
सदगुणों की खान गुरु नानक देव जी जीवों का उद्धार करते हुए भाई बाला और मरदाना के साथ ब्रिज (वृंदावन, मथुरा) की धरती पर पहुंचे जहां कंस को मारने वाले श्रीकृष्णजी ने अवतार धारण किया व माता यशोदा के घर अनेक कौतुक किए। ब्रिज में गुरु नानक देव जी एक पर्वत के समीप बैठ गए। तब भाई मरदाने ने गुरुजी से कहा कि यमुना नदी के किनारे यह पर्वत खड़ा है इसके समान आजू-बाजू और कोई पर्वत दिखाई ही नहीं दे रहा है। कृपया मेरे मन का यह संशय दूर करें।
अंतर्यामी गुरुजी ने पर्वत का इतिहास बताते हुए भाई बाला व मरदाना को बताया कि त्रेता युग में जब श्री रामचंद्रजी ने समुद्र पर सेतु (पुल) बनवाया, उस समय से ही यह पर्वत यहां पर है। भाई मरदाने ने फिर विनंती की कि गुरुजी इस पर्वत का पूरा वृतांत सुनाएं।
गुरुजी ने बताया जब लंका जाने के लिए समुद्र पर राम सेतु (पुल) बनाना संपूर्ण हो गया तब श्रीरामचंद्रजी ने सभी वानरों से कहा कि अब और पत्थर कोई भी न लाए। आज्ञा पाकर सारे वानरों ने पर्वत (पत्थर) फेंक दिए। उस समय हनुमानजी ब्रिज के इसी स्थान पर इस पर्वत को सिर पर ले आए थे। श्रीरामचंद्रजी की आज्ञा सुनकर हनुमानजी इस पर्वत को सिर पर लेकर यहीं बैठ गए।
तदोपरांत सभी वानर श्री रामचंद्रजी के पास गए। श्रीरामचंद्र जी ने वानरों को देखकर कहा कि शूरवीर हनुमानजी दिखाई नहीं दे रहे हैं। यह सुनकर वानरों ने रामचंद्रजी को सारी बात बताई कि जब आपने आज्ञा की कि पत्थर कोई भी न लाए तब हनुमानजी अपने साथ लाया पर्वत सिर पर धारण किए रास्ते में ही बैठ गए हैं।
श्रीरामचंद्रजी ने कहा कि अब हनुमान के पास जाओ और उसे तुरंत बुला लाओ। एक वानर चलकर हनुमानजी को बुलाने गया। तब हनुमानजी ने उस वानर को बताया कि जब मैं इस पर्वत को लेने गया था तब इस पर्वत में से आवाज आई कि हे श्री राम भक्त हनुमान मुझे नहीं उठाओ, यहीं रहने दो। यदि उठाकर ले जाना है तो मेरी बात ध्यान से सुनो, जहां श्रीरामचंद्र जी के चरण कमल हैं वहीं मुझे टिका देना। यदि किसी अन्य जगह पर ले जाना है तो फिर मैं यहीं पर ही ठीक हूं। तब मैंने पर्वत को वचन दिया कि जहां पर प्रभु श्री रामचंद्रजी हाथ में धनुष पकड़कर खड़े होंगे वहीं उनके चरण कमलों में ही तुम्हें रखूंगा। अब प्रभु श्री रामचंद्रजी की आज्ञा सुनकर मैं बड़ी कठिनाई में पड़ गया हूं। यदि इस पर्वत को यहीं रखता हूं तो मेरा वचन झूठा हो जाएगा और नहीं फेंकता हूं तो मेरा दास धर्म आज्ञा का पालन नाश हो जाएगा जो सही नहीं है। अतः इस पर्वत को मैं यहीं उठाकर बैठा हूं। हनुमानजी की यह सारी बात उस वानर ने श्रीरामचंद्र जी को आकर बताई।
यह सुनकर श्रीरामचंद्रजी ने हनुमानजी का उस पर्वत को दिया वचन पूर्ण करने हेतु फरमाया कि द्वापर युग में मैं श्रीकृष्ण का अवतार धारण करुंगा और इस पर्वत पर काफी लंबे समय तक विचरण करता रहूंगा। यह सुनकर वानरों ने हनुमान जी को श्रीरामचंद्रजी की बात बताई। तब हनुमानजी ने प्रसन्न होकर पर्वत को इसी जगह अर्थात मथुरा में रख दिया और स्वयं श्रीरामचंद्रजी के पास गए।
