गुर्दे से संबंधित किसी भी प्रकार की बीमारी अथवा नकारात्मक लक्षण को नजरअंदाज करना घातक हो सकता है। अतः पथ्य आहार-विहार और घरेलू योगों का प्रयोग करने के साथ ही ऐसी स्थिति में दक्ष गुर्दा रोग विशेषज्ञ से भी अवश्य संपर्क करना चाहिए, ताकि बीमारी का सही निदान हो सके और इसके बाद समुचित उपचार द्वारा उसका पूर्णरूपेण निवारण किया जा सके।

हम जो भी आहार ग्रहण करते हैं, वह उसी रूप में पूरा का पूरा शरीर द्वारा अवशोषित नहीं किया जाता। उसका कुछ भाग शरीर में अवशोषित होकर शरीर के काम आ जाता है और शेष भाग मल-मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है। इस प्रक्रिया को उत्सर्जन कहा जाता है, जिसे संपन्न करने में गुर्दों की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

हमारे शरीर में दो गुर्दे होते हैं, जो रीढ़ की हड्डी के दोनों ओर पेट के ऊपरी भाग में विद्यमान रहते हैं। गुर्दों की लंबाई 10 से 18 सेंटीमीटर तक होती है। बच्चों में गुर्दों का आकार अपेक्षाकृत छोटा होता है। गुर्दे में करीब 10 लाख यूनिट होते हैं, जिन्हें नेफ्रॉन्स (वृक्काणु) कहा जाता है। यह एक आश्चर्यजनक तथ्य है कि यदि नेफ्रॉन्स को एक के बाद एक जोड़ दिया जाए तो इनकी पूरी लंबाई 96 से 104 किलोमीटर तक हो जाएगी।

गुर्दे का कार्य मूत्र का निर्माण करके उसे बाहर निकालकर शरीर को स्वस्थ-सबल बनाए रखना है। गुर्दे जब तक स्वस्थ रहते हैं तब तक अपना काम बखूबी निभाते हैं लेकिन कुछ खास कारणों से जब ये रुग्ण हो जाते हैं तब अपना कार्य पूरी तरह से नहीं कर पाते तथा इनसे संबंधित विभिन्न प्रकार की बीमारियों के लक्षण सामने आने लगते हैं। गुर्दे के रोगग्रस्त होने के लिए कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- 

1. अनेक तरह की औषधियों, पेन किलर आदि का अत्याधिक और अनावश्यक प्रयोग करना।
2. शरीर में रक्त व पानी की तीव्र कमी होना। उल्टी, दस्त हैजा आदि बीमारियों में अक्सर शरीर में पानी की कमी हो जाती है।
3. गुर्दे की छलनियों में सूजन होना। ऐसी दशा में मूत्र में प्रोटीन आने लगती है जिसे ग्लोमेरूलो नेफ्राइटिस ;ळसनउमतनजसव दमचीतपजपेद्ध नाम दिया जाता है।
4. मूत्र संस्थान में पथरी बनना तथा मूत्रमार्ग में रुकावट होना।

गुर्दा संबंधी कुछ जटिल व घातक बीमारियां निम्नलिखित हैं-

गुर्दे की सूजन

ज्वर, खसरा, चेचक, हैजा, आंत्रिक ज्वर, फुफ्फुस प्रदाह, पुनराक्रमक ज्वर, विसर्प, उपदंश, विषाक्त औषधियों का प्रयोग, रक्त की विषाक्तता, मूत्र में जीवाणु पैदा होना, अधिक शराब पीना, आग से जलना आदि कारणों से गुर्दे में सूजन उत्पन्न हो जाती है।

गुर्दे में रक्त का शोधन सही ढंग से न होने से पानी का अंश मूत्र द्वारा कम निकलता है। ऐसी दशा में मूत्रवाहक तंत्र का शोधन अच्छी तरह से न होने के कारण मूत्र के साथ विभिन्न पदार्थ निकलने लगते हैं, फलस्वरूप आंतरिक सूजन उत्पन्न होकर बुखार आने लगता है। इस स्थिति में मूत्र तंत्र का शुद्ध होना नितांत आवश्यक है।

