हृदय धमनियों में वसा या कोलेस्ट्रॉल जम जाने से नली में रक्त मार्ग अवरुद्ध हो जाता है, जिससे रक्त के प्रवाह में बाधा पहुंचती है अर्थात् कोलेस्ट्रॉल रक्त की नलिकाओं में
रक्त का संचालन कम कर देता है।
कोलेस्ट्रॉल ग्रीक शब्द कोले(पित्त) और स्टेरस(ठोस) से बना है। कोलेस्ट्रॉल हृदय का सबसे प्रबल शत्रु है। यह एक सफेद चर्बीयुक्त पदार्थ है, जो हमारे रक्त में पाया जाता है। कोलेस्ट्रॉल का निर्माण हमारे भोजन में मौजूद वसा (फैट्स) से यकृत (लिवर) में होता है। रक्त में जहां इसकी उपस्थिति उपयोगी है, वहीं इसकी अधिकता हानिकारक भी है।
कोलेस्ट्रॉल 2 प्रकार का होता है – उच्च घनत्व लिपोप्रोटीन (एचडीएल), जो धमनियों को कड़ा होने से रोकता है और अल्प घनत्व लिपोप्रोटीन (एलडीएल), जो धमनियों को संकुचित करता है। हृदय के स्वास्थ्य की दृष्टि से रक्त में इन दोनों का अनुपात 2:1 होना चाहिए।
हृदय पर भारीपन या दबाव महसूस होना, श्वास फूलना, घुटन, बहुत अधिक पसीना आना, उल्टी आना आदि लक्षण हृदय रोग के सूचक हो सकते हैं। ऐसी दशा में विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में अपेक्षित जांच-परीक्षण के बाद रोग की पुष्टि होने पर समुचित उपचार अवश्य कराया जाना चाहिए।
हृदय रोगग्रस्त न हो और सुचारु ढंग से अपना कार्य करता रहे, इसके लिए अपने खान-पान और स्वास्थ्य को लेकर सजग रहना अति आवश्यक है। यथार्थ तो यह है कि केवल कुछ सामान्य उपाय अपनाकर ही हृदय को हमेशा स्वस्थ रखा जा सकता है।
हृदय को स्वस्थ-सबल बनाए रखने के लिए अपने आहार में वैसे पदार्थों को ही शामिल करें जिनमें वसा कम हो और रेशा ज्यादा हो, जैसे अनाज, सूखे मेवे, लहसुन, मटर, प्याज, ताजी मौसमी सब्जियां, फल आदि। इसके साथ ही दूध का भी सेवन करें। दूध में प्रोटीन, वसा, कैल्शियम व कुछ विटामिन मौजूद होते हैं। शाकाहार में रेशे की अधिकतम मात्रा मौजूद होती है और इससे कोलेस्ट्रॉल कम होता है। अतः शाकाहार लेने से हृदय संबंधी रोगों से बचाव होता है। हृदय के लिए वैसे तेल अच्छे माने जाते हैं, जिनमें बहु असंतृप्त बसीय अम्ल अधिक हो और संतृप्त वसीय अम्ल कम हो। सूरजमुखी और मक्का के अलावा सोयाबीन के तेल में भी बहु असंतृप्त वसीय अम्ल अधिक पाया जाता है। संतृप्त वसीय अम्ल मक्खन, घी और वनस्पति घी में अधिक पाया जाता है। इनका नियमित सेवन करने से रक्त में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है, जो अंततः हृदय रोग का कारण बनती है। अतः हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को घी, मक्खन और वनस्पति घी से परहेज बरतना चाहिए तथा दूध भी मलाई उतारकर ही पीना चाहिए। वसारहित शाकाहारी भोजन से हृदय रोग की आशंका को कम किया जा सकता है।
हृदय रोग से पीड़ित व्यक्तियों को वैसे खाद्य पदार्थों का भी सेवन नहीं करना चाहिए, जिनमें नमक की मात्रा अधिक होती है। फल-सब्जियों का सेवन प्रचुर मात्रा में करना चाहिए। नमक का सेवन कम करने के लिए ऊपर से नमक का प्रयोग बंद कर देना चाहिए, साथ ही सब्जी व आटे में भी नमक का प्रयोग यथासंभव कम मात्रा में ही किया जाना चाहिए। पैक्ड फूडस्, केचप, सॉस आदि से दूरी बनाए रखन ही हैं क्योंकि इस प्रकार के अधिकांश खा़द्य पदार्थों को लंबे समय तक सेवन योग्य बनाए रखने के लिए नमक की मात्रा अधिक डाली जाती है। फास्ट फूड में नमक की मात्रा अधिक होती है, चाइनीज फूड में अजीनो मोटो नमक (सोडियम ग्लूटामेट) का प्रयोग होता है तथा पापड़, अचार, चटनी और नमकीन काजू में भी नमक की मात्रा अधिक होती है।
प्रतिदिन नियमित रुप से व्यायाम और योगाभ्यास करने से शरीर स्वस्थ और निरोग बना रहता है। व्यायाम से हृदय स्वस्थ रहता है और हृदय संबंधी रोगों से बचाव होता है। इसके साथ ही मानसिक तनाव और चिंता से स्वयं को मुक्त रखना भी आवश्यक है। हमेशा प्रसन्न रहने से स्वास्थ्य पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और हृदय संबंधी रोगों के प्रकोप से बचाव होता है।
