आज के इस तनावपूर्ण आपाधापी युग में लोगों की दिनचर्या, रहन सहन एवम् खान पान में बदलाव के कारण गुर्दों के रोग भी बढ़ते जा रहे है जो एक ज्वलंत समस्या है ।

इन बीमारियों के सही इलाज करने के लिए कौन सा रोग है, किस हिस्से में है व कितना गंभीर है उस हेतु आजकल बहुत सी जांच सुविधाएं उपलब्ध हैं। आइए इस लेख द्वारा जानें कि गुर्दा रोगों का पता लगाने की कौन कौन सी जांचे है ?

KFT अथवा RFT
(Kidney / Renal Function Test)

इसे गुर्दा कार्य परीक्षण भी कहा जाता है।

यह परीक्षणों का एक समूह है जिसे गुर्दा के कार्यों का आकलन करने के लिए खून के नमूने द्वारा किया जाता है ।

गुर्दों की क्रियाशीलता तथा इसमें आई बीमारियों के लिए जो रक्त परीक्षण किया जाता है वह निम्नलिखित है ।

सीरम क्रिएटिनिन (Serum Creatinine) – क्रिएटिनिन एक अपशिष्ट उत्पाद (Waste Product) है जो शरीर में मांसपेशियों की सामान्य गतिविधि के कारण बनता है। एक बढ़ी हुई क्रिएटिनिन स्तर का मतलब यह हो सकता है कि गुर्दे ठीक रूप से काम नहीं कर रहे हैं।

ब्लड यूरिया नाइट्रोजन (BUN) – यह खून में यूरिया की मात्रा को मापता है। यूरिया शरीर में प्रोटीन के टूटने के परिणामस्वरूप बनता है। इसे यूरिया नाइट्रोजन भी कहा जाता है, जो गुर्दे द्वारा उत्सर्जित एक अपशिष्ट उत्पाद है। उच्च स्तर गुर्दा की क्षति (Damage) का संकेत देता है।

सीरम एल्बुमिन (Serum Albumin) – एल्बुमिन एक प्रकार का प्रोटीन है जो लिवर में पैदा होता है। स्वस्थ गुर्दा मूत्र में एल्बुमिन को पारित नहीं होने देते हैं। मूत्र में कम एल्बुमिन
का मतलब है कि गुर्दा अच्छी तरह से काम कर रहे हैं।

कैल्शियम – हड्डियों, दांतो, मांसपेशियों, दिल और नसों के लिए कैल्शियम महत्वपूर्ण खनिज (Mineral) है। निम्न और उच्च दोनों स्तर स्वास्थ्य स्थितियों को इंगित करते हैं जिन पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है।

सोडियम – एक इलेक्ट्रोलाइट जो शरीर में द्रव संतुलन बनाए रखता है। कम सोडियम का स्तर एक द्रव असंतुलन को इंगित करता है और गुर्दे से संबंधित बीमारी का सुझाव देता है।

पोटेशियम – सोडियम की तरह यह भी एक इलेक्ट्रोलाइट है जो शरीर में स्वस्थ द्रव संतुलन और एसिड-बेस संतुलन बनाए रखता है।

क्लोराइड – एक इलेक्ट्रोलाइट जो शरीर में द्रव संतुलन बनाए रखने के लिए अन्य इलेक्ट्रोलाइट्स के साथ संयोजन में काम करता है।

फास्फोरस – यह खनिज (Mineral) हड्डियों, दांतों और मांसपेशियों में मौजूद होता है। फास्फोरस गुर्दे द्वारा उत्सर्जित होता है। फास्फोरस का उच्च स्तर गुर्दे की बीमारी के कारण हो सकता है।

अन्य जांचे जो एक गुर्दा कार्य परीक्षण में शामिल किए जा सकते हैंः
एस्टिमेटेड ग्लोमेरूलर फिल्ट्रेशन रेट (eGFR) – ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट गुर्दा कार्य का मूल्यांकन है। यह एक मिनट में किडनी द्वारा फिल्टर किए गए खून की मात्रा को मापता है।

टोटल प्रोटीन – एल्बुमिन के आलावा खून में विभिन्न अन्य प्रोटीन होते हैं। टोटल प्रोटीन एक परीक्षण है जो खून में प्रोटीन की समग्र मात्रा को मापता है।

Urine RE – यह पेशाब की सामान्य जांच है की ज्यादा महंगी भी नहीं है इससे बहुत सी जानकारी प्राप्त हो जाती है इसमें Physical, Chemical, Microscopic तथा विशेष रोगों का
पता लगाया जाता है ।

