हृदय शरीर का एक महत्वपूर्ण भाग हैं जो आदमी को जीवित बनाए रखता है । इसकी गति थमते ही मृत्यु हाथ थाम लेती है । हृदय रोग होने के कई संभावित कारण होते है जिसे लक्षणों में आसानी से पहचाना जा सकता है । यह किसी वर्ग विशेष का नहीं होता ना ही यह अमीर-गरीब का भेद करता है । दैनिक कार्यक्रम में जरा सी गड़बड़ी रोग को आमंत्रण दे देती है । सामान्यतः हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति अपने को इसका रोगी मानने को तैयार नहीं होता तथा सीने में दर्द की शिकायत होने पर गैस समझकर परीक्षण के लिए टालने का हरसंभव प्रयास करता है परंतु चेकअप से दूर भागने से इसका इलाज किसी भी तरह संभव नहीं है ।

मनुष्य शरीर के महत्व का प्रत्यंग हृदय जिसका धड़कना ही जिंदगी हैं एक बार यह धड़कना बंद कर दे तो सब कुछ समाप्त हो जाता है। इंसान भी काम कर-कर के थक जाता है पर ईश्वर ने हृदय की रचना तो इस कदर मजबूती से की है कि आयुपर्यन्त उसे थकना नहीं, काम करना भूलना नहीं है। एक बार इंसान किसी चीज को किसी महत्वपूर्ण कार्य को करना भूल सकता है पर हृदय को तो अनवरत काम करना ही है, इसके धड़कने से ही हमारी जीवन की गाड़ी चलती है। इस दिल की धड़कन पर कवियों व शायरो ने न जाने कितनी रचनाएं लिखी है पर चिकित्सा विज्ञान में भी इस दिल के धड़कने को उतना ही महत्व है। आयुर्वेद ने तो इसे मर्म कहा है। मर्म की व्याख्या आचार्यो ने इस प्रकार की है, ’’मारयन्तीति मर्माणि’’ अर्थात शरीर की वह रचना जहां मार लगने से या आघात हाने से तुरंत ही मृत्यु हो जाए। हृदय का अंतर्भाव त्रिमर्म के अंतर्गत किया गया है।

हृदय का मुख्य कार्य संपूर्ण शरीर को रक्त का प्रवाह सही व सुचारू रूप से देना है जिससे रक्त से शरीर के सभी कोषाणुओं को आवश्यकतानुसार ऑक्सीजन मिलता रहें। यदि हृदय में विकृति हो तो शरीर में रक्तप्रवाह व्यवस्थित न होने पर ही अनेक व्याधियों के लक्षण मिलते हैं जिसमें मुख्यतः थकावट, घबराहट, श्वास फूलना, सूजन होना, धड़कन बढ़ना, लकवा इत्यादि।

ब्रिटिश मेडिकल जनरल की रिपार्ट है कि पिछले 25-30 वर्षो से हृदय रोग से विशेषतः हृदय की गति बंद हो जाने से मरनेवालों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसका कारण शारीरिक व मानसिक तनाव का अधिक होना है। आम तौर पर यह देखा जाता है कि हृदय रोग से डॉक्टर, वकील, राजनीतिज्ञ तथा फिल्मी कलाकार आदि पेशेवर लोग ही मृत्यु को प्राप्त होते है।

कारण

हृदय रोग के कारणों में निम्नलिखित घटक शामिल होते हैं-

मादक द्रव्यों का सेवन, अति तनावयुक्त जीवन, अति श्रम, अति क्रोध, शोकादि मानसिक भाव, आहार में वसायुक्त व गरिष्ठ पदार्थों का अधिक सेवन, व्यायाम का पूर्णतः अभाव, हायब्लडप्रेशर, डायबिटीज, मोटापे व हायपरकोलेस्ट्राल से पीड़ित व्यक्ति को हृदय रोग की संभावना अधिक होती है। 

अध्ययन से पाया गया है कि निम्नलिखित व्यक्ति को हृदय विकार होने की संभावना होती है-

