विज्ञान के विकास के साथ ही वैद्यकीय जगत में अनेक नए आयाम स्थापित हो रहे हैं। कृत्रिम मानव अंगों के निर्माण पर उल्लेखनीय सफलता हासिल की गई। इनमें कृत्रिम हृदय तथा हड्डियों के ज्वाइंट तैयार हुए, लेकिन अब तक कृत्रिम रक्त का निर्माण करने में सफलता नहीं मिली है। देश तथा विश्व में लाखों व्यक्ति रक्त के अभाव में प्राण खो रहे हैं। इस क्षेत्र मेें अपेक्षित जागरूकता के अभाव में सफलता का प्रमाण काफी कम दर्ज किया जा रहा है। रक्तदान से बहुत से लोगों का जीवन बचाया जा सकता है। किंतु बहुत से लोग यह समझते हैं कि रक्तदान से शरीर कमजोर हो जाता है और उस रक्त की भरपाई होने में महीनों लग जाते हैैं। लोगों में यह गलतफहमी भी है कि नियमित खून देने से उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है और व्यक्ति को बीमारियां जल्दी जकड़ लेती हैं। यह भ्रम इस कदर फैला हुआ है कि लोग रक्तदान का नाम सुनकर ही सिहर उठते हैं। ‘विश्व रक्तदान दिवस’ समाज में रक्तदान को लेकर ऐसी भ्रांतियां दूर करने और रक्तदान को प्रोत्साहित करने का कार्य करता है।

आयुर्वेद संहिताओं के अनुसार मनुष्य शरीर मुख्यतः 13 तत्वों से निर्मित है। इनमें त्रिदोष-वात, पित्त, कफ व त्रिमल-स्वेद, पुरीष, मूत्र के अलावा सप्तधातु इस प्रकार वर्णित हैं –
’रस रक्त मांस मेदास्थि मज्जा शुक्राणि सप्त धतवः’
अर्थात् रस, रक्त, मांस, मेदा, अस्थि, मज्जा एवं शुक्र (वीर्य)। इन सात धातुओं के कार्य निम्नलिखित रूप से वर्णित हैं-
’प्रीणनं जीवनं लेपनं स्नेहनं धारणं पूरणं गर्भोत्पादन कर्माणि’
इस प्रकार यहां रक्त का कार्य जीवन कहा गया है अर्थात् रक्त ही जीवन है। रक्त के द्वारा ही संपूर्ण शरीर को प्राणवायु की पूर्ति होती है। शरीर का प्रत्येक अणु-कोषाणु रक्त द्वारा ही जीवन प्राप्त करता है। यदि कुछ समय के लिए शरीर के महत्वपूर्ण अंगों को रक्तापूर्ति न हो, तो शरीर मृतप्राय हो जाए। अतः रक्त हमारे जीवन का अभिन्न व महत्वपूर्ण घटक है। इसके बिना जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। रक्त के स्वास्थ्य पर हमारा आरोग्य नियंत्रित रहता है। रक्त तथा पित्त दोनों का साहचर्य संबंध है। दोनों में से किसी भी एक में दोष निर्माण हो जाए तो दोनों का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है। रक्त धातु का निर्माण व संचालन यकृत, प्लीहा व अस्थिमज्जा में होता है, जिसका कार्य पित्त से संबंधित होता है।

रक्तमोक्षण से शुद्धिकरण

आयुर्वेद में रक्त की दूषितावस्था कही गई है रक्त के दूषित होने से भी मानव शरीर में अनेक विकार उत्पन्न होते हैं, जिनमें त्वक् विकार प्रमुख हैं। इनके निराकरण के लिए आयुर्वेद में पंचकर्म के अंतर्गत रक्तमोक्षण का वर्णन किया है। सामान्य अर्थ में रक्तमोक्षण अर्थात् रक्त का निर्हरण यानी ऐसा रक्त जो दूषित होने से शरीर के लिए अनावश्यक है, उसका निराकरण ही है। आयुर्वेद में रक्त को प्रधान धातु कहा गया है। इसके दूषित होने से शरीर की अन्य धातुओं पर प्रभाव पड़ता है।