व्यक्ति के स्वास्थ्य के बारे में व्यापक जानकारी प्रदान करते हैं। परीक्षण में निम्नलिखित पैरामीटर शामिल हैं –

मूत्र परीक्षण पट्टिका के द्वारा मूत्र में निम्नलिखित पदार्थों की उपस्थिति का पता लगाया जा सकता है –

प्रोटीन, ग्लूकोज, कीटोन, हीमोग्लोबिन, बिलिरुबिन (bilirubin), यूरोबिलिनोजेन (urobilinogen), एसीटोन, नाइट्राइट, तथा श्वेतकोशिका। इसके अलावा इससे मूत्र का pH एवं विशिष्ट घनत्व का भी ज्ञान हो जाता है।

• मूत्र का pH मूल्य मूत्र में अम्ल के स्तर को मापता है।
मूत्र संकेंद्रण व्यक्ति द्वारा उपभोग किए जाने वाले तरल पदार्थों की मात्रा बताती है। उच्च मात्रा कम तरल पदार्थ की खपत से पता चलता है।

• इसमें मौजूद शुगर या ग्लूकोज की मात्रा दिखाई देती है।

• यह मूत्र में बिलीरूबिन की जांच करता है। बिलीरुबिन की उपस्थिति यकृत क्षति (Liver disorder) का संकेत देती है।

एपिथेलियल कोशिकाएं – ये कोशिकाएं यूरेटर, मूत्राशय और मूत्रमार्ग को लाइन करती हैं। 1-5 स्क्वैमस उपकला कोशिकाएं प्रति उच्च शक्ति क्षेत्र या एचपीएफ मूत्र में आम हैं। इससे अधिक कोई भी राशि खमीर या यूटीआई की उपस्थिति का संकेत देती है। यह नाइट्राइट या ल्यूकोसाइट की उपस्थिति की जांच करता है। यह मूत्र पथ के संक्रमण के हमले को इंगित करता है।

RBS – टेस्ट में पेशाब में खून की मौजूदगी के बारे में भी बताया गया है। यदि पाया जाता है तो आंतरिक अंगों में संक्रमण या क्षति के संकेतों की पहचान करने के लिए अतिरिक्त परीक्षणों की आवश्यकता होती है।

यूरिन कल्चर परीक्षण

यह एक मूत्र परीक्षण है जिसका उपयोग मूत्र पथ के बैक्टीरिया या माइक्रोबियल संक्रमण जैसे कीटाणुओं का पता लगाने के लिए किया जाता है। मूत्रमार्ग के माध्यम से बैक्टीरिया शरीर में प्रवेश करते हैं और मूत्र पथ के संक्रमण का कारण बनते हैं। यह यूरिन कल्चर टेस्ट एक संक्रमित मूत्र पथ का निदान करता है।

कुछ बैक्टीरिया जो आमतौर पर UTIs का कारण बनते हैं :-
क्लेबसिएला (Klebsiella)
एसिनेटोबैक्टर (Acinetobacter)
एन्टेरोबैक्टेर (Enterobactor)
प्रोटियस (Proteus)

सोनोग्राफी

आजकल इस जांच का प्रचलन बहुत अधिक हो गया है।

गुर्दे से संबंधित रोगों के निदान और प्रबंधन में गुर्दे की अल्ट्रासोनोग्राफी आवश्यक है। गुर्दे की आसानी से जांच की जाती है और गुर्दे में अधिकांश रोग संबंधी परिवर्तनों को अल्ट्रासाउंड से अलग किया जा सकता है।

किडनी और संबंधित संरचनाओं जैसे मूत्रवाहिनी और मूत्राशय के आकार, स्थान और आकार का आकलन करने के लिए किया जा सकता है।

अल्ट्रासाउंड किडनी के भीतर या आसपास सिस्ट, ट्यूमर, फोड़े, रुकावट की जानकारी मिलती है।

द्रव संग्रह और संक्रमण का पता लगा सकता है।

इस जांच द्वारा गुर्दे, मूत्र वाहिनी इत्यादि में पथरी का पता चलता है जो कि आजकल सामान्य बात हो गईं हैं पर बहुत कष्टप्रद रोग है।

डॉ. करतार सिंह कंजवानी
राजनांदगांव (छत्तीसगढ़)

Cupping Therapy - Useful in Arthritis

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