मधुमेह का किडनी पर प्रभाव

मधुमेह देश में महामारी का रूप ले रहा है। यह रोग अपेक्षाकृत कम आयु में हो रहा है। मधुमेह जीवन पर्यंत का रोग है, इसको ’साइलेन्ट किलर‘ कहा जा सकता है। मधुमेह के कारण शरीर के लगभग सभी अंग देर-सवेर विभिन्न रूप से क्षतिग्रस्त होने लगते हें। मधुमेह के कारण स्नायु, रक्तवाहिनियों, आंखों, गुर्दे, हृदय इत्यादि अंगों के जटिल रोग हो सकते हैं। विकसित देशों में मधुमेह के प्रति जागरूकता तथा रोग पर प्रभावी नियंत्राण कर इसकी जटिलताओं पर भी काफी हद तक नियंत्राण प्राप्त कर लिया गया है पर अविकासशील देशों  में अज्ञानता, उपचार न कराने, आर्थिक कठिनाईयों इत्यादि कारणों से इसकी जटिलताओं के कारण जीवन कष्टप्रद हो जाता है। मधुमेह के कारण होने वाली जटिलताओं में सबसे गंभीर, जटिल, कष्टप्रद और खर्चीली समस्या मधुमेह जनित गुर्दो के रोग या डायबिटीक नैफ्रोपैथी है। जिसकी परिणती किडनी फेल्योर में होती है। किडनी फेल्योर मधुमेह रोगियों में मुत्यु का सबसे प्रमुख कारण है।

मधुमेह का किडनी पर प्रभाव or मधुमेह और किडनी

Worsening Blood Pressure Contro

मधुमेह का किडनी पर प्रभाव

Protein in the Urine

मधुमेह का किडनी पर प्रभाव

Swelling of Feet, Ankles, Hands or Eyes

मधुमेह का किडनी पर प्रभाव

Frothy Urine

मधुमेह का किडनी पर प्रभाव

Episodes of Low Sugar

मधुमेह का किडनी पर प्रभाव

Retina Issues Due to Diabetes

डायबिटिक नेफरोपैथी गुर्दे से संबंधित एक गंभीर बीमारी है। यह डायबिटिस के कारण होनेवाला रोग है। नेफरोपैथी का अर्थ है किडनी का क्षतिग्रस्त हो जाना। मधुमेह के कारण किडनी को अपनी कार्यक्षमता से अधिक (80 प्रतिशत से अधिक) काम करने के परिणामस्वरूप वे विकार ग्रस्त हो जाते है, जिसे डायबिटीक नेफ्रोपैथी कहते है। कई मामलो में यह किडनी फेल होने का कारण भी बन सकता है लेकिन हर स्थिति में ऐसा हो यह जरूरी भी नहीं। जो लोग उच्च रक्तचाप या हाई कोलेस्ट्रोल के शिकार होते हैं या धूम्रपान के आदी होते हैं उनमें डायबिटिक नेफरोपैथी की संभावना अधिक होती है।

नेफरोपैथी गुर्दों की उस विफलता का नाम है जब रोगी के गुर्दों की सूक्ष्म संरचना, मूत्र पिण्डों (नेफ्रोन) के ग्लोमेरूलस नामक भाग के काठिन्यीकरण (Glomerulo Sclerosis) के कारण प्रोटीन (एल्ब्यूमिन) छनकर मूत्र के साथ शरीर से बाहर जाने लगती है। प्रत्येक गुर्दे की संरचना लाखों नेफ्रोन्स यानि मुत्र पिण्डों के मेल से ही होती है। मूत्रपिण्ड एक सम्पूर्ण इकाई होते है इनके ग्लोमेरूलस भाग से जब रक्त गुजरता है तो दूषित रक्त की अशुद्धियां मूत्र के साथ छनकर अलग निकल जाती हैं और शुद्ध रक्त साफ होकर दूसरी तरफ निकल जाता है।

मधुमेह का किडनी पर प्रभाव
ब्लड शुगर बढ़ने पर...