शरीर में रक्त शुद्ध हो तो मनुष्य का स्वास्थ्य उत्तम रहता है, वर्ना रोगों से ग्रस्त होता है। रक्तमोक्षण से रक्तधातु का पुनर्नवीनीकरण हो जाता है। इस प्रक्रिया से रक्तगत दोष नष्ट हो जाते हैं, नवीन रक्त निर्माण होता है और रक्तदोषों का निर्हरण होता है। त्वचा विकारों में इसका प्रभाव श्रेष्ठतम है। दूषित रक्त का पुनः प्रादुर्भाव नहीं होता, त्वचा का वर्ण निखरता है, पाचन क्रिया सुचारु होती है। शीतपित्त, एक्जीमा, सोरिएसिस, श्वेत कुष्ठ आदि विकार नष्ट होते हैं। इसके अलावा यकृत वृद्धि, प्लीहा वृद्धि, गाउट (गठियावात), माइग्रेन व उच्च रक्तचाप इत्यादि में भी इसके प्रभावी परिणाम मिले हैं। इस तरह रक्तमोक्षण से दीर्घायु एवं आरोग्य की प्राप्ति होती है। रक्त धातु पुष्ट होने पर अन्य धातुएं स्वतः ही पुष्ट होती हैं। रक्त शुद्ध हो तो व्याधि प्रतिरोधक क्षमत्व बढ़ता है। आधुनिक चिकित्सा पद्धति में ब्लडलेटिंग के नाम से इसका प्रचार-प्रसार हो रहा है, परंतु रक्तमोक्षण के नाम से आज भी अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं।

रक्तदान: स्वास्थ्य के लिए हितकारी

रक्तदान व आयुर्वेद का परस्पर संबंध क्या हो सकता है ? इसका विचार करने पर ध्यान में आता है कि आयुर्वेद के ग्रंथों में रक्तदान का प्रत्यक्ष उल्लेख नहीं मिलता, तथापि रक्त संबंधी व्याधियों के प्रतिबंध के लिए अर्थात् प्रिवेंटिव मेज़र (Preventive Measure) के रूप में रक्तदान का लाभ स्वस्थ व्यक्ति को निश्चय ही होता है। रक्त धातु का कार्य जीवन देना है, यह हम पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं। पित्त दोष रक्त धातु के आश्रय से रहकर अपना कार्य करता है। शरीर में पित्त दोष के कार्य पाचन, शरीर की उष्णता, भूख लगना, प्यास लगना, भोजन में रुचि, बुद्धि, प्रतिभाशक्ति, शूरता, शरीर की मृदुता को कायम रखना आदि हैं। यदि पित्त बढ़ गया तो उपरोक्त कार्यों में कहीं न कहीं विकृति निर्मित होती है। पित्त का कार्य सुचारु करने के लिए दोष बढ़ने न पाए, इस बात का ध्यान रखना चाहिए।

शरद ऋतु में निसर्गतः पित्त बढ़ता है। इस कारण कुछ लोगों को बढ़े हुए पित्त से व्याधि निर्माण होने की संभावना होती है। जैसे- मुंह में छाले होना, हाथ-पैरों की जलन, शीतपित्त, अधिक प्यास लगना, पाचन संबंधी विकार इत्यादि। अतः इस ऋतु में पित्त दोष को नियंत्रण में रखने के लिए आयुर्वेदानुसार पंचकर्म के विरेचन व रक्तमोक्षण 2 उपाय बताए गए हैं। जिन्हें स्वास्थ्य रक्षण हेतु रक्तमोक्षण पंचकर्म करना है, उन्हें वर्ष में 1 या 2 बार रक्तदान करना चाहिए। रक्तदान करने हेतु शरद ऋतु (अगस्त-सितंबर) श्रेष्ठ मानी गई है। आवश्यकतानुसार अन्य ऋतुओं में रक्तदान कर सकते हैं। रक्तदान के पूर्व आभ्यंतर स्नेहपान अवश्य करें।

