सिस्टाइटिस के उपचार के लिए हल्दी सबसे अच्छी जड़ी-बूटी या औषधि है। यह एक शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट है जो मूत्राशय की सूजन को कम करता है। एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होने के कारण यह शरीर के अंदर के बैक्टीरिया को भी मार देता है।
मूत्राशय या यूरिनरी ब्लैडर की सूजन को सिस्टाइटिस कहा जाता है जो आमतौर पर जीवाणु संक्रमण के कारण होता है। बार-बार मूत्र लगना और मूत्र त्याग करते समय दर्द या जलन होना सिस्टाइटिस के मुख्य लक्षण हैं। यह स्थिति तीव्र या पुरानी हो सकती है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाएं सिस्टाइटिस से अधिक प्रभावित होती हैं। मूत्राशय या यूरिनरी ब्लैडर शरीर के यूरिनरी सिस्टम का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसका मुख्य कार्य मूत्र को ब्लैडर में एकत्र करना और फिर इसे इच्छानुसार बाहर निकालना है। आयुर्वेदिक शरीर रचना विज्ञान में मूत्राशय को बस्ती कहा जाता है। मूत्राशय की सूजन को बस्ती शोथ के नाम से जाना जाता है।
कारण – महिलाओं में सिस्टाइटिस होने के कई कारण हैं, जिनमें यूरेथ्रा (urethra) की छोटी लंबाई और योनि व गुदा का यूरेथ्रा के निकट होना है, जहाँ आमतौर पर जीवाणु पाए जाते हैं। महिलाओं में सिस्टाइटिस अक्सर प्रजनन अवधि के दौरान और बार-बार होता रहता है। गर्भवती महिलाओं में सिस्टाइटिस विकसित होने की संभावना अधिक होती है क्योंकि गर्भावस्था से खुद ब्लैडर को खाली करने में रुकावट पैदा होती है। गर्भनिरोधक डायाफ्राम के इस्तेमाल से सिस्टाइटिस होने का खतरा बढ़ जाता है। सिस्टाइटिस का कारण यौन संबंध भी हो सकता है। रजोनिवृत्ति के बाद एस्ट्रोजन हार्मोन की कमी से मूत्र नली के आसपास योनि के ऊतक पतले हो जाने के कारण महिलाओं में सिस्टाइटिस हो सकता है। इसके अलावा गर्भाशय या ब्लैडर का बाहर निकलने (प्रोलैप्स यूटेरस या ब्लैडर) के कारण ब्लैडर खाली होने में समस्या आ सकती है और सिस्टाइटिस का शिकार हो सकती है। ब्लैडर और योनि के बीच असामान्य जुड़ाव या वेसिइकोवेजाइनल फिस्टुला (Vesico Vaginal Fistula) के कारण सिस्टाइटिस बार-बार होता है। पुरुषों में बढ़े हुए प्रोस्टेट व प्रोस्टेट का जीवाणु संक्रमण के कारण सिस्टाइटिस होता है।
इसके अतिरिक्त यदि स्त्री व पुरुष के ब्लैडर में स्टोन या यूरेथ्रा के संकुचित होने के कारण मूत्र का बहाव आंशिक रूप से बाधित हो जाता है, तो यूरिनरी ट्रैक्ट में प्रवेश करने वाले जीवाणु के मूत्र के साथ बाहर फ्लश होने की संभावना कम हो जाती है। मूत्र करने के बाद ब्लैडर में बचे हुए जीवाणु तेजी से बढ़ सकते हैं जिससे संक्रमण का खतरा और बढ़ जाता है। कैथेटर या यूरिनरी ट्रैक्ट में डाले गए किसी भी उपकरण के कारण सिस्टाइटिस हो सकता है,जिससे ब्लैडर में जीवाणु उत्पन्न हो जाते हैं। कभी-कभी बिना किसी संक्रमण के ब्लैडर में सूजन हो सकती है, इस बीमारी को इन्टर्सि्टशल सिस्टाइटिस कहा जाता है। आयुर्वेदाचार्य चरक ने लंबे समय तक गर्मी या गर्म जलवायु के संपर्क में रहना, सूखे, गर्मी व अपच करने वाले खाद्य पदार्थों का सेवन, प्यास लगने पर पानी नहीं पीना, मूत्र करने की इच्छा होने पर यौन क्रिया में शामिल होना, मल-मूत्र त्याग जैसे प्राकृतिक वेगों को धारणा करना, मादक पदार्थों का अधिक सेवन आदि कारण मूत्राशय की सूजन या बस्ती शोथ के कारण बताएं हैं।