मधुमेह में इंसुलिन की कमी के कारण रक्त शर्करा में जब तेजी से वृद्धि होने लगती है, तो गुर्दे रक्त की इस अतिरिक्त शर्करा को बाहर निकालने का यथाशक्ति प्रयत्न करते है। फिर भी रक्त में शर्करा की मात्रा अधिक रहने लगती है, परिणामस्वरूप उसकी अम्लता में भी वृद्धि होने लगती है। रक्त में दीर्घकालीन अतिरिक्त शर्करा के कारण गुर्दों में सूजन, दुर्बलता आदि दोष उत्पन्न हो जाते है। रक्त को छानकर साफ करने वाली गुर्दों की इकाई नेफ्रोन्स में कठोरता आने लगती है। इसके बाद गुर्दों की रक्तवाहिनियां भी संकरी होने लगती है। अतः अनियंत्रित मधुमेह और उच्च रक्तचाप के कारण वसा और ग्लूकोज के मिश्रण इन छन्नियों के ऊपर-नीचे परत के रूप में जमने लग जाते हैं तब इनके छिद्र धीरे-धीरे संकरे होने लगते हैं। कुछ समय उपरान्त ऐसी अवस्था भी आ जाती है जब यह छिद्र पूरी तरह बन्द हो जाते है। इन सब परिवर्तनो के कारण सर्वप्रथम पेशाब में प्रोटीन निकलने लगती है और गुर्दे क्रमशः निष्क्रिय होने लगती है। फलस्वरूप दूषित रक्त बिना छने ही धमनियों में परिभ्रमण करता रहता है। यह दूषित पदार्थ यूरिया, क्रिएटिनिन के रूप में भी हो सकते है। अतः गुर्दों की कार्यक्षमता जैसे-जैसे घटती जाती है रक्त में यूरिया और क्रिएटनिन की मात्रा बढ़ती जाती है। इसे यूरीमिया (यूरिया विषाक्तता) कहा जाता है। इसके बाद शरीर से पानी और क्षार का निकलना जरूरत से कम हो जाता है, फलस्वरूप शरीर में सूजन होने लगती है, (शरीर का वजन बढ़ने लगता है) और खून का दबाव बढ़ने लगता है। यह अवस्था जानलेवा सिद्ध हो सकती है। इसे जीर्ण गुर्दों की विफलता (क्रोनिक रीनल फेल्योर) कहते है। 

मधुमेह के लगभग एक तिहाई मरीजों में देर सवेरे गुर्दे अवश्य ग्रसित हो जाते हैं। मधुमेह के कारण होने वाले गुर्दो के रोग अन्य गुर्दों के रोग से ज्यादा जटिल, गंभीर होते है। मधुमेह के कारण गुर्दे प्रभावित होने का डर रोग की समयावधि, गंभीरता, ब्लड़ शुगर पर नियंत्रण साथ में उच्च रक्तचाप और अत्याधिक प्रोटीन युक्त भोजन करने से बढ़ जाता है।

जिन लोगों को 15 वर्ष या उससे अधिक समय से डायबिटीज़ है, उन्हें यह बीमारी होने की आशंका अधिक होती है। यानी आमतौर पर 50 से 70 वर्ष की उम्र के लोगों में यह बीमारी होने की आशंका होती है। यह बीमारी लगातार बढ़ती रहती है। इसे काबू करना कई बार काफी मुश्किल हो जाता है। इस बीमारी के ग्रसित लोगों के लिए अपना रक्तचाप नियंत्रित रखना भी बेहद जरूरी होता है। अगर किसी वजह से मरीज अपना रक्तचाप काबू में नहीं रख पाता है, तो फिर उसे इस बीमारी के घातक परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। हाई कोलेस्ट्रॉल के शिकार लोगों को भी डायबिटिक नेफरोपैथी से बचकर रहना चाहिए।

