नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम यह किडनी में होनेवाली व्याधि है जो किसी भी उम्र में हो सकती है, परंतु विशेष रूप से यह बच्चों में होने वाला रोग है। नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम क्यों होता है ? अधिकांशतः 90% व्यक्तियों में उसका कारण ज्ञात नहीं होता है। कुछ बच्चों में आनुवांशिकता हो सकती है। कभी-कभी कुछ संक्रमण जैसे हिपेटाइटिस, HIV, मलेरिया जैसे रोगों में किडनी पर प्रभाव पड़ कर नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम हो सकता है।
जितने शीघ्र इस रोग का पता चला और तुरंत ही इलाज शुरु हो गया तो इस व्याधि पर नियंत्रण भी जल्दी शुरू हो जाता है। इसलिये इस रोग के शुरुवाती लक्षण क्या होते हैं? इसकी जानकारी हम आगे देखते हैं-बच्चे के शरीर में सूजन दिखाई देती है। ये सूजन विशेष रूप से आँखों के आसपास, पैरों के पंजों में दिखाई देती है। मूत्र में झागपन दिखाई देता है। ये लक्षण दिखते ही तुरंत विशेषज्ञ के पास रूग्ण को ले जाना चाहिये। अपने आप या किसी दूसरे के बताये नुस्खे से ईलाज करने की गलती कभी न करें।
अब हम यह समझते है कि नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम क्या होता है? नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम यह किडनी में होनेवाली बीमारी है। किडनी का काम है हमारे शरीर के रक्त को साफ करना और निरर्थक अंश को शरीर से मूत्र द्वारा बाहर निकालना। किडनी में glomerulus नाम की एक छन्नी होती है यदि इसमें सूजन आती है तो प्रोटीन बाहर निकलने लगता है और मूत्र में आने लगता है। मूत्र द्वारा प्रोटीन बाहर निकलने से शरीर में प्रोटीन की कमी होने लगती है और रक्त वाहिकाओं से जलीय द्रव बाहर रिसने लगता है, जिसके कारण शरीर में सूजन दिखने लगती है, विशेषतः नेत्र के नीचे और पंजो में। रुग्ण का वजन बढ़ने लगता है। रोगी के रक्त में कोलेस्टेरॉल बढ़ने लगता है, भले ही रोगी कम चिकनाईयुक्त भोजन करता हो।
इस बीमारी में रक्त जाँच में CBC, Lipid profile, Kidney function test, HIV, Malaria, Hepatitis आदि जाँच की जाती है। मूत्र जांच में प्रोटीन की मात्रा की परीक्षा की जाती है, जो कि घर पर भी एक साधारण dipstick के द्वारा नियमित की जाती है। कभी-कभी kidney biopsy की आवश्यकता भी पड़ती है। कुछ अन्य जाँच भी X-ray, USG आदि चिकित्सक आवश्यकतानुसार करते हैं।
इस बीमारी का इलाज विशेषज्ञ डॉक्टर की देखरेख में ही होना चाहिये। डॉक्टर की सलाह के अनुसार औषधियाँ सेवन करना चाहिये और उनके हिसाब से ही निर्धारित कालावधि, तक पूरा ईलाज करना चाहिये। कभी-कभी लोग, बीच में ही दवाई बंद कर देते हैं और दूसरों की बातों में आकर दूसरी दवाईयों या नुस्खों का सेवन प्रारंभ कर देते हैं, जो रूग्ण के लिये घातक साबित हो सकता है।
किसी भोजन से नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम नहीं होता है, लेकिन नेफ्रोटिक सिन्ड्रोम होने पर भोजन में परहेज करना चाहिये। अन्यथा सामान्य भोजन से बीमारी में वृद्धि और इसके उपद्रव अधिक उग्र रूप ले सकते हैं। सामान्यतः रोगी को पानी की मात्रा कम कर दी जाती है। नमक का प्रयोग बंद या अत्यल्प किया जाना चाहिये। चर्बीयुक्त आहार का प्रयोग अत्यल्प किया जाना चाहिये। भोजन में घी, तेल, मक्खन, नमक, बेकरी फुड, पचने में भारी, डिब्बाबंद आहार, बाहर का आहार द्रव्य नहीं या अत्यल्प मात्रा में ही करना चाहिये। ताजे फल, ताजी सब्जियाँ, whole grain food, सूखे दाने का ही सेवन करना चाहिये। रोगी की अवस्थानुसार चिकित्सक आहार तालिका बनाते हैं और उस तालिका के अनुरूप ही रोगी को परहेज करना चाहिये।
इस बीमारी का इलाज थोड़ा लंबा होता है इसलिये धैर्यपूर्वक इसका इलाज करवाने से यह पूरी तरह से ठीक भी हो जाती है। लेकिन, कुछ रुग्णों में इस व्याधि के पुनदुर्भाव भी होते हैं, इसलिये नियमित इलाज, जांच, परहेज यह विशेषज्ञ द्वारा करवाया जाना चाहिये।
अंत में मैं इतना कहना चाहूंगी कि किसी और लोग की सलाह या बातों से भ्रमित न के होकर जैसे ‘‘दवाइयों के दुष्प्रभाव होते हैं, फलाने पैथी में रामबाण इलाज है’’ नसे न उलझकर योग्य डॉक्टर से पूरा इलाज करवाकर इस बीमारी से पूर्णरूप से मुक्त होकर अपनी किडनी को बचाकर रखा जा सकता है।