गुर्दे में सूजन होने पर गुर्दे के स्थान और कमर में दर्द होता है जो नीचे की ओर जांघों में जाता है। जिस गुर्दे में सूजन होती है, उस ओर का पैर खींचने पर दर्द बढ़ जाता है। जांघ का भीतरी भाग सुन्न-सा लगता है। मूत्र बहुत कम मात्रा में, थोड़ी-थोड़ी देर बाद तथा दर्द के साथ आता है। मूत्र में काले रंग का रक्त भी आ सकता है। इसके अलावा सर्दी लगकर बुखार होना, वमन-मितली, कब्ज आदि लक्षण भी पाए जाते हैं। गुर्दे की सूजन में मरीज का शरीर फूल जाता है, 

विशेषकर चेहरा तथा आंखों की पलकों की त्वचा फूल जाती है। कई बार तो आंखें तक छिप जाती है और चेहरे का रंग फीका पड़ जाता है।

बचाव और उपचार

• मरीज को जौ या चावल का पानी या अलसी की चाय पिलाना अत्यंत ही लाभदायी है। ठोस भोज्य पदार्थों की बजाय सब्जियों को पकाकर निकाला गया रस देना चाहिए।
• मरीज को बिस्तर पर आराम से लिटाए रखना चाहिए।
• पसीना लाने के लिए गरम पानी में चादर भिगोकर तथा निचोड़कर गर्दन तक यह गरम (सहन योग्य) चादर मरीज के चारों ओर लपेट दें। इसके ऊपर चादर और एक कंबल डाल दें। ऐसा करने से 20-25 मिनट में खुलकर पसीना आने से मरीज खुद को हल्का महसूस करता है।
• अत्यधिक सर्दी से मरीज का बचाव करना चाहिए तथा अत्यधिक ठंडे पानी से उसे कभी स्नान नहीं कराना चाहिए।
• यदि पेट पर सूजन आ जाए तो थोड़ी-सी मूली और मूली के पत्ते कुचलकर बारीक पीसकर मरहम की तरह दर्द वाले स्थान पर लगाकर पट्टी बांधने से राहत मिलती है।
• 100 ग्राम मूली के रस में 10 ग्राम कलमी शोरा डालकर खूब खरल करें ताकि सारा पानी सूख जाए। अब इसकी चने के बराबर की गोलियां बना लें। मरीज यह 1-1 गोली सुबह-शाम सेवन करें और पानी पिएं।
• लहसुन की पुल्टिस मूत्राशय के पास बांधे और तीव्र बुखार होने पर थोड़ा-सा लहसुन कूटकर मरीज को संुघाए।
• बेल के पत्तों को सुखाकर चूर्ण तैयार करके रख लें। आधा चम्मच की मात्रा में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण के साथ मिलाकर रात में गुनगुने पानी के साथ इस चूर्ण का सेवन कराएं।

मूत्राघात

मूत्राघात का आशय है मूत्रत्याग में रुकावट अथवा अवरोध पैदा होना। इस बीमारी में मूत्र की थैली में मूत्र भरा रहता है लेकिन मूत्र का समुचित निष्कासन नहीं हो पाता। नाभि के नीचे पेडू फूल जाता है। मूत्रत्याग की इच्छा होती है लेकिन मूत्रत्याग नहीं हो पाता। इसके साथ ही बेचैनी, तंद्रा, मोह, बेहोशी आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं। मरीज पीड़ा के मारे चिल्लाता रहता है, पेडू वाला भाग फूलकर गांठ-सा हो जाता है और दबाने पर कठोर महसूस होता है तथा मरीज को इससे खास पीड़ा होती है।