कारण

मधुमेह रोगियों में किडनी की खराबी अनियंत्रित मधुमेह, आनुवांशिक कारणों और रोगाणुओं के संक्रमण से हो सकती है। अनियंत्रित मधुमेह के कारण गुर्दों की कोशिकाओं में ग्लूकोज के अभाव और वसायुक्त कार्बोहाइड्रेट वाले पदार्थों के संग्रह से विषमताएं उत्पन्न होती हैं। आनुवांशिक प्रकार के रोगियों में अन्य रोगियों की अपेक्षा नेफरोपैथी होने की संभावना अधिक रहती है।

इनके अतिरिक्त गुर्दों की धमनी (रीनल आर्टरी) में एकाएक अवरोध आ जाने, सिस्टिक डिजीज, गुर्दों में पथरी बन जाने से मूत्र पिण्डों का नष्ट होने लगना, मूत्र पिण्डों की सूजन (ग्लोमेरूलो नेफराइटिस), कुछ औषधियों और मादक पदार्थों के लगातार सेवन से उनके क्षति ग्रस्त हो जाने तथा छोटी उम्र में ही उच्च रक्तचाप का मरीज बन जाने से भी गुर्दों की विफलता हो सकती है। ब्लडप्रेशर के लगातार बढ़े रहने से गुर्दों के मूत्रपिण्डों में अपरिवर्तनीय क्षति उत्पन्न हो जाती है। ऐसा देखा गया है कि यदि मधुमेह रोग के साथ व्यक्ति अनियंत्रित हाईब्लड़प्रेशर से पीड़ित है तो नेफरोपैथी होने की संभावना 4 गुना बढ़ जाती है। ब्लड़प्रेशर को नियंत्रित रख कर गुर्दों को इस समस्या से लंबे समय तक बचाया जा सकता है। इसके अलावा वे रोगी जिन्हें ब्लड़ शुगर को नियंत्रण रखने के लिए नियमित रूप से इन्सुलिन की उच्च मात्रा (150 यूनिट प्रतिदिन से भी अधिक) लेनी पड़ रही है या जिनमें इन्सुलिन के प्रति प्रतिरोध (इन्सुलिन रेजिस्टेन्स) उत्पन्न हो चुका है, वे भी शीघ्र नेफरोपैथी के शिकार बन जाते हैं। मधुमेह के कारण मूत्रवह संस्थान तंत्र में संक्रमण आसानी से ठीक नहीं होते, संक्रमण के कारण गुर्दे क्षतिग्रस्त हो सकते हैं। 

मधुमेह का किडनी पर प्रभाव
लक्षण

आमतौर पर किडनी को नुकसान पहुंचाने के कोई लक्षण नजर नहीं आते। यह नुकसान धीरे से शुरू होता है और परिस्थितियां धीरे-धीरे खराब होने लगती हैं। वास्तविकता यह है कि इस बीमारी के लक्षण नजर आने के 5 से 10 साल पहले से ही किडनी को क्षति पहुंचनी शुरू हो जाती है। प्रारंभिक अवस्था में किडनी के रोग के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। डॉक्टर द्वारा कराए गए पेशाब की जांच में सुक्ष्म मात्रा में माइक्रो अल्ब्यूमिन (प्रोटिन) जाना, यह किडनी के गंभीर रोग की पहली निशानी है। वे लोग जिन्हें गंभीर व लंबे समय से किडनी की बीमारी है, उन्हें इस प्रकार के लक्षण नजर आते है-

थकान : इस बीमारी से ग्रस्त मरीज को अधिकांश समय थकान का अहसास होता रहता है। उसका किसी काम में मन नहीं लगता और न ही किसी काम करने की ऊर्जा ही उसमें रहती है।

