  6. एचएलए-बी27 (HLA-B27)
 
आधुनिक चिकित्सा
आधुनिक चिकित्सा में गठियावात के उपचार के लिए दर्दनिवारक, सूजन कम करने वाली दवाओं, और शारीरिक उपचार (फिजियोथेरेपी) का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इन औषधों का दुष्प्रभाव भी प्रमाणित है। कुछ मामलों में, सर्जरी या जोड़ों के प्रत्यारोपण की भी आवश्यकता पड़ सकती है। आधुनिक चिकित्सा में प्रयोग होने वाले कुछ सामान्य उपचार इस प्रकार हैं:-

1.दर्दनिवारक दवाएं(Pain Relievers), 2. स्टेरॉयड इंजेक्शन 3. फिजियोथेरेपी, 4. सर्जरी

आयुर्वेदिक चिकित्सा
गठियावात को वात दोष का परिणाम माना जाता है। इसे संतुलित करने के लिए विभिन्न औषधियों और जीवनशैली में बदलाव की सलाह दी जाती है।

गठियावात (गठिया) एक आम जॉइंट संबंधित समस्या है जिसमें जोड़ों में सूजन, दर्द और कठोरता होती है। आयुर्वेद में इसे वातज विकार माना गया है और इसके उपचार में उचित जीवन शैली और आहार पर विशेष ध्यान दिया जाता है। यहाँ कुछ आयुर्वेदिक उपाय और जीवनशैली की सलाह दी गई हैं जो गठियावात में राहत दे सकते हैं:

1. आहार संबंधी उपाय
कफावृत वात को संतुलित करने वाला आहार, वात का बढ़ना गठियावात का मुख्य कारण माना जाता है, इसलिए वात संतुलित करने वाले आहार का सेवन करें। इसमें गर्म, ताजे और सुपाच्य भोजन शामिल करें।

तेल और घी :- भोजन में घी और तिल का तेल शामिल करें, ये वात को शांत कर जोड़ों को चिकनाई प्रदान करते हैं।

अदरक और हल्दी :- अदरक और हल्दी का सेवन सूजन को कम करने और दर्द से राहत देने में सहायक होता है।

खट्टे और ठंडे पदार्थों से बचें :- खट्टे फल, दही, और ठंडी चीजों का सेवन कम करें क्योंकि ये वात को बढ़ाते हैं।

हरी पत्तेदार सब्जियां :- पालक, मेथी और अन्य हरी पत्तेदार सब्जियाँ गठियावात में लाभकारी हो सकती हैं।

ताजे फल : संतरा, सेब और अंगूर जैसे फल शरीर को पोषण देते हैं और इम्यून सिस्टम को मजबूत करते हैं।

2. आयुर्वेदिक दवाइयाँ : 
गठियावात में आयुर्वेदिक औषधियां प्रभावशाली होती है। निम्नलिखित वनौषधियां गठियावात के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। जो गुणवत्ता से तथा अपनी अपनी कार्यमुक्तता से गठियावात रोग में लाभकारी सिद्ध होती है।

क. हड़जोड़ (Cissus quadrangularis) – हड़जोड़ एक प्राचीन आयुर्वेदिक औषधि है, जो हड्डियों की पुनर्निर्माण प्रक्रिया को तेज करता है। यह हड्डियों को मजबूत बनाने में सहायक होता है और उपास्थि के टूटने से रोकता है। गठियावात के कारण होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में यह बहुत प्रभावी है। जिसे हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है। इसमें हड्डियों के पुनर्निर्माण की क्षमता होती है, जिससे हड्डियों के टूटने या कमजोर होने पर उन्हें जल्दी से ठीक होने में मदद मिलती है। हड़जोड़ एंटीऑक्सीडेंट गुण से सूजन को कम करने में सहायक होते हैं, जो गठियावात के दर्द को नियंत्रित करता है। हड़जोड़ एक अत्यंत प्रभावी औषधि है।

