हृदय रोग विभिन्न कारणों से पनपते हैं। जो एकदम परिश्रम नहीं करते या शक्ति से अधिक परिश्रम करते हैं, श्रम एवं भोजन के बाद विश्राम नहीं करते हुए सदा ही उत्तेजना
के भीतर रहते है, अत्यधिक भोजन करते हैं, साधारणतः उनका ही हृदय खराब हो जाता है। जब विभिन्न कारणों से शरीर के अंदर संचय की प्रवृत्ति बढ़ती है और रक्त दूषित होकर गाढ़ा बनने लगता है तो वह हृदय की धमनियों में जमने लगता है, जिससे वे सिकुड़ जाती हैं और रक्त का आना-जाना कम होता जाता है। इस कारण हृदय पर दबाव, खिंचाव और दर्द की अनुभूति होती है। हृदय रोग का मुख्य कारण धमनियों में रक्त का जमा होना ही है। कई प्रकरणों में बिना किसी खिंचाव, तनाव या दर्द के अचानक हृदयाघात हो जाता है।

रक्त-शोधक आवश्यक

जब हृदय की धमनियों में रक्त जम जाने से उसे रक्त की आपूर्ति नहीं हो पाती, जिसके कारण एंजोप्लास्टी करवाई जाती है। इसमें धमनी के अंदर स्प्रिंगनुमा यंत्र छोड़ा जाता है, जिससे धमनी थोड़ी खुल जाती है और रक्त आने-जाने की जगह बन जाती है। कई प्रकरणों में बाइपास सर्जरी करवाई जाती है अर्थात् बंद धमनी के स्थान पर दूसरी धमनी जोड़कर रक्त आने-जाने का नया रास्ता बनाया जाता है और रक्त का आवागमन सुचारु हो जाने से हृदय रोग समाप्त समझ लिया जाता है। यह दोनों पद्धतियां काफी कष्टकर, खर्चीली और अस्थायी हैं। चूंकि रक्त की प्रवृत्ति दूषित और जमने की है, अतः एंजोप्लास्टी अथवा बाइपास सर्जरी द्वारा जो मार्ग पुनः बनाया जाता है, वह दूषित रक्त जमने से पुनः बंद हो सकता है। अतः उचित यह होगा कि रक्त जमने की प्रवृत्ति को ही समाप्त कर, दूषित रक्त को शुद्ध किया जाए तथा धमनियों में जमे हुए रक्त को गलाकर बाहर निकाला जाए। यह तभी संभव होगा, जब हम शरीर को विकारमुक्त और रक्त का अधिक से अधिक शुद्धिकरण करें, जिसके लिए प्राणायाम, आसन एवं प्राकृतिक चिकित्सा का सहारा लिया जा सकता है।

परहेज

* चाय, काफी, शराब, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू, मांस, मछली, अंडे हृदय रोगियों के लिए अति हानिकारक हैं। इनके सेवन से रक्त की नसों का संकुचन, रक्त का गाढ़ा होना, कब्ज व गैस का प्रकोप बढ़ जाता है।
* हृदय रोगियों को हो सके तो नमक बंद कर देना चाहिए अथवा भोजन में नमक की मात्रा बहुत कम कर देनी चाहिए।
* तली चीजें, बेसन, मैदा, अचार, गरम मसाले न खाएं। इन चीजों से रक्त में कोलेस्ट्रोल, एसिडिटी एवं गैस का प्रकोप बढ़ता है। सब्जियों को तलने से उनके विटामिन, मिनरल्स एवं जल-तत्व नष्ट हो जाते हैं और वे काली पड़ जाती हैं अर्थात् कार्बनयुक्त हो जाती हैं, जिससे रक्त अशुद्ध और गाढ़ा बनता है।

भोजन के साथ पानी न पिएं

भोजन के साथ पानी पीने से पाचक रस ठंडे होकर पानी के साथ मिल जाते हैं और कुछ ही समय में पानी के साथ पेशाब के अंदर जाकर बाहर निकल जाते हैं। भोजन पेट में करीब 4 घंटे में पचता है। पाचक रस पानी के साथ बह जाने के कारण शरीर में उनकी कमी हो जाती है और पेट में भोजन सड़ता है, जिससे गैस, कब्ज, अशुद्ध रक्त बनता है।

