देश में तेजी से बढ़ रहे हृदय रोग को अर्जुन की मदद से रोका जा सकता है । भारत में बहुतायत में मिलने वाले अर्जुन के पेड़ में विद्यमान तत्व हृदय रोग से बचाने के लिए कारगर हैं । शोध के मुताबिक अधिकांश हृदय रोगियों में कोलेस्ट्राल व अन्य हानिकारक वसा की बढ़ी हुई मात्रा उच्च रक्तचाप व मोटापे की अवस्था में और लिवर में जमा वसा को दूर करने का भी कार्य करती है । हृदय रोग होने की अवस्था में भी यह औषधि का प्रयोग अन्य दवाओं के साथ करने महत्वपूर्ण लाभ होता है।

प्रकृति में जितने भी पेड़-पौधे दिखाई देते है, आयुर्वेद चिकित्सा में सभी पेड़-पौधे वनौषधियों के रूप में किसी न किसी रोग विकार को नष्ट करते है। प्रकृति की ऐसी गुणकारी वनौषधि है-अर्जुन। इसकी छाल हृदय रोगियों के लिए सबसे गुणकारी वनौषधि है। अर्जुन की छाल एलोपैथी औषधि डिजिटेलिस की तरह हृदय रोगों पर नियंत्रण रखती है। अर्जुन की छाल को जब औषधि के रूप में सेवन किया जाता है तो संकुचित रक्त वाहिनियों में रक्त संचार तीव्र गति से होने लगता है और हृदयाघात अर्थात हार्ट अटैक की सम्भावना नष्ट हो जाती है।

अर्जुन वृक्ष भारत में होनेवाला एक औषधीय सदाहरित वृक्ष है। लगभग 60 से 80 फिट ऊंचा यह वृक्ष देश के लगभग सब प्रान्त खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हिमालय के तराई वाले क्षेत्र और शुष्क पहाड़ी क्षेत्रों में पैदा होता है। मानव जीवन के लिए अर्जुन वृक्ष एक वरदान स्वरूप है।  

वानस्पतिक परिचय

इसकी छाल पेड़ से उतार लेने पर फिर उग आती है। औषधि के रूप में छाल का ही प्रयोग होता है। अतः इसे उगने के लिए कम से कम दो वर्षा ऋतुएं चाहिए। एक वृक्ष में छाल तीन साल के चक्र में मिलती है। छाल बाहर से सफेद, अंदर से चिकनी, मोटी तथा हल्के गुलाबी रंग की होती है। लगभग 4 मिलीमीटर मोटी यह छाल वर्ष में एक बार स्वयमेव निकलकर नीचे गिरती है। इसका स्वाद कसैला, तीखा होता है तथा गोदने पर वृक्ष से एक प्रकार का दूध निकलता है। वसंत ऋतु में वृक्ष पर नए पत्ते आते है जो छोटी-छोटी टहनियों पर लगे होते है। इसके पत्ते अमरूद के पत्ते के आकार के 6 से 20 से. मी. लम्बे आयताकार होते है। सफेद-पीले हरियाली युक्त छोटे-छोटे फूल मंजरियों में आते हैं। इनमें हलकी सुगंध भी होती है। इसके फल लम्बे-अंडाकर, धारियों वाले जून से अगस्त के बीच लगते है और शरद ऋतु में पकते हैं इसके फल ही अर्जुन वृक्ष के बीज हैं। अर्जुन वृक्ष का गोंद स्वच्छ, भूरा-सुनहरा व पारदर्शी होता हैं। यह गोंद भी खाने के काम आता है तथा हृदय के लिए हितकारी माना जाता है। भारत में अर्जुन वृक्ष की कम से कम 15 प्रजातियां हैं। सभी वृक्षों की औषधीय क्षमता अलग-अलग होती है इसी कारण यह पहचान करना बहुत जरूरी है कि कौन से वृक्ष की छाल औषधि रूप में हृदय रक्तवह संस्थान पर कार्य करती है। औषधीय गुण वाले अर्जुन वृक्ष की छाल अन्य पेड़ों की छाल की तुलना में कहीं अधिक मोटी तथा नरम हाती है। रेशा रहित यह छाल अंदर से रक्त जैसी लाल रंग की होती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम

अर्जुन वृक्ष की गुणवत्ता को देखते हुए पाण्डु पुत्र अर्जुन के जितने नाम हैं, वे सभी अर्जुन वनौषधि के पर्याय कहे जाते हैं। जनसाधारण में अर्जुन को ’काह’ के नाम से संबोधित किया जाता है। देश के विभिन्न प्रदेशों में अर्जुन को अलग-अलग नामों से संबोधित किया जाता है।

इसे धवल, ककुभ तथा नदीसर्ज (नदी-नालों के तट पर होने के कारण) भी कहा जाता ह। साधारण बोलचाल की भाषा में इसे कहुआ तथा सादड़ों नाम से जाना जाता हैं।

संस्कृत में इसे – ककुभ, हिंदी में अर्जुन, बंगला में- अर्जुन गाछ, तेलगु में- तेल्लमदिद, कन्नड़ में मदिद, तमिल में- मरूद्मरभ या बेल्म, अंग्रजी में- अर्जुन कहा जाता है। वानस्पतिक नाम टर्मिनेलिया अर्जु न (Terminalia arjuna) है।

आयुर्वेद चिकित्सा के अनुसार अर्जुन की छाल रस में कषाय, तिक्त, गुण में लघु, रूक्ष, विपाक में कटु, वीर्य में शीतल, प्रभाव में हृदय रोगों के लिए गुणकारी होती है। छाल कषाय, लघु एवं रूक्ष होने से कफ और शीतल होने से पित्त विकृति को नष्ट करती है।

आयुर्वेदाचार्य महर्षि चरक ने अर्जुन को संकोचक और मूत्रल वर्णन किया है। महर्षि सुश्रुत ने शुक्र विकृति में अन्य औषधियों के साथ अर्जुन को गुणकारी बताया है। चक्रपाणि दत्त ने हृदय रोग विनाशक व आयुवर्द्धक कहा है।

अर्जुन (काह) रूक्ष होने के कारण हृदय रोगों को नष्ट करने के साथ मेदोहर अर्थात् मोटापे को कम करता है। मोटापा बढ़ने से हृदय रोगों की उत्पत्ति होने लगती है। यही नहीं अर्जुन की छाल हृदय की निर्बलता को नष्ट करती है।

रासायनिक संघटन

अर्जुन की छाल में पाए जाने वाले मुख्य घटक हैं-बीटा साइटोस्टेरोल, अर्जुनिक अम्ल तथा फ्रीडेलिन। अर्जुन अम्ल ग्लूकोज के साथ एक ग्लूकोसाइड बनाता है, जिसे अर्जुनेटिक कहा जाता है। अर्जुन की छाल में पाए जाने वाले अन्य घटक इस प्रकार हैं –
टैनिन्स – छाल का 20 से25 प्रतिशत भाग टैनिन्स से ही बनता है। पायरोगेलाल व केटेकॉल दो ही प्रकार के टेनिन होते हैं।
कैल्शियम – कैल्शियम की प्रचुरता के कारण ही यह हृदय की मांसपेशिंयों में सूक्ष्म स्तर पर कार्य कर पाता है।
लवण – अर्जुन की राख में कैल्शियम कार्बोनेट लगभग 34 प्रतिशत होता है। अन्य क्षारों में सोडियम, मैग्नीशियम व एल्युमीनियम प्रमुख हैं।
विभिन्न पदार्थ – शंकर, रंजक पदार्थ,विभिन्न कार्बनिक अम्ल व उनके ईस्टर्स हाते है।