ख. लाक्षा (Laccifer laccha) – लाक्षा एक प्राकृतिक रेजिन (गोंद) है, जिसे आयुर्वेद में यह हड्डियों को पुनः मजबूत करने में मदद करता है और जोड़ों की सूजन को कम करने में सहायक होता है। गठियावात के मरीजों के लिए यह विशेष रूप से लाभकारी होता है क्योंकि यह जोड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाता है क्योंकि यह उपास्थि को पुनर्निर्मित करने में मदद करती है और जोड़ों की संरचना को सुरक्षित रखती है।

लाक्षा एक प्राकृतिक तत्व है जो गठियावात के कारण कमजोर हड्डियों को मजबूत करने में यह औषधि मददगार है। इसके साथ ही यह सूजन को भी कम करती है, जिससे जोड़ों में होने वाला दर्द और जकड़न कम होती है।

ग. शुद्ध गुग्गुल (Commiphora Mukul) –  गुग्गुल एक और आयुर्वेदिक औषधि है, जो अपनी एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुणों के लिए प्रसिद्ध है। यह शरीर में सूजन को कम करता है और जोड़ों के लिपिड प्रोफाइल में सुधार करता है, जिससे गठियावात के दर्द को कम करने में मदद मिलती है। गुग्गुल जोड़ों की गति को बेहतर बनाने और दर्द से राहत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लाक्षा गठियावात में यह लिपिड प्रोफाइल को भी सुधारने में मदद करती है, जिससे जोड़ों की सेहत में सुधार होता है। गुग्गुल के एंटीऑक्सीडेंट गुण शरीर को हानिकारक तत्वों से बचाने में मदद करते हैं, जो गठियावात के लक्षणों को न केवल कम करते है बल्कि जोड़ों की गति को भी सुधारने में सहायक होती है।

घ. यशद भस्म (Zinc) – 50 mg : यशद भस्म उपास्थि को टूटने से बचाने और हड्डियों की मरम्मत में सहायक है। यह सूजन को कम करता है और जोड़ों की सेहत को बेहतर बनाता है।

यशद भस्म या जिंक हड्डियों और जोड़ों के लिए आवश्यक तत्व है। यह हड्डियों के पुनर्निर्माण में सहायक होता है और सूजन को नियंत्रित करता है। गठियावात में, जिंक उपास्थि के टूटने को रोकने में मदद करता है और हड्डियों को पोषण प्रदान करता है, जिससे जोड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है।

गठियावात के कारण उपास्थि कमजोर हो जाती है, जिससे जोड़ों में घर्षण और दर्द होता है। जिंक इस प्रक्रिया को धीमा करने में मदद करता है और हड्डियों को पोषण देता है, जिससे जोड़ों की कार्यक्षमता बनी रहती है।

च. कपर्दिक भस्म (Calcium Carbonate) – कैल्शियम हड्डियों की मजबूती के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह उपास्थि के टूटने को रोकने और जोड़ों की स्थिरता में सुधार करने में मदद करता है । कपर्दिका भस्म जो  कैल्शियम कार्बोनेट है, हड्डियों को मजबूती देती है और जोड़ों की स्थिरता को बढ़ाती है। यह उपास्थि को टूटने से बचाने और हड्डियों को पुनः मजबूत करने में मदद करता है।गठियावात के मरीजों में हड्डियों की कमजोरी आम होती है, और यह घटक हड्डियों को स्थिरता प्रदान करता है। यह जोड़ों की स्थिरता में सुधार करता है और उपास्थि को टूटने से बचाने में सहायक होता है।

छ. सहजन (Moringa Oleifera) – सहजन, जिसे ’’मिराकल ट्री’’ भी कहा जाता है, यह सूजन कम करने और हड्डियों को पोषण देने में सहायक होता है। यह जोड़ों की गतिशीलता को सुधारने में मदद करता है और गठियावात के दर्द और सूजन को कम करने में प्रभावी होता है। 