हर समय बीमारी का अहसास होना: डायबिटिक नेफरोपैथी के मरीज को यह लगता है कि वह बीमार है। उसे भीतर से अपनी तबीयत हमेशा नासाज ही नजर आती है। अपनी सेहत को लेकर वह पूरी तरह कभी आशान्वित और सकारात्मक नहीं होता।

सिरदर्द :  सिरदर्द की शिकायत डायबिटिक नेफरोपैथी के मरीज को होने वाली एक और आम शिकायत है। डायबिटीज़ के रूग्ण को सिर में लगातार दर्द रहे तो डायबिटिक नेफरोपैथी की जांच अवश्य करवानी चाहिए।

मतली और उलटी की शिकायत : इस बीमारी के मरीजों को मतली और उलटी की शिकायत भी परेशान करती है। क्योंकि इस बीमारी में गुर्दे सही प्रकार से काम नहीं करते।

अपचन : अपचन अर्थात् खराब हाजमा भी डायबिटिज़ का एक लक्षण है। यूं तो हाजमा कई कारणों से खराब हो सकता है, लेकिन डायबिटिक की पाचन क्रिया अगर सही प्रकार से काम नहीं कर रही हो और ऐसी समस्या लंबे समय तक बनी रहे तो बिना देर किए अपने डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।

टांगों में सूजन : इस बीमारी में अपशिष्ट पदार्थ साफ करने की गुर्दों की क्षमता पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। ऐसे में शरीर में विभिन्न हिस्सों, विशेषकर टांगों में सूजन आना आम बात है। डायबिटिस के मरीजों को चाहिए कि अगर उन्हें लंबे समय से यह बीमारी है और साथ ही अगर उन्हें अपनी टांगों में सूजन की शिकायत है तो उन्हें डायबिटिक नेफरोपैथी की जांच करवा लेनी चाहिए।

पारिवारिक इतिहास : कुछ मामलों में रूग्ण का पारिवारिक इतिहास मायने रखता है। डायबिटिज़ से पीड़ित हर व्यक्ति को किडनी संबंधी शिकायत भी नहीं होती। लेकिन, किसी के परिवार में अगर इस बीमारी का इतिहास रहा है, तो व्यक्ति को इस बीमारी से ग्रस्त होने की आशंका अधिक होती है।

धूम्रपान से होता है खतरा : डायबिटिज़ ग्रस्त वे मरीज जो धूम्रपान करते है और वे लोग जिन्हें 20 वर्ष की आयु से पहले टाइप वन डायबिटिज़ हो गई थी, किडनी की समस्याएं होने का खतरा अधिक रहता है।

गुर्दे निष्क्रिय होने पर (किडनी फेल्योर) दुषित तत्व शरीर में जमा होने लगते है। जिससे रक्त में क्रिएटिनिन, यूरिया व अमोनिया का स्तर बढ़ने लगता है। जिससे मस्तिष्क, यकृत, हृदय इत्यादि प्रभावित होने लगते हैं। ऐसे रोगियों में 

जैसे-जैसे गुर्दों की क्षति बढ़ती है वैसे-वैसे उनके मूत्र में एल्ब्यूमिन की मात्रा तो बढ़ती जाती है पर मूत्र की मात्रा घटती जाती है। गुर्दों की कार्यक्षमता कम होने पर उच्च रक्तचाप से ग्रसित मधुमेही में रक्तचाप तेजी से बढ़ने लगता है। रोगी अत्यधिक कमजोरी महसूस करता है। थोड़े से श्रम से सांस फूलने लगती है। गुर्दों की सूजन के कारण हाथ-पैर तथा कमर में हमेशा दर्द बना रहता है। जब रोग पुराना हो जाता है और गुर्दे निष्क्रिय हो जाते हैं, तो शरीर में दूषित तत्व जमा होने लगते है। इससे रक्त में यूरिया, अमोनिया व क्रिएटिनिन बढ़ने तथा शरीर में खनिज और पानी के रूकने से रोगी को उल्टी, हिचकियां शुरू हो जाती हैं, भूख न लगना, पैरों में सुन्नता, मुंह में गंदा स्वाद, नींद न आना, वजन कम होना, शरीर पर खून के चट्टे बनना व सूजन आने लग जाती है एवं रोगी धीरे-धीरे बेहोशी की दशा में जाने लगता है इसे गुर्दो की पूर्ण विफलता कहा जाता है।