1. किसी काम को जल्दबाजी में करने की प्रवृत्ति।
2. समय की सीमा व काम के दबाव में कार्यरत वृत्ति।
3. एक ही समय अनेक काम करने वाले व्यक्ति।
4. सदैव चिंताग्रस्त व्यक्ति।
5. संकीर्ण विचारवाला।
6. संवेदनशील व भावनात्मक स्वभाव के व्यक्ति।
7. समाज व करीबी रिश्तेदारों से टूटे हुए व्यक्ति।
8. एकाकी पन से आक्रांत व्यक्ति।
9. गलत जीवन शैली 
10. व्यसन अधीनता

 उपरोक्त कारणों से हृदय को रक्तप्रदान करनेवाली कोरोनरी धमनी में कोलेस्ट्राल जमा होकर हृदयविकार होने की संभावना होती है। आंकड़े से ज्ञात होता है कि भारत की जनसंख्या के 15 प्रतिशत लोग हृदय विकार से पीड़ित है। प्रत्येक वर्ष 50 लाख से अधिक लोगों को हृदय विकार होते है। उसमें से 15 लाख व्यक्ति हॉस्पिटल पहुंचने के पूर्व ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं। आज हार्टफेल, हार्ट अटैक आम बातें हो गई हैं। युवाओं में हृदय रोग का होना तो हमारे देश के लिए चिंताजनक स्थिति है क्योंकि यही युवा देश के कर्णधार है।

आयुर्वेदानुसार हृदय रोग के कारणों में मल मूत्रादि अधारणीय वेग को रोकने से, अत्यंत उष्ण, अम्ल व तिक्त रस युक्त पदार्थों के अति सेवन से, आघात, भोजन पर भोजन लेने की आदत होने से, हर समय भय या चिंता रहने से 5 प्रकार के हृदय रोग उत्पन्न होते है। वे 5 प्रकार है- वातज, पित्तज, कफज, सन्निपातज व कृमिज।

आधुनिक विज्ञान के मतानुसार हृदय रोग कई प्रकार के होते है।

1. जन्मजात हृदय रोग – इसमें हृदय में छेद होता हैं।  

2. ह्रदय स्पंदन रोग – एरोटिक, माइट्रल व पल्मनरी वॉल्व के संकुचित होने से जैसे माइट्रल वॉल्व स्टेनोसिस, एरोटिक वॉल्व स्टेनोसिस, माइट्रल वॉल्व रिगर्जीटेशन, एरोटिक वॉल्व रिगर्जीटेशन, केरोनरी वाल्व का रोग इत्यादि।

3. रयूमेटिक ह्रदय रोग – इसके कारन रोगी में जोड़ो का दर्द होता है। 

4. एन्जाइना – आजकल अधिकांश लोग छाती के दर्द की  शिकायत करते हैं। इसमें हृदय की मांसपेशियों को ऑक्सीजन पोषक तत्व व रक्तप्रवाह कम होने के कारण छाती में दर्द होता है, यह दर्द एन्ज़ाइना कहलाता है। इसके साथ ही छाती में भारीपन, खिंचाव, दर्द छाती से शुरू होकर हाथ, कंधे,गर्दन व पेट के उपरी हिस्से तक जाता है। रक्तवाहिनियों में रूकावट या बंद होने का मुख्य कारण इनकी दीवारों पर वसायुक्त पदार्थों  का जमा हो जाना है। यह एकत्रीकरण धीरे-धीरे 15-20 वर्षों में होता है। इस वसा के जमा होने के कारण वाहिनियों का रास्ता संकरा हो जाता है व वाहिनियों का लचीलापन कम हो जाता है, इस वसा के एकत्रीकरण को एथेरोस्क्लेरोसिस (Atherosclerosis) कहते हैं।

5. कॉरोनरी आर्टरी डिजीज (सीएडी) यह समस्या तब होती है, जब हृदय तक रक्त, ऑक्सीजन और पोषक तत्व पहुंचाने वाली मुख्य रक्तवाहिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती है। कोरोनरी आर्टरी डिजीज़ कुछ और नहीं बल्कि मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है। लाइफस्टाइल में बदलाव लाकर इसके गंभीर परिणामों से बचा जा सकता है।