बचाव और उपचार

• मूत्राघात में रबड़ की सलाई (Cathetor) जननेंद्रिय में डालकर मूत्रत्याग कराना चाहिए। इसके लिए चिकित्सक की ही मदद ली जानी चाहिए।
• ककड़ी के बीज और सेंधा नमक बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें। यह 5-5 ग्राम चूर्ण कांजी (मट्ठा) के साथ सेवन कराने से मूत्राघात में जल्दी आराम मिलता है।
• छोटी इलायची का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण आधा-आधा ग्राम की मात्रा में अनार के रस और शहद के साथ मिलाकर तीन-चार बार सेवन कराना लाभप्रद होता है।

गुर्दे की पथरी

जिन व्यक्तियों को खट्टे-मीठे पदार्थ व तैलीय पदार्थ, गर्म पदार्थ, मिर्च-मसालेदार पदार्थ खाने की आदत होती है तथा जो ऐसे पदार्थों का प्रयोग प्रतिदिन करते हैं, उनके गुर्दे में क्षारीय तत्व बढ़ जाते है तथा गुर्दे में सूजन आ जाती है। ऐसी दशा में मूत्र के साथ चूने का भाग एकत्रित होकर गुर्दे में जमा होता रहता है, फिर वह रेत के रूप में परिवर्तित होकर पथरी का रूप ले लेता है। इसे ही गुर्दे की पथरी कहा जाता है। कभी-कभी मौसम के विपरीत आहार लेने से भी गुर्दे की पथरी बन जाती है। शुरु में पथरी छोटी होती है और धीरे-धीरे यह बड़ी होती जाती है।

गुर्दे में पथरी बनने पर मूत्रत्याग करते समय जलन होती है। कभी-कभी मूत्रत्याग के समय इतनी तीव्र पीड़ा होती है कि मरीज बेचैन हो जाता है और मूत्र भी रुक-रुककर आता है। गुर्दे की पथरी नीचे की ओर चलती है, इसलिए यह पीड़ादायी होती है।

बचाव और उपचार

• पानी का अधिकाधिक सेवन करें।
• दूध व दूध से निर्मित पदार्थों, पालक, टमाटर तथा कैल्शियमयुक्त खाद्य पदार्थों का त्याग करें।
• यदि गुर्दे या मूत्रमार्ग में पथरी हो, मूत्र में रुकावट हो जाए अथवा मूत्र में जलन व दर्द हो, तो ऐसी स्थिति में अशोक के बीजों का पिसा हुआ चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में सेवन करके ऊपर से एक गिलास ताजा पानी पिएं। कुछ दिनों तक नियमित रूप से दो-तीन बार यह प्रयोग करते रहने से इन सभी समस्याओं में पूरा लाभ मिलता है।
• पथरी रोग और गुर्दों की कमजोरी में बथुआ का साग लाभदायी है। बथुआ का रस पीने से मूत्र खुलकर आता है तथा पथरी टूट-टूटकर निकल जाती है।
• गुर्दे और मूत्राशय की पथरी में प्रतिदिन तीन-चार बार गाजर का रस पीने से पथरी गल कर निकल जाती है। इस प्रयोग से गुर्दा सहित अन्य अंगों में संक्रमण की आशंका कम हो जाती है।
• गुर्दों की सफाई के लिए तथा मूत्राशय की सूजन में गाजर के रस के साथ ककड़ी, खीरा और चुकंदर का रस समभाग मिलाकर पीना विशेष रूप से लाभप्रद है। इनमें से प्रत्येक का 150-150 ग्राम रस प्रयोग में लाना चाहिए।
• गुर्दे और मूत्राशय की पथरी के निवारण के लिए 30 से 60 ग्राम अनानास का सेवन लाभप्रद होगा।
• प्याज में पथरी को गलाने की अद्भुत क्षमता होती है। अतः अपने भोजन में प्याज को अवश्य शामिल करें। भोजन के साथ प्याज का सलाद खाएं ही, इसके अलावा भी दिन में एक-दो कच्चे प्याज जरूर खाएं।

