हृदय हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है। सम्पूर्ण शरीर में रक्त का संचारण सुचारू रूप से यह निंरतर करते रहता है। इस पर किसी भी तरह का आघात होने पर मनुष्य की तत्काल मुत्यु हो जाती है। शारीरिक तथा मानसिक आघात, ज्यादा व्यायाम, तीखे आहार द्रव्यों का सेवन, चिंता-भय,त्रास इत्यादि से अपक्व वस्तु (अयोग्य पचन, चयापचय प्रक्रिया से उत्पन्न) का सेवन, समय पर मल-मूत्र का त्याग न करना, दुर्बलता इत्यादि से यह व्याधिग्रस्त हो जाता है।

अग्नि की मन्दता होकर अपक्व वस्तु निर्माण होकर- हायपरलिपिडीमिया अथवा कोलेस्ट्रॉल की मात्रा रक्त में बढ़ जाती है। वाहिनियों में अवरोध मतलब  अॅथिरोस्क्लेरोसिस होती है, धमनियों में अवरोध अर्थात ऑबस्ट्रक्शन ऑफ आर्टरीज होकर सीने में दर्द अथवा गुढ़-चेस्ट पेन, मूर्छा, सांस फूलना, उल्टी, कफ निकलना इत्यादि लक्षण दिखाई देते है।

हृदय महामधनी तथा ओज की रक्षा के लिये मानसिक पीड़ा से रक्षा करनी चाहिये। उपरोक्त कारणों का त्याग कर शारीरिक तथा मानसिक विश्राम करना चाहिये। आहारविहार पर नियंत्रण अर्थात हृदय के लिये हितकर आहार, औषधि तथा विहार का नियोजन करना चाहिए। इसके उत्तम उदाहरण का अनुभव मै आपके साथ बांटना चाहती हूं।

आवश्यकता से ज्यादा मात्रा में स्नेह या तैलीय- चिपकने वाले पदार्थ का जमा होना, हर रोज के काम का बोझ पढाई, भय या पैसों की परेशानी इन कारणों से स्ट्रेस लेवल बढ़कर भी कोलेस्ट्रॉल की मात्रा रक्त में बढ जाती है। कोविड 19 महामारी में भी बच्चों से लेकर बूढों तक तनाव बढ गया था। मेरे करीबी व्यक्ति का कोलेस्ट्रॉल हमेशा बढ़ता था। ऑफिस में काम करते वक्त कभी मिठाई तो कभी बार-बार चाय हो ही जाती थी। ऑफिस दूर पर रहने के कारण बाहर का खाना भी खाना पड़ता था। महंगी दवाइयां 4 महिने लेने के बाद भी ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था। गोली बंद करने के बाद केवल 15 दिन ठीक लगता। फिर वही लक्षण महसूस करते जैसे सीने में जब जकडाहट, अनियमित धड़कन, घबराहट, असहजता, चिडचिड़ापन, संधियों में वेदना, बार-बार थूकना। उन्होंने परेशान होकर खुद ही अपने खान-पान में परिवर्तन करने की ठान ली।

प्रातः उठकर उगते सूर्य की किरणों में प्राणायाम, कपालभाति, ध्यान-धारणा तथा कुछ सरल आसन करना शुरू किया। पहले भी करते थे लेकिन अब अधिक समय देने लगे। चाय दिन में केवल 2 बार आधा-आधा कप लेने लगे। हल्दीवाला दूध उचित मात्रा में लेने लगे।

हर सुबह अंकुरित धान्य का तथा रात में दलिया का सेवन करने लगे। दिन में दो बार फलाहार करना अति उपयोगी साबित हुआ। मोसंबी, संत्रा, अमरूद, अनार, पपया, खरबूजा, सेब, केला, आंवला, अंगूर, चीकू इन मौसमी फलों का सेवन ज्यादा किया। मांसाहार एकदम कम कर दिया। शाकाहार बढ़ाया। चावल कम तथा ज्वारी की भाकरी ज्यादा कर दी। दोपहर के खाने में छाछ की मात्रा बढाई। खीरा, मूली, गाजर, बिट, टमाटर इत्यादि का सलाद खाने के साथ कई बार लिया।

* सूखे मेवे रात में पानी में भिगोकर रखने और सुबह सेवन करते या बारीक कर खीर बनाकर पीएं। नारियल का पानी अमृत की तरह काम करने लगा।
* नमक की जगह सैंधव लवण का प्रयोग शुरू किया
* मैदा, मिठाई,मलाई, तली हुई चीजें, एकदम बंद कर दीं। जवस तैल का प्रयोग उपयुक्त साबित हुआ।
* रोजमर्रा की चीजें लाने के लिए बाजार पैदल ही जाया करते। हमेशा की तरह।
* हर शाम को मन को खुश करने वाले सुमधुर संगीत का आनंद उठाने लगें। एक व्यक्ति के आहार-विहार के परिवर्तन से घर के अन्य सदस्य को भी लाभ होने लगा।

रोगों के कारणों को दूर करना रोग दूर करने के लिए उपयुक्त वातावरण व दिनचर्या बनाना यही उद्देश्य होता है पथ्य का। इसी पथ्य का पालन करते हुए उनकी सारी समस्या दूर हो गयी। आज एक भी लक्षण का सामना उन्हें नहीं करना पड़ रहा है तथा एक साल से एक भी गोली की आवश्यकता नहीं पड़ी रात में नींद भी अच्छी आने लगी। बालों का गिरना भी कम हुआ।

इसी तरह बच्चों को भी इन बातों से अवगत करना चाहिए। मोबाइल का इस्तेमाल कम कर प्राणायाम, ध्यान-धारणा से मन की शांति प्राप्त करनी चाहिए। गलत संगत में शराब, कॉफ़ी, धूम्रपान बाहर का खाना इत्यादि का सेवन करने से बचना चाहिए ताकि हृदय पर आघात होने से बचा जा सके। क्रोध तथा दुख से दूर, खुशहाल जिंदगी जीने का तरीका अपनाना चाहिए। खुशमिजाज स्वभाव हंसमुख लोगों की संगत में रहना चाहिए।

चित्रा अशोक गणवीर
मुंबई

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