संभावित चुनौतियां
  • हाइपोग्लाइसेमिया (इन्सुलिन का कम मात्रा में स्राव होना)।
  • क्रॉनिक किडनी फैल्योर का खतरा।
  • किडनी रोग का अंतिम पड़ाव।
  • हायपरकलेमिया।
  • किडनी प्रत्यारोपण का खतरा।
  • डायबिटीज़ से जुड़ी अन्य समस्याएं।
  • संक्रमण का खतरा।
मधुमेह का किडनी पर प्रभाव
डायबिटिक नैफरोपैथी से बचने के टिप्स

खानपान: डायबिटिक नैफरोपैथी से बचने का सबसे अच्छा तरीका है खानपान। इसलिए अपनी आहार योजना पर विशेष ध्यान दें। खाने के लिए निश्चित दिनचर्या का पालन करें।

1) प्रोटीन का सेवन कम करें: खाने में ज़ादा प्रोटीनयुक्त आहार का सेवन न करें। कम प्रोटीन वाला खाना खाकर (10 प्रतिशत से 12 प्रतिशत कम कैलोरी हो) गुर्दे की बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। खाने में ताजे फल और हरी सब्जियों को शामिल करें। यदि रोग शुरूआती अवस्था में है तो मांसाहारी तथा जानवरों से प्राप्त भोज्य पदार्थों, अत्याधिक प्रोटीन युक्त भोज्य पदार्थ (गोश्त, चिकन, दाल, पनीर, दूध, अंडो) का सेवन न्यूनतम मात्रा में करें।

2) रोगी को आहार में कम नमक लेने की सलाह दी जाती है। अधिकांश उच्च रक्तचाप और सूजन वाले किडनी के मरीजों को रोज 3 ग्राम नमक लेने की सलाह दी जाती हैं।

3) पानी की मात्रा : जिस मरीज़ को पेशाब पूरी मात्रा में होता हो, एवं शरीर में सूजन भी नहीं आ रही हो, तो ऐसे मरीजों को उनकी इच्छा के अनुसार पानी-पेय पदार्थ लेने की छूट दी जाती है। जिन मरीजों को पेशाब कम होता हो, साथ ही शरीर में सूजन भी आ रही हो, तो ऐसे मरीजों को पानी कम लेने की सलाह दी जाती है।

4) डायबिटिक नेफ्रोपैथी के मरीजों को सामान्यत : आहार में कम पोटैशियम लेने की सलाह दी जाती है क्योंकि ऐसे रोगी के खून में पोटैशियम बढ़ने का खतरा बना रहता है। जबकि शरीर में हृदय और स्नायु के उचित रूप से कार्य के लिए पोटैशियम की सामान्य मात्रा जरूरी होती है। पोटेशियम प्रधान खाद्य पदार्थ जैसे- फल, सुखे मेवे और नारियल पानी इत्यादि कम या न लेने की सलाह दी जाती है।

5) किडनी फेल्योर के मरीज़ को फॉस्फोरसवाला आहार कम लेना चाहिए। शरीर में फॉस्फोरस और कैल्शियम की सामान्य मात्रा हड्डियों के विकास, तंदुरूस्ती और मजबूती के लिए जरूरी होती है। सामान्यतः आहार में उपस्थित ज्यादा फॉस्फोरस को किडनी पेशाब के रास्ते बाहर निकाल कर उचित मात्रा में उसे खून में स्थिर रखती है। सामान्यतः रक्त में फॉस्फोरस की मात्रा 4.5-5.5 मि.ग्रा. प्रतिशत होती है।