उपयोगिता

छाल टेनिंग मटेरियल के रूप में प्रयोग में लाई जाती है। प्रतिवृक्ष 9 से 45 कि. ग्रा. छाल प्राप्त होती है। छाल का औषधीय उपयोग हृदय रोग व धमनियों में रक्त प्रवाह के रोगों के लिए किया जाता है। हड्डी टूटने पर छाल पाउडर के रूप में दूध के साथ इस्तेमाल की जाती है। अर्जुन के पत्तों पर टसर-रेशम कीड़े भी पाले जाते हैं। फल का उपयोग औषधि में टॉनिक के रूप में किया जाता है।

औषधीय गुण

वाग्भट्ट ने सबसे पहले इस औषधि के हृदय रोगों में उपयोगी होने की विवेचना की थी। उनके बाद चक्रदत्त और भाव मिश्र ने भी अर्जुन वृक्ष की छाल को हृदय रोगों की महौषधि स्वीकार किया। चक्रदत्त ने ऐसा माना है कि जो घी, दूध या गुड़ के साथ ही अर्जुन वृक्ष की छाल का चूर्ण नियमित सेवन करता है, उसे हृदय रोग, जीर्ण ज्वर, रक्त पित्त जैसे रोग कभी नहीं होते और वह दीर्घायु होता है। यह समस्त प्रकार के हृदय रोगों में उपयोगी है।

निर्धारणानुसार प्रयोग

1) हृदय में शिथिलता आने पर या शोथ होने पर (क्रानिक कन्जेस्टिव फैल्योर) अर्जुन की छाल व गुड़ को दूध में मिलाकर औटाकर पिलाते है। हृदयाघात, हृदयशूल में अर्जुन की छाल से सिद्ध दूध अथवा 3 से 6 ग्राम छाल घी या गुड़ के शर्बत के साथ देते है।
2) कफज हृदय रोग होने पर अर्जुन की छाल के चूर्ण में पुष्कर मूल का चूर्ण मिलाकर हल्के उष्णजल के साथ सेवन करने से बहुत लाभ होता हैं।
3) त्रिदोष विकृति से हृदय रोग की उत्पत्ति होने पर अर्जुन की छाल का चूर्ण, मुलहटी का चूर्ण, पुष्करमूल और बलामूल का चूर्ण 10-10 ग्राम चूर्ण मधु मिलाकर सेवन करने से बहुत लाभ होता है।

अन्य उपयोग

* यह रक्त पित्त रोकता है तथा वासा पत्र के स्वरस के साथ मिलाकर देने पर टी. बी. रोग की खांसी तुरंत दूर करता है।
* इसकी छाल का चूर्ण उच्च रक्तचाप में लाभकारी है।
* यह चूर्ण मूत्र विरेचक हैं। कफ पित्त शामक है। स्थानीय लेप के रूप में बाह्य रक्तस्त्राव तथा व्रणों में पत्र स्वरस या त्वक् चूर्ण का प्रयोग करते हैं।
* खूनी बवासीर में खून बहना रोकता है।
* हड्डी टूटने पर इसकी छाल का स्वरस दूध के साथ देते है, इससे रोगी को आराम मिलता है, सूजन व दर्द कम होते हैं तथा शीघ्र ही सामान्य स्थिति आने में मदद मिलती है।
* अर्जुन की छाल का चूर्ण गिलोय के रस के साथ सेवन करने से जीर्ण ज्वर नष्ट होता है।
अर्जुन की छाल से बहुत से आयुर्वेदिक घृत, क्वाथ, चूर्ण, अर्जुनारिष्ट, तेल आदि बनाए जाते है।

अर्जुनादि चूर्ण

अर्जुन की छाल, रास्ना और दूधिया बच, नागबला की जड़, खिरैटी की जड़, बड़ी हरड़ का छिलका, पुष्करमूल, पिप्पली, कचूर और सौंठ 10-10 ग्राम मात्रा में लेकर कूट-पीसकर बारीक चूर्ण बनाकर रखें। 3-3 ग्राम चूर्ण शुद्ध घी के साथ सेवन करने से सभी तरह के हृदय रोगों का प्रकोप कम होता है।