गुर्दे फेल होना

यदि गुर्दे क्षतिग्रस्त हो गए हों, तो शरीर की आंतरिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है और दूषित तत्व शरीर में इकट्ठे होने लगते हैं, जिसके गंभीर दुष्प्रभाव होते हैं। गुर्दे अचानक क्षतिग्रस्त होने से कार्य करना बंद कर सकते हैं।

विषम बुखार, तीव्र संक्रामक बुखार, रोमांतिका या लघु मसूरिका, काली खांसी, पीत ज्वर, उपदंश और संक्रामक ज्वरों के कारण कभी-कभी गुर्दों में सूजन आ जाती है।

गुर्दे वाले भाग में गहरी चोट लगना, गुर्दे में पथरी, रात में ज्यादा जागना, अत्यधिक मानसिक श्रम करना, अधिक भोजन करना, अधिक बोलना आदि कारणों से भी गुर्दे फेल हो जाते हैं।

भोजन के प्रति अरुचि, हिचकी, उल्टी, रक्तगत पोटेशियम की वृद्धि, रक्त में जलीयांश की कमी, तुरंत संक्रमण होना, संपूर्ण शरीर में सूजन होना, उच्च रक्तचाप, हृदय की धड़कन का असामान्य रूप से बढ़ जाना, त्वचा में विवर्णता या खुजली होना, रक्त की कमी, थकावट, श्वांस लेने में कठिनाई होना, सीरम क्रियेटिनीन की मात्रा बढ़ना आदि लक्षण गुर्दे के क्षतिग्रस्त होने के संकेत हो सकते हैं।

बचाव और उपचार

• खीरे के बीज, कुटकी और गोक्षुर बराबर मात्रा में लेकर मिश्रित कपड़छन चूर्ण तैयार कर लें। यह एक-एक चम्मच चूर्ण भोजन के पहले पानी के साथ एक माह तक सेवन कराएं।
• शतावरी, गोक्षुर, विदारीकंद, कसेरू और पंचतृणमूल बराबर मात्रा में लेकर मोटा कूटकर विधिपूर्वक काढ़ा बनाकर शक्कर मिलाकर दिन में 3-4 बार 20 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन कराएं।
• ककड़ी के बीज, मुलेठी और दारूहल्दी बराबर मात्रा में लेकर मोटा कूटकर इसका काढ़ा बनाकर पिलाएं या फिर इनका मिश्रित चूर्ण तैयार करके 5-5 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ सेवन कराएं।
• अडूसे के पत्ते और खीरा या ककड़ी के बीज बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर अंगूर के स्वरस के साथ सेवन कराएं।
• अशोक के बीजों का चूर्ण ठंडे पानी के साथ दिन में 2 बार 5-5 ग्राम की मात्रा में सेवन कराएं।
• शुद्ध शिलाजीत 500 मिलीग्राम और शक्कर 1 ग्राम की मात्रा में मिलाकर दिन में दो बार पानी या दूध के साथ सेवन कराएं।

ध्यान रहे, गुर्दे से संबंधित किसी भी प्रकार की बीमारी अथवा नकारात्मक लक्षण को नजरअंदाज करना घातक हो सकता है। अतः पथ्य आहार-विहार और घरेलू योगों का प्रयोग करने के साथ ही ऐसी स्थिति में दक्ष गुर्दा रोग विशेषज्ञ से भी अवश्य संपर्क करना चाहिए, ताकि बीमारी का सही निदान हो सके और इसके बाद समुचित उपचार द्वारा उसका पूर्णरूपेण निवारण किया जा सके।

डॉ. हनुमान प्रसाद उत्तम
कानपुर

Dr. Mamtani's Ayurvedic Panchakarma Hospital G Kumar Arogyadham

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