6) किडनी फेल्योर के मरीजों में ज्यादा फॉस्फोरस का पेशाब के साथ निष्कासन नहीं होने से उसकी मात्रा रक्त में बढ़ती जाती है। इसकी अधिक मात्रा हड्डियो में से कैल्शियम खीच लेता है, जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती है।

शरीर में फॉस्फोरस बढ़ने के कारण खुजली, स्नायु की कमजोरी, हड्डियों में दर्द व हड्डियां कमजोर तथा सख्त हो जाने से फ्रैक्चर होने की संभावना ज्यादा रहती है। अधिक फॉस्फोरस वाले आहार है-दूध की बनी वस्तुएं, सूखे मेवे, कोल्ड ड्रिंक्स, मुंगफल्ली, हरा मटर इत्यादि।

शुगर नियंत्रित करें : डायबिटिक नैफरोपैथी का सबसे बड़ा दुश्मन है शुगर, इसलिए शुगर की मात्रा को नियंत्रित करना ही इससे बचाव कर सकता है। मिठाई और शुगरयुक्त खाद्य-पदार्थों का सेवन करने से बचें। शुगर की जांच नियमित करें, शुगर के स्तर की जांच आप आसानी से अपने घर पर कर सकते हैं। यदि शुगर का स्तर ज्यादा है तो अपने चिकित्सक से सलाह लेकर इसका हल तुरंत निकालें।

वजन कम करें : यदि आप का वजन ज्यादा है तो उसे नियंत्रित करें क्योंकि मोटापा डायबिटिज से जुड़ी बीमारियों के बढ़ने का कारण है। इसलिए अपने बढ़े हुए वजन पर काबू पाकर डायबिटिक नैफरोपैथी की संभावना को कम करें।

ब्लड प्रेशर की दवाइयां : ब्लड प्रेशर की दवाएं डायबिटिक नैफरोपैथी से बचाती हैं, क्योंकि रक्तचाप की दवाओं के सेवन से रक्तचाप कम तो होता है, और यह गुर्दे की क्षति होने से बचाता है। इसलिए जिन लोगों को रक्तचाप या मधुमेह की बीमारी है, उन्हें नियमित रूप से इन दवाओं का सेवन करना चाहिए। लेकिन इन दवाओं के सेवन से पहले अपने चिकित्सक से सलाह लें।

धूम्रपान व मद्यपान से बचें : धूम्रपान करने से आदमी की उम्र कम होती है साथ ही यह कई खतरनाक बीमारियों का भी कारण बनता हैं। धूम्रपान का सीधा असर गुर्दे पर पड़ता है। इसलिए यदि आप डायबिटिज़ से ग्रस्त हैं तो धूम्रपान बिल्कुल न करें, और न ही स्मोकिंग करने वाले व्यक्तियों के पास जाएं क्योंकि अप्रत्यक्ष धूम्रपान भी बहुत हानिकारक है। इसके अलावा तंबाकू, गुटखा, अल्कोहल से भी बचना चाहिए।

नियमित जांच आवश्यक : यह बीमारी मधुमेह के ऐसे रोगियों में अधिक देखने को मिलती है, जिन्हें 15 वर्ष या उससे अधिक समय से डायबिटीज़ है। ज्यादातर 50 की उम्र के ही लोगों को यह बीमारी होने की संभावना ज्यादा रहती है। इसलिए 50 साल के बाद अपना विशेष ध्यान रखें और नियमित रूप से जरूरी जांच कराते रहें।

