स्वस्थ हृदय के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण कदम है अपनी तनाव और उदासी को दूर करना । मानसिक और भावनात्मक तनाव हृदय के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है । नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य हृदय रोग और स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है लेकिन सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य हृदय रोग और मृत्यु के जोखिम को कम कर देता है । आयुर्वेद सिद्धांतो के अनुसार आहार-विहार के नियम यदि पालन किए जाएं तो हृदय स्वास्थ्य में सुधार आता है ।

हृदय हमारे शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। यह अंग स्पंदन करते हुए सम्पूर्ण शरीर को रक्त का प्रवाह करता है। हमारे हृदय का प्रमुख काम धमनियों के माध्यम से ऑक्सीजन तथा पोषक तत्वों से युक्त रक्त को ऊतकों तथा शरीर के अन्य हिस्सों तक पहुंचाना है।
 
अत्याधिक विलासिता, गतिहीन जीवन शैली, तनावपूर्ण नौकरियां और बदले हुए भोजन की आदतों के वजह से आज समाज में उच्च रक्तचाप, हाइपर लिपिडेमिया, कोरोनरी आर्टरी रोग, वाल्वुलर हार्ट रोग आदि जैसे हृदय विकार अत्याधिक प्रमाण में पाए जा रहे है और इस प्रकार की घटनाएं दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है। इसलिए जीवन की गुणवत्ता में सुधार के साथ-साथ सुरक्षित और प्रभावी उपचार विकल्पों की तलाश में दुनिया आयुर्वेद की और मुड़ गई है।
 
ऐसे सभी हृदय संबंधी रोगो में आयुर्वेद शास्त्र, द्रव्यों के कुछ समुह को निर्धारित करता है जो पूरी तरह से हृदय के कार्यो में सुधार करने और हृदय स्वास्थ्य बनाए रखने की क्षमता रखते है। इन द्रव्यों के लए प्रयुक्त शास्त्रीय शब्द ’हृद्य’ है, जिसका अर्थ है ’हृदयम् हितम्’ अर्थात वह द्रव्य जो हृदय के लिए हितकारक हैं।
 
आचार्य चरक द्वारा हृद्य गण के अंतर्गत कुल दस द्र्रव्यों को शामिल किया गया है- आम्र, आम्रतक, लकुच, करमर्द, वृक्षाम्ल, अम्लवेतस, कुवल, बदर, दाडिम और मातुलुंग। हृद्य गण के अंतर्गत वर्णित अधिकतम् द्रव्य अम्ल तथा मधुर रस वाले है। वे उष्ण वीर्यात्मक तथा अम्ल विपाक प्राप्त करने वाले है। आमतौर पर यह द्रव्य अल्प उष्ण होते है। वे वातहर, पाचक, क्षुधावर्धक और हृदय उत्तेजक है।
 
यह द्रव्य हेमेटिनिक्स और एंटी हाइपरलिपिडेमिक के रूप में कार्य करते है। एथेरोस्क्लोरोसिस का इलाज करने और हृदय की कार्य प्रणाली में सुधार करने के लिए यह द्रव्य अत्यंत उपयोगी है। वे रक्त रोकने में मदद करते है। इन द्रव्यों का एंटी एथेरोस्क्लोरोसिस, एंटीइंफ्लेमेटरी प्रभाव भी है। वे विटामिन-सी के रूप में शरीर को एंटी ऑक्सीडेट भी प्रदान करते है।
 
पंचवपल्लव योग, दाडिमारिष्ट, दाडिमाद्यावलेह, इंदु कुवल्यादि कषाय आदि हृद्य गुण के कुछ द्रव्य युक्त महत्वपूर्ण योग है। अम्लवेतस, वृक्षाम्ल (कोकम), दाडिम, बदर(बेर) आदि द्रव्यों से शरबत या मुरब्बा बनाया जा सकता है या फिर हृदय रोगियों को इन फलों का रोजाना सेवन करने की सलाह दी जा सकती है।
 
अर्जुन यह द्रव्य आयुर्वेद शास्त्र में हृदय के लिए सबसे महत्वपूर्ण कायाकल्प है। यह संचार प्रणाली को मजबूत करता है तथा हृदय की मांसपेशियों के उचित कार्य को बढ़ावा देता है। अर्जुन कोलेस्ट्राल के स्तर, रक्तचाप के मूल्यों को प्रमाण में बनाए रखता हैं। अर्जुन के पेड़ की छाल co-engyme से भरपूर होती हैं, जो उच्च रक्तचाप को कम करने में मदद करती है।
 
