जब गुर्दे में पथरी होती है तो यह असहनीय पीड़ा देती है और यही पथरी जब मूत्र-मार्ग में आ जाती है तो काटने वाला, चीरने वाला जैसा दर्द पैदा करती है। ये गुर्दे रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर पसलियों के नीचे पेट के पीछे दाँयी तथा बाँयीं तरफ स्थित होते हैं। जब पथरी का दर्द होता है तो वह रीढ़ की तरफ से चलकर नाभि तक आता है। इस रोग में दर्द की एक सी स्थिति नहीं रहती है, दर्द कभी घूम जाता है तो कभी दर्द अचानक कम हो जाता और कभी अचानक बहुत तेज हो जाता हैं।

प्रत्येक गुर्दे का वजन 150 से 200 ग्राम तक होता है और करीब 10 लाख छानने वाली प्यालेनुमा ग्लोमेरुल्स ईकाई नेफ्रान होती है। दोनों गुर्दे मिलकर 24 घण्टे में करीब 200 लीटर ब्लड़ छानते है, इसमें से करीब 99% पानी शरीर द्वारा पुनः सोख लिया जाता है व करीब 1% पानी मूत्र मार्ग द्वारा बाहर कर दिया जाता है जिसमें विकृत परिष्कृत तत्व होते हैं।

विकृत परिष्कृत आहार-विहार, भोजन के गलत चयापचय के कारण व पानी कम पीने के कारण शरीर में यूरिक एसिड़, कैल्शियम-आक्जेलेट तथा फास्फोरस अधिक बनने लगता हैं परिणामस्वरूप कम पानी पीने की स्थिति में मूत्र गाढ़ा हो जाता है और इन अम्लीय यौगिकों की मात्रा बढ़ जाती है और शनैः-शनैः गुर्दे में पथरी का निर्माण होता रहता है।

उपचार :- आहार नाल में ‘‘आक्सिलौ-वेक्टर फोरमी’’ नामक जीवाणु होता है जो आक्सेलिक एसिड़ को खाकर ऊर्जा प्राप्त करता है। आहार नाल में जब इस बैक्टीरिया की कमी होने लगती है तो आक्सीलिक का अनुपात बढ़ने लगता है, फलस्वरूप पथरी का निर्माण शुरु हो जाता है। हाइपर एसिड़िटी, अल्सर, कब्ज, माँसाहार, अण्डा, अधिक मिर्च, अधिक तेल-युक्त आहार, हाइड्रोजेनेट दवाईयाँ, गुटखा, सुपारी आदि का अधिक उपयोग किया जाता है तो ‘‘आक्सिलोवेक्टर फोरमी’’ नामक जीवाणु मरने लगता है।

गुर्दे की पथरी के रोगी को ऐसे तरल पदार्थों का अधिक सेवन करना होगा जिससे यूरिक एसिड़, कैल्शियम- आक्जेलेट आदि पथरी बनाने वाले तत्व अधिक से अधिक पानी के साथ पिघलकर बाहर आ जायें।
(अ) दिन में चार से पाँच बार नीबू-पानी गुर्दों की तेजी से सफाई करता है।
(ब) छाछ, दही, शुद्ध जल, सन्तरे का रस का सेवन आहार में फोरमी वैक्टीरिया की तादाद को तेजी से बढ़ाता है।
(स) पत्थर चट्टा, कासनी, इमली, नारियल पानी, नीरा, खीरा, ककड़ी, सन्तरा, मौसमी आदि पदार्थों का अधिक सेवन शरीर में जल, पोटेशियम व रक्त की सान्द्रता को कम कर निर्मित पथरी को पेशाब द्वारा बाहर करता है।

गलत धारणा :- आम लोगों में धारणा बनी हुई है कि टमाटर खाने से पथरी का निर्माण होता है, यह एक गलत धारणा है। टमाटर में 0.52 से 1.81 प्रतिशत साइट्रिक एसिड़ तथा मात्र 00.16 आक्सेलिक एसिड़ होता है। जब टमाटर को कच्चे रूप में खाया जाता है तो मूत्र की मात्रा को बढ़ाकर पथरी निकालने में सहयोगी होता है। पालक, टमाटर, बैंगन, अंजीर, आडू, चुकन्दर आदि खाद्य पदार्थों को पकाने पर इनमें उपस्थित आक्सेलिक एसिड़, कैल्शियम आदि तत्व रासायनिक क्रिया कर अघुलनशील लवणों में बदल जाते हैं, फलस्वरूप रक्त की सान्द्रता बढ़ा देते हैं व गुर्दे में अवशोषित होकर क्रिस्टल के रूप में जमा होकर पथरी बनाते हैं।

पानी की अधिकता ग्लोमेरुल्स व नेफ्रान की क्रियाशीलता को बढ़ाती है जो कि पथरी को दूर करने के साथ-साथ शरीर के अन्य विजातीय तत्वों को पेशाब के द्वारा शरीर से बाहर कर शरीर को स्वस्थ व निरोगी बनाती है।

डॉ. वीरेन्द्र अग्रवाल
नैचरोपॅथी, भरतपुर (राजस्थान)

Relief from Lumbar Spondylosis & Osteoarthritis without surgery.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top