नियमित व्यायाम : डायबिटीज़ और डायबिटिक नैफरोपैथी की संभावना को कम करने के लिए जरूरी है नियमित व्यायाम। इससे न केवल आप फिट रहते हैं बल्कि आपके शरीर के अन्य हिस्से सुचारू काम करते है। व्यायाम करने से गुर्दे की समस्याएं कम होती हैं। मधुमेह की समस्या आम है लेकिन हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाकर न केवल आप ऐसी खतरनाक बीमारी से बच सकते हैं बल्कि इन बीमारी के होने की संभावनाओं को भी कम कर सकते हैं।

डॉक्टर को पूर्ण जानकारी दें : डॉक्टर को अपने बारे में सही जानकारी दें। अगर कभी रोगी को एमआरआई, सीटी स्कैन अथवा कोई ऐसा टेस्ट जिसमें कॉन्ट्रॉस्ट डाई करवाना पड़े, तो डॉक्टर को इस बात की जानकारी अवश्य दें कि डायबिटीज़ है। कॉन्ट्रस्ट डाई आपकी किडनी को और नुकसान पहुंचा सकती है।

डॉक्टर के मार्गदर्शन में औषधि लें : डॉक्टर की सलाह के बिना किसी भी दर्द-निवारक दवा का सेवन न करें। कुछ दवाओं का किडनी पर बुरा प्रभाव हो सकता है। यूरिनरी ट्रेक्ट इंफेक्शन (UIT) के लक्षणों को जानें और बिना देर किए इसका इलाज करवाएं। गंभीर किडनी रोग से बचने के लिए आहार में बदलाव करें और किडनी रोग के कारण होने वाली समस्याओं को दूर करने की कोशिश करें।

डायबिटीज के लिए जरूरी दवा या इंसुलिन की मात्रा में क्रमशः कमी होने लगती है। पहले जितनी मात्रा से डायबिटीज काबू में नहीं रहता था बाद मे उसी मात्रा लेने से डायबिटीज खत्म हो गया है, यह सोच कर गर्व और खुशी का अनुभव करते हैं, पर दरअसल यह किडनी फेल्योर की चिन्ताजनक निशानी हो सकती है। मेटफार्मिन  (Metformin) की तरह की दवाइयां किडनी के लिए नुकसानदायक होती है। अतः किडनी फेल्योर मे बंद करते हैं।

उच्च रक्तचाप खराब हो रही किडनी पर बोझ बन किडनी को ज्यादा कमजोर बना देता है।

सतर्कतापूर्वक हमेशा के लिए उच्च रक्तचाप नियंत्रण में रखना, प्रतिदिन ब्लडप्रेशर मापकर उसे लिखकर रखना चाहिए। खून का दबाव 130/80 से बढ़े नहीं, यह किडनी की कार्यक्षमता को स्थिर बनाए रखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपचार है।

A.C.E.I. और A.R.B. ग्रुप की दवाओ को शुरूआत में इस्तेमाल किया जाएं तो यह दवा खून के दबाव केा घटने के साथ किडनी को होनेवाले नुकसान को कम करने में भी सहायता करती है।

आयुर्वेदिक चिकित्सा

डायबिटिक नेफ्रोपैथी का मूल कारण मधुमेह है, जिसे नियंत्रण में रखना आवश्यक है। आयुर्वेदानुसार लंघन, दीपन, पाचन तथा रूक्षण चिकित्सा करनी चाहिए। इसमें शारीरिक सूजन कम होती है तथा अन्य लक्षणों में भी कमी आती है। रोगी को श्रम तथा शीत से बचकर त्वचा को गर्म रखना चाहिए। ऐसा करने से किडनी की रक्तवाहिनियां फैलती हैं। जीकुमार आरोग्यधाम में मधुमेह के चिकित्सा पैकेज से शुगर नियंत्रित तो होती है, साथ ही मधुमेह के दुष्प्रभाव से भी बचाव होता है। निम्न औषधियां चिकित्सक के मार्गदर्शन में लें।