आयुर्वेद में कई ऐसे अनमोल औषध द्रव्यों का वर्णन मिलता है, जो हृदय के लिए विशेष रुप से लाभप्रद है। इनमें से कुछ औषध द्रव्य निम्नलिखित हैं-
धनिया :- सूखा धनिया और मिश्री समभाग मिलाकर पीसकर रख लें। आधा चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार यह मिश्रण लेने से हृदय की अनियमित धड़कन सामान्य होती है।
लहसुन :- लहसुन का सेवन करने से चर्बी कम होती है। प्रतिदिन सुबह में नियमित रुप से पानी के साथ चबा-चबाकर लहसुन की 2-2 कलियां सेवन करने से रक्त में बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रॉल घटकर सामान्य स्तर पर आ जाता है। लहसुन की 3-3 कलियां दूध में उबालकर प्रतिदिन रात में सेवन करने से भी हृदयाघात में लाभ मिलता है।
अर्जुन :- टमाटर के रस के साथ अर्जुन की छाल और शक्कर मिलाकर चटनी बनाकर सेवन करने से हृदय संबंधी रोगों में आशातीत लाभ मिलता है। इसके अलावा अर्जुन चूर्ण और अर्जुन से सिद्ध दूध का सेवन हृदय रोग में लाभप्रद है।
आंवला :- हृदय दौर्बल्य में आंवले का मुरब्बा सेवन करने से लाभ मिलता है। यदि हृदय की धड़कन बढ़ी हुई हो तो 50 ग्राम आंवले के मुरब्बे में चांदी का वर्क लगाकर प्रतिदिन सुबह में खाली पेट खान से धड़कन सामान्य हो जाती है।
गुलाब :- 125 मि.ली. गुलाब के अर्क (रस) में 50 मि.लीकेवड़ा अर्क और 60 मि.ली. पानी मिलाकर इसमें 20 ग्राम हरे रंग की पुष्ट किशमिश डालकर बर्तन को चांदनी में स्वच्छ स्थान पर रात भर रखें। सुबह में इन किशमिशों को किसी सींक या सलाई से उठाकर 1-1 करके चबा-चबाकर खाएं, फिर शेष बचा हुआ अर्क वाला पानी भी पी लें। प्रतिदिन इस प्रयोग को अपनाने से हृदय की धड़कन बढ़ना, दुर्बलता व हृदय संबंधी अन्य समस्याएं दूर होती है। हृदय दौर्बल्य के लिए यह प्रयोग अतीव हितकारी है। गुलाब की पंखुड़ियों से बना गुलकंद व शर्बत भी हृदय के लिए लाभदायी होता है।
दही :- दही के सेवन से हृदय रोग में लाभ मिलता है। दही हमारे रक्त में बनने वाले कोलेस्ट्रॉल नामक घातक पदार्थ को नष्ट करने की क्षमता रखता है। जब कोलेस्ट्रॉल रक्त शिराओं में जमकर रक्त प्रवाह में बाधा पहुंचाता है तो हृदय गति पर दुष्प्रभाव पड़ता है। ऐसी दशा में दही कोलेस्ट्रॉल को कम करके हृदय को स्वस्थ रखता है।
सेब :- सेब का मुरब्बा 50 ग्राम की मात्रा में लेकर चांदी के 2 वर्क के साथ नियमित रुप से 15 दिनों तक सुबह में सेवन करें। इस प्रयोग से हृदय की कमजोरी में पूरा लाभ मिलता है।
शहद :- हृदय को शक्ति प्रदान करने की दृष्टि से शहद अतीव गुणकारी है। हृदय की दुर्बलता व घबराहट की अवस्था में 1-1 चम्मच शहद पानी में डालकर सेवन करने से लाभ मिलता है। हृदय रोगियों के लिए यह प्रयोग विशेष रुप से लाभप्रद है। शहद का सेवन करने से हृदय सबल बनता है। सर्दी या कमजोरी के कारण हृदय की धड़कन बढ़ने या दम घुटने पर 2-2 चम्मच शहद का सेवन करने से नवीन शक्ति प्राप्त होती है।
मक्का :- मक्का में वसा की मात्रा अत्यल्प होती है। इसलिए मक्का कोलेस्ट्रॉल घटाने में सहायक होता है। जो हृदय रोगी कोलेस्ट्रॉल घटाना चाहते हों, उन्हें समुचित मात्रा में इसका सेवन करना चाहिए। मक्के की पत्तियों को पीसकर शर्बत बनाकर 20 से 50 मि.ली. की मात्रा में 45 दिनों तक नियमित रुप से सेवन करने से भी हृदय रोगी को लाभ मिलता है।
मटर :- मटर का सेवन करने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित रहती है।
अनार :- अनार की ताजी पत्तियां 10-10 ग्राम की मात्रा में लेकर 100 मि.ली. पानी में पीसकर छानकर सुबह-शाम सेवन करने से हृदय की थकावट दूर होती है। इसके साथ ही अनार के शर्बत का सेवन भी हृदय रोग में लाभप्रद है।