लक्षण – मूत्र करने की तीव्र इच्छा होना या बार-बार मूत्र लगना, मूत्र की मात्रा कम होना, मूत्र त्याग के समय जलन या दर्द का होना आदि लक्षण होते हैं। मूत्र करने की तत्काल जरूरत के कारण खास तौर पर वृद्ध लोगों में मूत्र को नियंत्रित न कर पाने की समस्या हो सकती है। बुखार होना,नाभि व पीठ के निचले हिस्से में दर्द होना, यह दर्द जांघों तक जाता है। रात में बार-बार मूत्र आना (नॉक्टूरिया Nocturia) ये लक्षण हो सकता है। जीवाणु संक्रमण के कारण मूत्र में तेज गंध का आना,मूत्र का रंग मटमैला हो सकता है। गंभीर संक्रमण में रक्त की उपस्थिति के कारण लाल रंग का मूत्र भी निकल सकता है। वृद्ध लोगों में कभी-कभी सिस्टाइटिस में कोई लक्षण नहीं होता और इसका पता तब चलता है, जब अन्य कारणों से मूत्र का परीक्षण किया जाता है। ऐसा व्यक्ति जिसका ब्लैडर, तंत्रिका में खराबी के कारण ठीक से काम नहीं कर रहा है या कैथेटर वाले किसी व्यक्ति में, किडनी में संक्रमण या बुखार विकसित होने तक किसी लक्षण के बिना भी सिस्टाइटिस हो सकता है।
सिस्टाइटिस की रोकथाम – अधिक तरल पदार्थ पीने से सिस्टाइटिस को रोकने में मदद मिल सकती है। हाइड्रेटेड रहने से मूत्र पथ से जीवाणुओं को बाहर निकालने में मदद मिलती है, जिससे जलन कम हो जाती है। इसके अलावा ऐसे ड्रिंक्स से बचना चाहिए जो मूत्राशय में जलन पैदा कर सकते हैं, जैसे शराब और कैफीन। विटामिन सी युक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए। विटामिन सी इम्युनिटी को बढ़ावा देने और मूत्र को अधिक एसिडिक बनाने के लिए जाना जाता है, जिससे बैक्टीरिया के पनपने के लिए प्रतिकूल वातावरण बनता है। इसके अलावा विटामिन सी में एंटीमाइक्रोबियल और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो संक्रमण से लड़ने में फायदेमंद होते हैं। जहां तक संभव हो गंदगी एवं संक्रमण युक्त पब्लिक शौचालय का उपयोग करने से बचना चाहिए। मूत्र आने पर तुरंत उसका त्याग करना चाहिए क्योंकि मूत्राशय में मूत्र अधिक देर तक रुके रहने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। रुके हुए मूत्र में जीवाणु जल्दी वृद्धि करते हैं। यौन संबंध के पश्चात मूत्र त्याग कर योनी साफ कर देनी चाहिए ऐसा करने पर यदि मार्ग में जीवाणु आदि हो तो साफ हो जाते हैं। मूत्र मार्ग के आसपास की त्वचा साफ
एवं सुखी रखनी चाहिए ताकि जीवाणु न पनप सकें।