  • वरुणादि वटी, गोक्षुरादि गुग्गुल, पुनर्नवाघन वटी, आरोग्यवर्धिनी, चंद्रप्रभा वटी, चित्रकादि वटी, गोझरण, हरीतकी चूर्ण, क्षारगुटिका इत्यादि प्रभावी औषधियां हैं।
  • तृणपंचमूल चूर्ण 10 ग्राम लेकर 2 कप पानी में आधा रहने तक उबालें व छानकर दिन में 1 बार लें।
  • वृक्कजन्य शोथ में पुनर्नवासव, गोक्षुरादि गुग्गुल, पुनर्नवादि मण्डूर लाभकारी हैं। 
  • मूलीक्षार 10 ग्राम को मूत्रदाहनाशक चूर्ण (धनिया चूर्ण व मिश्री चूर्ण प्रत्येक 100 ग्राम) के साथ मिलाकर प्रयोग करें और 4 बजे ताजा मूली स्वरस 50 ग्राम मिलाकर प्रयोग करने से किडनी के कार्य सुचारु होते हैं।
  • गोक्षुरादि क्वाथ यवक्षार के साथ मिलाकर लें।
  • रसायन चूर्ण या पुनर्नवा व गोखरू का समभाग चूर्ण 1 ग्राम की मात्रा में लें।
  • धनिया पाउडर सुबह 1 चम्मच व दोपहर त्रिकटु चुर्ण लें।
  • शरीर में सूजन होने पर 1) एक छटांक अदरक का रस सुबह प्रतिदिन लें। 2) पुनर्नवा व सोंठ 3-3 ग्राम पीस-छानकर गोमूत्र के साथ लें। 3) पुनर्नवाष्टक काढ़ा 2-2 चम्मच सुबह-शाम लें।
आयुर्वेदिक चिकित्सा

पंचकर्म के अंतर्गत सर्वांग स्नेहन स्वेदन बीच-बीच में करना चाहिए। किडनी तथा अग्न्याशय के कार्य को मजबूत करने के लिए मात्रा बस्ति व लघुविरेचन के प्रभावी परिणाम मिलते हैं। नस्य द्वारा अंतःस्रावी ग्रंथि अग्न्याशय (Pancreas) उत्तेजित होने से इंसुलिन की मात्रा में वृद्धि होकर रक्तगत शर्करा का नियंत्रण होता है। डायबिटिक नेफ्रोपैथी के रुग्णों में निद्रानाश, भ्रम व एन्जाइटी की समस्या अधिक होती है, जिसके लिए नस्य व शिरोधारा प्रभावी कर्म है। डायबिटिक न्यूरोपैथी में पिंड स्वेद के बेहतर परिणाम मिलते हैं।

हमने प्रायः देखा है कि मधुमेह पीड़ित रुग्ण अन्त में आयुर्वेदिक चिकित्सक की शरण में विवश होकर आता है, लेकिन तब चिकित्सा के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाता। अतः सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि मधुमेह की प्रारंभिक अवस्था में ही यदि आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन किया जाए, तो यह रोग नियंत्रण में शीघ्र आता है। साथ ही इसके दुष्प्रभावों से भी बचाव होता है। अतः मधुमेह के रोगी को लापरवाही नहीं करनी चाहिए। जीवनशैली खानपान में बदलाव कर तथा नियमित दवा सेवन कर रक्त ग्लूकोज स्तर पर कड़ाई से नियंत्रण रखना चाहिए। साथ ही रक्तचाप व ब्लड शुगर पर भी कड़ाई से नियंत्रण रखना चाहिए। इसके अलावा रक्तगत सोडियम-पोटॅशियम, कोलेस्ट्रॉल, यूरिक एसिड स्तर पर भी नियंत्रण जरूरी है।

Dr Gurmukh Mamtani

डॉ. जी. एम. ममतानी
एम. डी. (आयुर्वेद पंचकर्म विक्षेषज्ञ)

Panju Totwani

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top