इन बातों का रखें ध्यान

* रक्तदान करने के लिए आपकी उम्र 18 से 60 साल के बीच और वजन 45 किलोग्राम से अधिक हो।
* आपको एचआईवी, हेपाटिटिस बी या सी जैसी बीमारी न हो।
* कम से कम 12 सप्ताह पहले तक रक्त न दिया हो एवं पिछले 12 महीनों में रक्त न लिया हो।
* रक्त देने के स्थान पर किसी तरह का निशान या घाव न हो।
* हीमोग्लोबिन 12.5 से अधिक हो।
* शरीर के अन्य अंग भी नियमित काम कर रहे हों।
* रक्त देने से पहले हल्का नाश्ता/भोजन किया हुआ हो वर्ना उल्टी और घबराहट की शिकायत हो सकती है।
* रक्तदान करने से 3 घंटे पहले पौष्टिक भोजन लें।
* इस बात का ध्यान रखें कि आपका स्वास्थ्य अच्छा हो।
* एक गिलास पानी पीकर रक्तदान करें और उसके बाद भी कुछ तरल पदार्थ लें।
* घबराहट होने पर आराम करें और एक कप चाय या कॉफी पिएं।
* रक्तदान से पहले धूम्रपान न करें। अनिवार्य हो तो इसके 3 घंटे बाद आप यह शौक पूरा कर सकते हैं।
* यदि 48 घंटे पहले आपने एल्कोहल लिया हो, तो आप रक्तदान करने के लिए योग्य नहीं होंगे ।
* अगर कोई महिला रक्तदान करती है, तो इस बात का ध्यान रखें कि उसे महावारी न हो रही हो।
* अगर आप अपने बच्चे को स्तनपान कराती हैं, तो आप रक्तदान नहीं कर सकतीं।
* ध्यान रखें रक्तदान के लिए डिस्पोजेबल सिरिंज का ही प्रयोग किया जा रहा हो।
* रक्तदान से पहले यह सुनिश्चित कर लें कि वह संस्था/डॉक्टर जहां आप रक्तदान करने वाले हैं, वह सभी संबंधित सामान्य निर्देशों का पालन करते हैं या नहीं। आप जिस भी संस्था में रक्तदान कर रहे हैं, वह वास्तव में रक्तदान संस्था के दायरे में आती भी है अथवा नहीं।
रक्तदान की प्रमुख बातें
* मनुष्य के शरीर में रक्त बनने की प्रक्रिया हमेशा चलती रहती है और रक्तदान से कोई भी नुकसान नहीं होता है।
* एक बार में 350 मिलीग्राम रक्त दिया जाता है, जिसकी पूर्ति शरीर में 24 घंटों और गुणवत्ता की पूर्ति 21 दिनों के भीतर हो जाती है।
* जो व्यक्ति नियमित रक्तदान करते हैं, उन्हें हृदय संबंधी व रक्त पित्तगत बीमारियां होने का खतरा कम रहता है।
* हमारे रक्त की संरचना ऐसी है कि उसमें समाहित रेड ब्लड सेल 3 माह में स्वयं ही मर जाते हैं। लिहाजा प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति माह में एक बार रक्तदान कर सकता है।

आजकल रक्तदान का महत्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। आपातकालीन स्थिति में शरीर को रक्त की जरूरत पड़ती है। ऐसे में कई रुग्णों केे परिचित रक्त की खोज में इधर-उधर भटकते हैं। अतः रक्तदुष्टिजन्य व्याधियों से बचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रिवेंटिव मेजर के अंतर्गत रक्तदान अवश्य करना चाहिए। रक्तदान करने से स्वयं को भी लाभ होगा तथा अन्य जरूरतमंदों को भी जीवन मिलेगा। रक्तदुष्टिजन्य रोग होने पर रक्तमोक्षण उपाय शास्त्रों में बताया गया है। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए रक्तदुष्टिजन्य विकारों से बचाव के लिए स्वस्थ व्यक्ति को नियमित रक्तदान अवश्य करना चाहिए। रक्तदान करने से एक प्रकार से रक्त की शुद्धि होती है क्योंकि पुराना रक्त निकल जाने से नए रक्त का पुनः निर्माण होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कार्ल लेंडस्टाइनर नामक विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद् की याद में उनके जन्मदिन 14 जून को ‘विश्व रक्तदान दिवस’ मनाया जाता है। संगठन ने वर्ष 1997 में यह लक्ष्य रखा था कि विश्व के प्रमुख 124 देश अपने यहां स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें। इसका मकसद यह था कि किसी भी व्यक्ति को रक्त की जरूरत पड़ने पर उसके लिए उसे पैसे देने की जरूरत न पड़े। संगठन के आंकड़ों के अनुसार भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है, लेकिन 75 लाख यूनिट ही उपलब्ध हो पाता है। यानी करीब 25 लाख यूनिट खून के अभाव में हर साल सैकड़ों मरीज दम तोड़ देते हैं। भारत की आबादी लगभग सवा अरब है, जबकि रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं है। भारत में कुल रक्तदान में से केवल 49 फीसदी ही स्वैच्छिक होता है।