सहजन में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो शरीर की कोशिकाओं की सुरक्षा करते हैं और हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखते हैं। यह जोड़ों की गतिशीलता में सुधार के साथ साथ गठियावात के दर्द को कम करता है।

सहजन गठियावात के मरीजों में विशेष रूप से प्रभावी दिखी क्योंकि यह जोड़ों की गतिशीलता को बढ़ाती है और लंबे समय तक दर्द से राहत प्रदान करती है। इसलिए इसके नियमित उपयोग से जोड़ों की लचीलापन और गति में सुधार होता है, जिससे मरीज को दैनिक जीवन में अधिक आसानी होती है।

ज. शल्लाकी (Boswellia serrata) – शल्लाकी, जिसे भारतीय लोबान भी कहा जाता है, गठियावात के दर्द और सूजन को कम करने में प्रभावी दिखी ।यह जोड़ों की गतिशीलता को बढ़ाने और उन्हें पुनः स्वस्थ बनाने में सहायक है। शल्लाकी एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधि है,  इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण सूजन और दर्द को कम करते हैं। यह जोड़ों की गतिशीलता को बढ़ाने और उन्हें पुनः स्वस्थ बनाने में सहायक होता और दर्द को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है। 

गठियावात के मरीजों में यह औषधि विशेष रूप से प्रभावी है क्योंकि यह जोड़ों की गतिशीलता को बढ़ाती है और लंबे समय तक दर्द से राहत प्रदान करती है। सल्लकी के नियमित उपयोग से जोड़ों की लचीलापन और गति में सुधार होता है, जिससे मरीज को दैनिक जीवन में अधिक आसानी होती है।

3. जीवनशैली में बदलाव: 
नियमित व्यायाम – हल्की फुल्की स्ट्रेचिंग और योग गठियावात में बहुत सहायक हो सकता है। ’वात’ शांत करने वाले आसन, जैसे त्रिकोणासन और वज्रासन करें।

ध्यान और प्राणायाम – मानसिक तनाव भी वात को बढ़ा सकता है। नियमित ध्यान और प्राणायाम (विशेषकर अनुलोम- विलोम) करने से वात संतुलित रहता है।

मालिश (अभ्यंग) – गर्म तेल से शरीर की मालिश करना वात को संतुलित करता है और जोड़ों के दर्द में राहत देता है। तिल के तेल का उपयोग विशेष रूप से लाभकारी है।

गर्म स्नान – गर्म पानी से स्नान करने से भी जोड़ों की कठोरता कम होती है और दर्द में आराम मिलता है।

आराम और नींद – पर्याप्त आराम और अच्छी नींद गठिया से निपटने के लिए महत्वपूर्ण है। देर रात तक जागने और अत्यधिक शारीरिक श्रम से बचें।

जोड़ों को गर्म रखें – सर्दियों में ठंडी हवा से बचें और जोड़ों को हमेशा गर्म कपड़े से ढक कर रखें।

4. अन्य उपाय :
पंचकर्म – आयुर्वेद में गठिया के उपचार के लिए पंचकर्म चिकित्सा का भी सुझाव दिया जाता है। इसमें विशेष प्रकार के तेल और औषधीय उपचार शामिल होते हैं जो वात को संतुलित करते हैं।

बस्ती चिकित्सा – यह पंचकर्म की एक विधि है जिसमें औषधीय तेलों का उपयोग किया जाता है। यह गठियावात में विशेष रूप से प्रभावी मानी जाती है। 

प्रो. डॉ. राखी मेहरा,
संस्थापक, डॉ. राखी आयुर्विज्ञान,
नई दिल्ली

Cupping Therapy - Useful in Arthritis

A patient suffering from Arthritis groans in pain, in which Cupping Therapy works for pain relief. Dr. G. M. Mamtani is giving direct information.

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