सिस्टाइटिस की रोकथाम – अधिक तरल पदार्थ पीने से सिस्टाइटिस को रोकने में मदद मिल सकती है। हाइड्रेटेड रहने से मूत्र पथ से जीवाणुओं को बाहर निकालने में मदद मिलती है, जिससे जलन कम हो जाती है। इसके अलावा ऐसे ड्रिंक्स से बचना चाहिए जो मूत्राशय में जलन पैदा कर सकते हैं, जैसे शराब और कैफीन। विटामिन सी युक्त पदार्थों का सेवन करना चाहिए। विटामिन सी इम्युनिटी को बढ़ावा देने और मूत्र को अधिक एसिडिक बनाने के लिए जाना जाता है, जिससे बैक्टीरिया के पनपने के लिए प्रतिकूल वातावरण बनता है। इसके अलावा विटामिन सी में एंटीमाइक्रोबियल और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं, जो संक्रमण से लड़ने में फायदेमंद होते हैं। जहां तक संभव हो गंदगी एवं संक्रमण युक्त पब्लिक शौचालय का उपयोग करने से बचना चाहिए। मूत्र आने पर तुरंत उसका त्याग करना चाहिए क्योंकि मूत्राशय में मूत्र अधिक देर तक रुके रहने से संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। रुके हुए मूत्र में जीवाणु जल्दी वृद्धि करते हैं। यौन संबंध के पश्चात मूत्र त्याग कर योनी साफ कर देनी चाहिए ऐसा करने पर यदि मार्ग में जीवाणु आदि हो तो साफ हो जाते हैं। मूत्र मार्ग के आसपास की त्वचा साफ
एवं सुखी रखनी चाहिए ताकि जीवाणु न पनप सकें।
सिस्टाइटिस में की जाने वाली जांचे – लक्षणों के आधार पर सिस्टाइटिस का निदान कर सकते हैं लेकिन आमतौर पर मूत्र के नमूने की रुटीन व माइक्रोस्कोपिक तथा यूरीन कल्चर जांच की जाती हैं। पुरूषों में सिस्टाइटिस का कारण बढ़ा हुआ प्रोस्टेट होने पर प्रोस्टेट की जांच की जाती है। यदि यह समस्या कैंसर के कारण हो रही है तो मरीज की सिस्टोस्कोपी जांच की जा सकती है। हर मरीज का उपचार रोग के कारण और उसके लक्षणों के आधार पर अलग-अलग हो सकता है। सिस्टाइटिस के लक्षण दिखने पर चिकित्सक से संपर्क कर उपचार शुरू कर देना चाहिए।
आयुर्वेदिक उपचार – सिस्टाइटिस के उपचार के लिए हल्दी सबसे अच्छी जड़ी-बूटी या औषधि है। यह एक शक्तिशाली एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट है जो मूत्राशय की सूजन को कम करता है। एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होने के कारण यह शरीर के अंदर के बैक्टीरिया को भी मार देता है। आंवला, पुनर्नवा, गोक्षुरा, शिलाजीत, कंटकारी, पुनर्नवादि गुग्गलु, गोक्षुरादि गुग्गलु, एलादि चूर्ण, खजूरादि चूर्ण, चंद्रप्रभा वटी, चंद्रकला रस, तारकेश्वर रस, चंदनासव, उशीरासव, वरुणादि क्वाथ, तृणपंचमूल क्वाथ, यवक्षार, श्वेत पर्पटी आदि आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन तथा वातनाशक अभ्यंग, स्नेहन, बस्ती एवं परिषेक आदि का प्रयोग सिस्टाइटिस को ठीक करने के लिए चिकित्सक के परामर्श अनुसार कराना चाहिए।
करने योग्य (पथ्य) – अधिक मात्रा में तरल पदार्थ पीएं, नारियल पानी, द्राक्षा, आंवला, मूंग, खरबूजा, खजूर, चैलाई, गाय का दूध, पेठा आदि का सेवन करें। अपने भोजन में धनिया, दालचीनी, हल्दी जैसी जड़ी-बूटियों को शामिल करें। ढीले और आरामदायक कपड़े पहनें, खासकर अंडरवियर। यौन क्रिया से पहले और बाद में मूत्र त्याग करें और अपने जननांग क्षेत्र में उचित स्वच्छता बनाए रखें। योग और ध्यान का अभ्यास करें।
क्या न करें (अपथ्य) – लाल मिर्च, उड़द, तांबूल, अधिक नमक, विरुद्ध भोजन, विषम भोजन, तैलीय पदार्थ, मादक द्रव्य का सेवन व अधिक परिश्रम से बचें।