हार्ट फेल्युअर के लक्षण:-

छाती में दर्द, भारीपन या जकड़ाहट महसूस होना। सांस लेने में तकलीफ होना, चलने फिरने से श्वास फूलना, घबराहट, लेटने पर तकलीफ बढ़ जाना और बैठने पर कम होना, पैरों में सूजन आना, चेहरे का तेज कम हो जाना इत्यादि लक्षण हार्ट फेल्यूअर के हैं। इन लक्षणों में से यदि आपको कोई लक्षण दिखाई देता है तो शीघ्र ही चिकित्सक से जांच करवाएं।

प्रभावकारी आयुर्वेदिक हृद्य औषधियां:-

हृदय रोग की चिकित्सा करते समय उच्च रक्तदाब, मधुमेह, मोटापा, धूम्रपान, मानसिक तनाव, कोलेस्ट्राल प्रतिशत पर नियंत्रण होना जरूरी है। आयुर्वेदिक संहिताओं में हृद्य औषधियों का वर्णन है, ये हृद्य औषधियां सीधा हृदय को प्रभावित कर उसे सक्षम बनाती है जिससे हृदय अपना कार्य सामान्य रूप से करता है, उनमें से एक औषधि है ’अर्जुन’ मुख्यतः सभी हृदय रोगों में अर्जुन छाल का चूर्ण प्रभावी पाया गया है। मार्केट में उपलब्ध अर्जुनारिष्ट 2 चम्मच सुबह-शाम भोजनोत्तर लें।

आयुर्वेद में हृदय रोगों के मूल कारणों को समूल नष्ट करने के लिए कुछ चमत्कारिक औषधियां है अतः आयुर्वेदिक चिकित्सक से हृदय रोग के मूल कारण का निदान कर औषधि लेने से आशातीत लाभ मिलता है। शुरूवात में एलोपॅथी औषधियों के साथ-साथ आयुर्वेदिक औषधियां जारी रखते हैं तथा फिर शनैः-शनैः चिकित्सक के परामर्शानुसार एलोपॅथी दवाइयां क्रमशः कम करते है।

औषधि चिकित्सा

  • सामान्यतः हृदय रोग में जवाहर रस 1 ग्रॉम, हृदयार्णव रस 5 ग्रॉम, जवाहर मोहरापिष्टी 5 ग्रॉम  , अर्जुननाभ्र 5 ग्रॉम , स्वर्णमाक्षिक भस्म 5 ग्रॉम , लक्ष्मीविलास रस 5 ग्रॉम , मृगश्रंग भस्म 5 ग्रॉम की 40 पुड़िया बनाकर सुबह-शाम खाली पेट अर्जुनारिष्ट 3-3 चम्मच सुबह-शाम समभाग पानी के साथ लें।
  • धड़कन अधिक होने पर प्रभाकर वटी सुबह-शाम 1-1 लें। 
  • वृक्क पर दबाव पड़ने के कारण हृदय रोग होने पर गोक्षुरादि गुग्गुल व चंद्रप्रभावटी 2-2 गोली सुबह-शाम पानी के साथ लें। 
  • हृदय रोग से ग्रस्त कमजोर व्यक्ति ने अर्जुनसिद्ध घृत 1-1 चम्मच सुबह-शाम लेना चाहिए।
  • हृदय शूल में मृगश्रृंग भस्म आधा चम्मच, घी व शक्कर में  मिलाकर 15 मिनट के अंतर से 1-1 बार चटाएं या 2-3 लहसुन की कलियां छीलकर दूध-शक्कर में पकाकर सेवन करें या केवल शक्कर के साथ लहसुन कली लें।
  • हृदय का आकार बढ़ने पर (Hypertrophy) पुनर्नवासव 2-2 चम्मच व नारदीय लक्ष्मीविलास रस 2-2 वटी सुबह-शाम लें। 
  • हृदय रोग में पुष्करमूल चूर्ण अत्यंत उपयोगी है। इसके अलावा पुष्करमूल चूर्ण को शहद के साथ चाटने से जी मिचलाना, खांसी, श्वास और हृदय रोग में लाभ होता हैं।
  • अर्जुन छाल, हरड, अडूसा, रास्ना, पिप्पली, सोंठ, कचूर और पुष्करमूल सभी का समान चूर्ण बनाकर रखें व 1-1 चम्मच सुबह-शाम पानी के साथ सेवन करने से या चार चम्मच चूर्ण का काढ़ा बनाकर खाली पेट सेवन करने से सभी प्रकार के हृदय रोग ठीक होते है।
  • कब्ज होने पर त्रिफला चूर्ण 1 चम्मच रात को सोते समय कोष्ण जल के साथ लें। 
  • उच्च रक्तचाप होने पर उपरोक्त औषधियों के साथ सर्पगंधा घन वटी 1-1 सुबह-शाम सारस्वतारिष्ट 2 चम्मच के साथ भोजनोत्तर लें। उक्त औषधियां चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही लेना चाहिए। 