डायबिटीज और थॉयराइड है तो भी कर सकते हैं रक्तदान​

कई बार बीमारी से ग्रसित होने पर हम रक्तदान से कतराते हैं, लेकिन सरकारी गाइडलाइन के अनुसार डायबिटीज, थॉयराइड और यूरिक एसिड जैसी लाइफ स्टाइल बीमारी से पीड़ित लोग भी रक्तदान कर सकते हैं। बशर्ते डायबिटीज पीड़ित इंसुलिन न ले रहा हो। केवल गोली ले रहा हो। पिछले चार महीने से दवाइयों में बदलाव न किया हो। और शुगर नियंत्रित हो। ऐसे ही यदि आप थायराइड पीड़ित हैं, लेकिन यह पूरी तरह नियंत्रित है तो ब्लड डोनेट कर सकते हैं। ऐसे ही यूरिक एसिड की समस्या से पीड़ित भी ब्लड डोनेट कर सकता है।

आजकल रक्तदान का महत्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। आपातकालीन स्थिति में शरीर को रक्त की जरूरत पड़ती है। ऐसे में कई रुग्णों केे परिचित रक्त की खोज में इधर-उधर भटकते हैं। अतः रक्तदुष्टिजन्य व्याधियों से बचने के लिए प्रत्येक व्यक्ति को प्रिवेंटिव मेजर के अंतर्गत रक्तदान अवश्य करना चाहिए। रक्तदान करने से स्वयं को भी लाभ होगा तथा अन्य जरूरतमंदों को भी जीवन मिलेगा। रक्तदुष्टिजन्य रोग होने पर रक्तमोक्षण उपाय शास्त्रों में बताया गया है। इसी सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए रक्तदुष्टिजन्य विकारों से बचाव के लिए स्वस्थ व्यक्ति को नियमित रक्तदान अवश्य करना चाहिए। रक्तदान करने से एक प्रकार से रक्त की शुद्धि होती है क्योंकि पुराना रक्त निकल जाने से नए रक्त का पुनः निर्माण होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कार्ल लेंडस्टाइनर नामक विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद् की याद में उनके जन्मदिन 14 जून को ‘विश्व रक्तदान दिवस’ मनाया जाता है, उन्होंने ही ब्लड ग्रुप का पता लगाया था। 

देश में हर दिन करीब 12 हजार लोगों की मौत समय पर ब्लड न मिल पाने के कारण हो जाती है। और ब्लड की यह कमी होती है रक्तदान से जुड़ी जानकारी के अभाव और भ्रमों के कारण रक्तदान न करने से। भारत सरकार के अनुसार हर साल लगभग 15 लाख यूनिट ब्लड की जरूरत होती है जबकि केवल 11 लाख यूनिट रक्त ही उपलब्ध हो पाता है। यानी लगभग 4 लाख यूनिट रक्त की कमी हर साल होती है। विभिन्न शोध बताते हैं कि रक्तदान करने से न केवल रक्त पाने वाले की जान बचती है बल्कि रक्त देने वाले को भी कई फायदे होते हैं। एक शोध के अनुसार नियमित रक्तदान करने वाले लोगों में हार्ट अटैक का खतरा 88 प्रतिशत तक कम होता है। इसके अलावा हृदय से जुड़ी अन्य बीमारियों का खतरा 33 प्रतिशत तक कम हो जाता है। इसके अलावा ऑक्सफोर्ड एकेडमिक के अनुसार नियमित रक्तदान करने से पेट, गले, फेफड़े और आंतों के कैंसर का खतरा भी कम होता है। इससे लिवर सेहतमंद रहता है, जिससे शरीर डिटॉक्स होता है। इससे इम्यूनिटी बढ़ती है।

डॉ. जी.एम. ममतानी एम.डी.
(आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)
‘जीकुमार आरोग्यधाम’, 238,
नारा रोड, गुरु हरिक्रिशनदेव मार्ग,
जरीपटका, नागपुर-14
फोन : (0712) 2645600, 2646600, 3590400
9373385183 (Whats App)

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