लहसुन यह उल्लेख करने योग्य द्रव्य है, जो विशेष रूप से हृदय स्वास्थ्य के लिए सहायक है, इसे आसानी से किसी भी आहार में शामिल किया जा सकता है, यह द्रव्य प्राकृतिक रूप से अग्नि दीपन करता है। विषाक्त पदार्थो  को नष्ट करता है, उचित परिसंचरण का समर्थन करता है और अतिरिक्त कफ का शोषण भी करता है, अतः यह द्रव्य स्त्रोतसों को अवरूद्ध होने से बचाता है और हृदय के स्वास्थ्य को बनाए रखता है।
 
यकीनन सबसे महत्वपूर्ण कदम जो हृदय स्वास्थ्य को बनाए रखता है वह है उचित खानपान। प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ या बासी भोजन के स्थान पर ताजा भोजन चुनें। तले हुए भोजन के बजाय लघु अर्थात पचने में हलके खाद्य पदार्थ का सेवन करें। उचित पदार्थ खाने से पचन सही तरीके से होता है और शरीर भी स्वस्थ रहता है। अतः हृदय भी स्वस्थ रहता है।
 
दोषपूर्ण जीवन शैली और खराब खाने के विकल्पों के कारण, लोग कोलेस्ट्राल अधिक होने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन करते है। यह पदार्थ पचने में कठिन और हृदय स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालते है। इसलिए फास्ट फूड का सेवन न करें क्योंकि फास्ट फूड Palm oil ds derivatives से भरा हुआ होता है जो शरीर द्वारा ठीक से मेटाबोलाइज नहीं किया जाता है। जिसके वजह से कार्डियक अरेस्ट जैसी समस्याएं पैदा हो सकती है। 
 
अधिक तला हुआ, मसालेदार, नमकीन, तीखा भोजन तथा शराब, प्रोसेस्ड मीट का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि उनमें सोडियम अधिक मात्रा में होता है, जिससे हृदय के स्वास्थ्य को धोखा पैदा हो सकता है।
 
हींग, धनिया, जीरा, खजूर, किशमिश, विभिन्न प्रकार के फल, ताजा सब्जियां हृदय के लिए सेहतमंद होते है। मात्रावत तथा उचित समय पर भोजन भी हृदय स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।
 
उचित आहार के साथ-साथ उचित विहार भी महत्वपूर्ण है। आयुर्वेद अच्छी निद्रा को अच्छे स्वास्थ्य के स्तंभ के रूप में देखता है। मात्रावत निद्रा शरीर और दिमाग का संतुलन हासिल करने में सहायता करती है और रक्तचाप भी बना रहता है जो हृदय को अच्छे स्वास्थ्य में मदद करता हैं।
 
स्वस्थ हृदय के दृष्टिकोण से सबसे महत्वपूर्ण कदम है अपनी तनाव और उदासी को दूर करना। मानसिक और भावनात्मक तनाव हृदय के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। नकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य हृदय रोग और स्ट्रोक के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है लेकिन सकारात्मक मानसिक स्वास्थ्य हृदय रोग और मृत्यु के जोखिम को कम कर देता है।
 
प्राणायाम, अनुलोम विलोम का अभ्यास तनाव को कम करता है तथा हृदय की गति को नियंत्रण में रखता है। ध्यान (Meditation) के माध्यम से भी तनाव, चिंता और क्रोध के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
 
अत्याधिक शारीरिक श्रम, प्राकृतिक वेगों जैसे छींकना, खांसना, डकार आना आदि धारण करना टालना चाहिए। 
 
आयुर्वेद सिद्धांत अनुसार बलार्ध व्यायाम अर्थात अपनी क्षमता से आधा व्यायाम रोज करना चाहिए। विशेष योगासन और प्राणायाम कार्डियो रेस्पिरेटरी सिस्टम की दक्षता में सुधार करने में प्रभावी होते है। हृदयबस्ति जैसी क्रिया, हृदय विकारों में अत्यंत उपयोगी है क्योंकि वे Vasodilatation द्वारा स्थानिक रक्त की आपूर्ति में सुधार करती है और साथ ही हृदय के मांसपेशियों की ऐंठन को कम करती है।
 
आयुर्वेद हृदय स्वास्थ्य उपचार में उपचारों का एक संयोजन शामिल होता है जो Cardiac function को बेहतर बनाने के लिए सहक्रियात्मक रूप से काम करता है। आयुर्वेद सिद्धांतो के अनुसार आहार-विहार के नियम यदि पालन किए जाएं तो हृदय स्वास्थ्य में सुधार आता है और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को कम करने में मदद होती है। चूंकि आयुर्वेद न केवल शारीरिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को भी महत्व देता है। इसलिए न केवल रोगी का जीवन काल बढ़ेगा बल्कि उनकी जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार होगा।

डॉ . अवंती धेपे
छात्रा, बी.ए.एम.एस., नागपुर

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