हृदय रोग में घरेलू नुस्खे

  • लीची का रस कुछ दिनों तक नियमित पीने से हृदय की तेज धड़कन सामान्य होती है।
  • आंवला रस में एक नींबू का रस निचोड़कर पीना हृदयरोगी के लिए लाभकारी है। आंवले के रस में मकोय (रसभरी) का रस मिलाकर पीना हृदयरोगों में हितकर हैं।
  • दिल की धड़कन बढ़ने पर गाजर का रस पीना लाभदायी है अथवा गाजर को उबालकर उसे रातभर खुले आकाश में रख दें। सुबह उसमें गुलाब या केवड़े का अर्क और मिश्री रोगी को खिलाने से फायदा होता है।
  • मनुक्का, बड़ी हरड़ का छिलका और शक्कर मिलाकर पीसकर 3-3  ग्रॉम ठंडे पानी से सेवन करने से हृदय रोग में लाभ होता है।
  • किशमिश को गुलाब जल में भिगोकर खाने से तथा साथ में गुलाबजल पीने से हृदय रोग में लाभ होता है। हृदय रोगियों के लिए नारियल पानी लाभकारी होता है। हृदय रोगी की घबराहट को दूर करने के लिए अमरूद को शहद के साथ पिलाएं।
  • सेब का रस 100 मि.ली. और अर्क गावजवान 50 मि.ली मिलाकर पिलाना हृदय रोगी के लिए हितकर है। फालसे के रस में सोंठ चूर्ण 500 मि.ग्रा मिलाकर सेवन करने से हृदय के विकार में लाभ होता है।
  • दो पके टमाटर का रस निकालकर उसमें सम मात्रा में पानी मिलाकर 1 ग्रॉम अर्जुनछाल चूर्ण मिलाकर पिलाने से हृदय रोग में लाभ होता है।
  • शहतूत के सेवन से हृदय की दुर्बलता दूर होती है। आंवले के मुरब्बा के साथ शहतूत का रस पीने से हृदयरोगी को शांति मिलती है।
  • तुलसी के सात पत्ते, चार काली मिर्च, चार बादाम, सबको ठंडाई की तरह पीसकर आधा कप पानी में प्रतिदिन पीने से हृदयरोग में लाभ होता है।

हृदय विकारों में पंचकर्म

हृदय विकारों में पंचकर्म के प्रभावकारी परिणाम मिल रहे हैं। हृदय विकारों में पंचकर्म के अंतर्गत मुख्यतः स्नेहन (अभ्यंग), वाष्पस्नान, मात्राबस्ति, मृदु विरेचन व हृदय बस्ति करते हैं। हृदय बस्ति में हृदय स्थान पर आटे इत्यादि का घेरा बनाकर उसमें विशिष्ट औषधियां 15-30 मिनट तक रखी जाती हैं। यह चिकित्सा पंचकर्म चिकित्सक के मार्गदर्शन में 15-21 दिन करने से हृदय विकारों में प्रभावकारी परिणाम मिलते हैं। अतः उपरोक्त पंचकर्म चिकित्सा प्रत्येक हृदय रोगी को अपनी जारी औषधियों के साथ अनिवार्यतः करना चाहिए, जिससे हृदय विकारों व उनके उपद्रवों से छुटकारा मिलता है।