आदर्श आहार

* प्रातः एवं सायं लौकी के रस में 3-4 कलियां लहसुन का रस मिलाकर लेना चाहिए। इससे हृदय की धड़कनें व ब्लडप्रेशर सामान्य होता है। रक्त का जमना समाप्त होता है और रक्तवाहिनियां लचकदार बनती हैं।
* नाश्ते में ताजे फल व केवल एक बार उबाला हुआ गाय का दूध लेना चाहिए।
* भोजन में 60 प्रतिशत सलाद लें। सूप, उबली सब्जियां भी अधिक मात्रा में लेना हितकर है।
* शाम को 2 चम्मच प्याज के रस में 2 चम्मच शहद मिलाकर लेना चाहिए। इससे नस-नाड़ियां खुलती हैं, नींद अच्छी आती है और ब्लडप्रेशर सामान्य रहता है। रात का भोजन 7 बजे कर लेना चाहिए। देर से किया हुआ भोजन कम पचता है तथा पेट में भारीपन और गैस का निर्माण करता है, जिससे हृदय पर दबाव पड़ने की संभावना बढ़ जाती है।
* चाय के स्थान पर एक गिलास पानी में 3-4 तुलसी के पत्ते, थोड़ा-सा अदरक का टुकड़ा उबालकर कुनकुना कर लें। तत्पश्चात् उसमें आधा नींबू व एक या 2 चम्मच शहद मिलाकर लें। यह चाय से अधिक स्वादिष्ट, शक्तिदेय और निर्विकार पेय है।

उपचार

शरीर में जल तत्व की वृद्धि करें: थोड़ा-थोड़ा पानी अथवा फलों और तरकारियों का रस दिन में कई बार लें। इससे रक्त का गाढ़ापन धीरे-धीरे कम होता जाएगा।

सुबह-शाम प्राणायाम एवं हल्के व्यायाम करें: प्राणायाम मात्र से ही काफी मात्रा में रक्त का शुद्धिकरण होता है। 1-1 श्वास से शरीर के अंदर आक्सीजन पहुंचती है तथा प्रश्वास से रक्त की गंदगी या रक्त की अशुद्धियां कार्बन डाईआक्साइड के रूप में बाहर निकल जाती हैं। प्राणायाम बिना किसी दबाव-तनाव और शक्ति के अनुसार ही किया जाना चाहिए। शक्ति के अनुसार हल्के व्यायाम करने से रक्त का संचालन एवं गति सुचारु होती है, जिससे रक्त के जमने की प्रकृति समाप्त होती है। सुबह-शाम टहलना भी हितकर है।

दिन में 2 बार शवासन करें: शवासन करते समय पूरे शरीर को एकदम ढीला छोड़कर लेटें। पूरा ध्यान अपने श्वास- उच्छ्वास पर केंद्रित करें। इसी दौरान अपने हृदय पर ध्यान केंद्रित कर मन में विश्वास लाएं कि मेरे हृदय में रक्त का प्रवाह अच्छी तरह होता जा रहा है और मेरी बंद नस-नाड़ियां खुलती जा रही हैं।

नहाने से पहले पूरे शरीर का सूखा घर्षण करें: नहाते समय जब हम कपड़े उतारते हैं, तब पैर के तलुवों से लेकर सिर तक अपने हाथों से या किसी कपड़े से पूरे शरीर का सूखा घर्षण करने से शरीर की सभी नस-नाड़ियों में रक्त का प्रवाह अच्छी तरह होने लगता है, उनमें लचक आती है तथा जमा हुआ रक्त पिघलता है स्वस्थ, शक्तिशाली और लचकदार हो जाती हैं रक्त में गाढ़ापन उत्पन्न होता है और कोलेस्ट्राल समाप्त हो जाता है।

पेट पर रोज गरम-ठंडा सेंक करें: 5 मिनट गरम सेंक, 2 मिनट ठंडा सेंक 30 मिनट लगातार करें। भोजन से पहले या भोजन के एक-डेढ़ घंटे बाद अर्थात् खाली पेट गरम-ठंडा सेंक करने से लिवर, गालब्लैडर, पैन्क्रियाज, आंतों व अन्य सभी अंगों में प्रसारण एवं संकुचन की प्रक्रिया से लचक उत्पन्न होती है, जिससे पाचनशक्ति बढ़ती है। साथ ही गैस, अपचन व कब्ज समाप्त हो जाते हैं और गैस का दबाव हृदय व धमनियों पर नहीं पड़ता।

गरम पैर स्नान: हृदय रोगी को थोड़ी देर के लिए गरम पानी में पैर डालना लाभकारी है। इससे रक्त का दबाव पैरों की ओर होता है, हृदय पर दबाव कम पड़ता है, नींद अच्छी आती है और ब्लडप्रेशर सामान्य होता है।

डॉ . नम्रता चैरागडे
प्रोफेसर संहिता विभाग
दत्ता मेघे आयुर्वेदिक कॉलेज, नागपुर

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