गुरु नानक देव जी ने भाई बाला व मरदाना को बताया कि उस समय से यह श्रेष्ठ पर्वत यहीं पर है। द्वापर युग में श्री रामचंद्रजी ने श्रीकृष्ण का अवतार धारण कर अपने भक्त हनुमानजी द्वारा लाए इस पर्वत पर लंबे समय तक श्रीकृष्ण के रुप में विचरण किया व लीलाएं की। अंतर्यामी गुरुजी द्वारा सारा प्रसंग सुनकर भाई बाला व मरदाना अत्यंत प्रसन्न हुए।
त्यौहार के दिन वहीं यमुना नदी के किनारे बड़ा मेला लगा जिसमें अनेक ब्रम्हचारी, बैरागी, जती, वैष्णो दिगंबर, तपी, सन्यासी इस मेले में आए थे, मन में लोभ और पाखंड धारण कर ज्ञान की बातें बता रहे थे। नौजवान लड़के, लड़कियां राधा-कृष्ण का वेश धारण कर नाच रहे थे तथा अनेक बुरी नजर से देख रहे थे और मन में काम भावना उत्पन्न हो रही थी। अंतर्यामी गुरु नानक देव जी ने जान लिया कि यहां किसी किसी की भी आत्मा पवित्र नहीं है व सभी विकारों व सांसारिक बंधनों में बंधे हुए हैं इस कारण इनका छुटकारा होना असंभव है। सभी को सतमार्ग व सतनाम से जोड़ने हेतु श्री गुरु नानक देव जी ने ऊंचे सुर में रामकली राग में शबद गाया –
सेई चंदु चड़हि से तारे सोई दिनीअरु तपत रहै….. (श्री गुरू ग्रंथ साहिब अंग 902)
गुरुजी की मधुर आवाज सुनकर सभी गुरुजी के पास आकर बैठ गए। उनमें कई विद्वान थे जिन्होंने विनंती की कि गुरुजी इस शबद का अर्थ समझाएं तब दयालू गुरुजी ने सभी को समझाया कि चांद, सूरज, तारे, धरती और हवा सभी वैसे ही है जैसे त्रेता युग में थे। परंतु कलियुग में आज मनुष्य की बुद्धि मलीन हो गई है। सतयुग में कोई एक पाप करता था तो सारा देश पापी कहलाता था। त्रेता में कोई एक पाप करता था तो सारा नगर पापी जाना जाता था। द्वापर में एक पापी होने पर उसकी कुल पापी समझी जाती थी परंतु कलियुग में जो पाप करता है उसका दंड उसे ही भुगतना पड़ता है। परंतु जिसको सतगुरु बख्श कर नाम दान देते हैं वह पाप दंड से बच जाता है। गुरुजी ने समझाया कि श्री रामचंद्रजी के परिवर्तित रुप जिस श्री कृष्णजी ने द्वापर युग में यहां अवतार धारण कर धरती से पापों को दूर किया उनके चरित्रों को हृदय में धारण कर, वल-छल कपट का त्याग कर प्रेमा भक्ति करें अर्थात प्रेम से प्रभु के गुण गायन करें। कलियुग में कीर्तन प्रधान है और सभी मन लगाकर कलियुग में परमात्मा का नाम जपें।
कलजुग महि कीरतनु परधाना ।
गुरमुखि जपीअै लाइ धिआना ।।
(श्री गुरु ग्रंथ साहिब, अंग 1095)
गुरुजी ने उपदेश देकर सभी का मन निर्मल किया, जिस स्थान पर गुरु नानक देव जी ने सभी को उपदेश दिया वह स्थान वृंदावन-मथुरा में आज ‘गुरुद्वारा गुरु नानक देव जी, टीला साहिब’ के नाम से सुप्रसिद्ध है। सत्य का ज्ञान व सत्व्यवहार का मार्ग दिखाकर, परमात्मा के नाम से जोड़ने वाले ऐसे महान कल्याणकारी अंतर्यामी जगत्गुरु गुरु नानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा संवत 1526 को हुआ, इस वर्ष जिसकी समगणित अंग्रेजी तारीख 15 नवंबर 2024 शुक्रवार को है। उनकी जयंती पर हमारा शत्-शत् नमन।


गुरु नानक जयंती निमित्त गुरु हरिक्रिशन मार्ग, जीकुमार आरोग्यधाम में प्रभातफेरी का भव्य स्वागत
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