योग चिकित्सा

योग चिकित्सा के अंतर्गत हृदय रोगी ने नियमित शवासन, शिथिलीकरण व योगनिद्रा का अभ्यास करना चाहिए। साथ ही अपान वायु  मुद्रा हृदय रोग के लिए लाभकारी मुद्रा हैं।

अपानवायु मुद्रा विधि :- अंगूठे के पास वाली पहली ऊंगली को अंगूठे की जड़ में लगाकर अंगूठे के अग्र भाग को बीच की दोनो अंगुलियों के अगले सिरे से लगा दें। सबसे छोटी ऊंगली को अलग रखें इस स्थिति का नाम अपान वायु मुद्रा है। यह मुद्रा हार्टअटैक को रोकने में सहायक है। हृदय रोग के लक्षण जैसे धड़कन गति तेज या मंद आदि में उपयोगी है। इसके अलावा अपानवायु मुद्रा गैस ट्रबल में भी उपयोगी है।

रामबाण घरेलू नुस्खा :-

1. 150-200  ग्रॉम लौकी को बीज सहित पीसकर उसका रस निकाल लें। इसमें लहसून 3 कली, 5-6 तुलसी व पुदिना की पत्तियां मिलाएं। तैयार रस में उतनी ही मात्रा में पानी डालें। थोड़ा सेंधा नमक, काली मिर्च का पावडर मिलाकर नित्य सेवन करें।

2. प्रतिदिन तीन से चार कली लहसुन का सेवन करने पर कोलेस्ट्राल का स्तर घटता हैं। अर्जुनछाल 100 ग्रॉम दालचीनी व लेंडीपिपली 50-50 ग्रॉम पीसकर मिलाकर रखें। प्रतिदिन सुबह 2 कली लहसुन, आधा चम्मच उक्त पावडर, 1 कप दूध व 1 कप पानी मिलाकर उबालें। 1 कप काढ़ा शेष रहने तक उबालें। तत्पश्चात छानकर खाली पेट पीएं। इस काढ़े के आधे घंटे पश्चात चाय या अन्य नाश्ता वगैरह लें। हायपर कोलेस्ट्राल व हृदयरोग के लिए अनुभूत नुस्खा है। जीकुमार आरोग्यधाम में कई रूग्णों के ऑपरेशन तक इस नुस्खे से टल गए है। 

3. सुखे आंवले का चूर्ण व सममात्रा में मिश्री पीसकर मिलाकर रखें व नित्य सुबह 1 चम्मच खाली पेट लेने से हृदय रोग में लाभ होता है। विशेषतः हृदय की धड़कन, हृदय की कमजोरी, दिल का फेल हो जाना इत्यादि हृदय रोग में अनुभूत योग है।

अपने बीएमआई के बारे में पता करें। इससे सही मात्रा में वजन कम करने में मदद मिलेगी। बीएमआईकी सामान्य रेंज 18.5 से 24.9 के बीच मानी जाती है। कमर वाले हिस्से नापना सबसे जरूरी होता है क्योंकि यह हृदय रोगों से जुड़े खतरों का संकेत देता है। यदि आपके हिप वाले हिस्से से अधिक चर्बी पेट और कमर के आस-पास है, तो आपको हृदय रोगों और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा अधिक है। महिलाओं में 35 इंच से अधिक और पुरूषों में 40 इंच से अधिक कमर का आकार खतरे का संकेत देती है। यदि आप ओवरवेट हैं तो 3 से 5 प्रतिशत तक वजन कम करने से ही ट्राइग्लिसराइड, ब्लड ग्लूकोज का स्तर कम हो जाता है और टाइप 2 डायबिटीज का खतरा भी।

हृदयरोग मुक्ति हेतु त्रिसूत्र

हृदय रोग से बचाव के त्रिसुत्रों पर ध्यान दें। मानसिक तनाव व हृदय रोग से मुक्ति के लिए 3 सूत्रों का ध्यान रखना आवश्यक है –