अर्जुन घृत

अर्जुन की छाल को थोड़ा सा कूटकर जल में उबाल कर, छानकर अर्जुन छाल का कल्क बनाकर शुद्ध घी में मिलाकर पाक करें। इस तरह घृत पाक विधि से निर्मित अर्जुन घृत 6 ग्राम से 10 ग्राम मात्रा में सेवन करने से और दूध पीने से हृदय सशक्त बनता है।

अर्जुन पाक

अर्जुन की छाल को कूटकर दूध में डालकर देर तक आग पर पकाएं। जब खोया बन जाए तो उसमें गुड़ मिलाकर दोबारा आग पर पकाएं। उसमें नागकेसर, दालचीनी, लौंग, जायफल, नागरमोथा, धनिया, सौंठ, काली मिर्च, पीपल, असगंध, हरड़, तेजपात, इलायची का चूर्ण मिलाकर गुड़ के साथ बनी चाशनी में डालकर कुछ देर पकाकर आग से उतारकर लौह भस्म मिलाकर रखें। इस तरह से निर्मित अर्जुन पाक को प्रतिदिन 10 ग्राम से 20 ग्राम मात्रा में सेवन करने पर हृदय रोग के साथ रक्तक्षय, प्रमेह, शोथ (सूजन), वात विकार और शारीरिक निर्बलता नष्ट होती है। शिरोरोग भी नष्ट होते है।

अर्जुनारिष्ट

अर्जुन की छाल के साथ शास्त्रों में वर्णित अन्य वनौषधियों को मिलाकर अर्जुनारिष्ट का निर्माण किया जाता हैं। 10 से 20 ग्राम मात्रा में इतना ही जल मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से हृदय रोगों का प्रकोप शांत होता है। फेफड़ो के सभी विकार नष्ट होते है। रक्त संचार को संतुलित करता है। अनिद्रा की विकृति नष्ट होती है।

अर्जुन छाल और हृदय रोग

देश में तेजी से बढ़ रहे हृदय रोग को अर्जुन की मदद से रोका जा सकता है। भारत में बहुतायत में मिलने वाले अर्जुन के पेड़ में विद्यमान तत्व हृदय रोग से बचाने के लिए कारगर हैं। इस छाल के चूर्ण के साथ कुछ औषधियां पुष्कर मूल, शंखपुष्पी, बिडंग, ब्राम्ही, वचा, गुग्गुल, ज्योतिष्मती, पुनर्नवा, सर्पगंधा मिला देने के बाद तैयार औषधीय योग हृदय रोग के लिए जिम्मेदार हानिकारक वसा को कम करने में कारगर है। हृदय रोगियों पर इसके इस्तेमाल के दौरान 75 प्रतिशत रोगियों में सफल परिणाम मिले है। रोगियों पर अध्ययन के दौरान ज्ञात हुआ है कि इस औषधीय योग से उनके कोलेस्ट्राल, एल डी एल और टी जी काफी कम हुआ व हृदय के लिए लाभकारी वसा एच डी एल बढ़ा पाया गया। शोध के दौरान यह भी पता चला कि यह औषधि एच डी एल और एल डी एल (हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन व लो डेंसिटी लाइपोप्रोटीन फैट) के अनुपात को सही रखने का काम करती है। शोध के मुताबिक अधिकांश हृदय रोगियों में कोलेस्ट्राल व अन्य हानिकारक वसा की बढ़ी हुई मात्रा उच्च रक्तचाप व मोटापे की अवस्था में और लिवर में जमा वसा को दूर करने का भी कार्य करती है। हृदय रोग होने की अवस्था में भी अर्जुन का प्रयोग अन्य औषधियों के साथ करने में महत्वपूर्ण लाभ होता है।

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