1) आहार 2) व्यायाम 3) मेडिटेशन (तनाव से मुक्ति) 
आहार पर नियंत्रण रखना सबसे महत्व का सूत्र है। अन्यथा जो आहार हमारे रोगों को बढ़ावा दे, ऐसे आहार का क्या फायदा? उम्र के 30-35 वर्ष के पश्चात आहार में तेल, घी का प्रमाण बहुत कम कर दें। कच्ची हरी सब्जियां व फल का सेवन अधिक करें। दूध के संबंध में कहा गया है हमारी शारीरिक वृद्धि पूर्ण होने पर शरीर को दूध की आवश्यकता नहीं रहती। दूध प्राणीजन्य पदार्थ होने के कारण उसमें स्निग्ध पदार्थ अधिक होता है अतः दूध व मांसाहार का सेवन न करें । दो समय के भारतीय आहार के अलावा जो कुछ बीच में खाया जाता है उसे रोकना चाहिए। आहार पर नियंत्रण करने पर शरीर की अनेक तकलीफें कम हो जाती है।

आहार के पश्चात व्यायाम का अपना महत्व है। हम स्वस्थ रहने पर व्यायाम पर ध्यान नहीं देते लेकिन जब शरीर में कोई तकलीफ होती है तो हमें लगता है व्यायाम करके हम जल्दी ठीक हो जाए ऐसा संभव नहीं है दरअसल हमें व्यायाम स्वस्थ अवस्था से ही प्रारंभ कर देना चाहिए। व्यायाम के साथ योगासन करने से ज्यादा फायदा होता है। सप्ताह में 3 घंटे व्यायाम को जरूर देना चाहिए। योगासन, व्यायाम योग्य मार्गदर्शन में करना आवश्यक है।

 तृतीय सूत्र अर्थात तनाव से मुक्ति प्राप्त करने का प्रयत्न। इसके लिए अनेक मार्ग उपलब्ध है। ध्यान, धारणा, ईश्वर चिंतन व प्राणायाम हृदय रोग निवारण के लिए ध्यान का अत्यंत महत्व है। उत्तम जीवन जीने के लिए अध्यात्म प्रवृत्ति का होना आवश्यक है। भजन करने से ब्लडप्रेशर कम होता है। प्राणायाम से भी तनाव दूर होता है, इसके अलावा प्राणायाम से मन एकाग्र, बुद्धि व स्मरणशक्ति बढ़ती है। मन पर नियंत्रण प्राप्त होता है। इच्छाशक्ति बढ़ती है। स्वस्थ रहने के लिए कोई हॉबी  होना जरूरी है, समय निकालकर उस हॉबी  को जरूर करना चाहिए। प्रत्येक घटना में आनंद की खोज करें। हमेशा हंसते मुस्कराते रहें। हंसने से मन की चिंताएं दूर होती है। निराशा दूर होकर स्वच्छ विचार आते हैं। अतः न केवल हृदय रोगी बल्कि सभी ने जीवन शैली में इन त्रिसूत्रों को पालन करना चाहिएं। 

अपने हृदय की रक्षा कीजिए, उसे अनावश्यक तनाव से बचाइए। संयमित जीवनशैली अपनाइए, हड़बड़ी से बचिए। सात्विक एवं प्राकृतिक आहार का सेवन किजिए। नियमित योगाभ्यास कीजिए। आवश्यक विश्राम करें, चिंता से स्वयं को कोसो दूर रखें। कुछ समय प्रभु सिमरन के लिए भी निकालिए। परोपकार के कार्य अवश्य किजीए। अपने आस-पास का वातावरण आनंदित व आल्हाददायक बनाएं अर्थात मन में किसी प्रकार का तनाव न रखें। इससे आपका हृदय सुरक्षित रह सकता है। यदि आप हृदय की रक्षा करते है तो हृदय भी आपके जीवन की रक्षा करेगा।

जीकुमार आरोग्यधाम में कई हृदयरोग से ग्रस्त रूग्ण आते हैं जो आयुर्वेदिक औषधि, उपलब्ध पंचकर्म की क्रियाएं व योगोपचार से राहत पाते है।

डॉ. जी.एम. ममतानी एम.डी.
(आयुर्वेद पंचकर्म विशेषज्ञ)
‘जीकुमार आरोग्यधाम’, 238,
नारा रोड, गुरु हरिक्रिशनदेव मार्ग,
जरीपटका, नागपुर-14
फोन : (0712) 2646700, 2646600, 3590400
9373385183 (Whats App)

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top