बच्चे के अच्छे स्वास्थ्य में पैरेंटिंग की अहम भूमिका होती है । पैरेंट्स को चाहिए कि वे ज्यादा से ज्यादा समय बच्चों के साथ व्यतीत करें। बेहतर जीवन करने में मदद कर सकते हैं । अपने बच्चे को बताएं कि आप हमेशा उसके साथ हैं । साल से कम उम्र का समय बच्चे की जिंदगी का सबसे अहम समय होता है यदि उसे सही सलाह, साथ और सपोर्ट मिल जाये तो उसे खुद को एक्सेप्ट करना आसान हो जाता है । एक्सपर्ट की सलाह से बच्चे को स्पेशल हॉबी क्लासेज, खेलकूद और उसकी रुचि के अनुसार से व्यस्त रखने की कोशिश करें । साथ ही उसे हमेशा ये आश्वासन देते रहें कि आप उसकी बातें सुनने के लिए हमेशा तैयार हैं ।
बच्चों का दिल और दिमाग बहुत नाजुक होता हैं। किसी भी बात का उन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ सकता है। इसीलिए हम उनके आस-पास अपने व्यवहार और भाषा का बहुत ध्यान रखते हैं। इसके साथ हमें ये भी समझने की आवश्यकता हैं कि सिर्फ हम बड़े ही नहीं, हमारे बच्चे भी कई तरह की मानसिक विकारों या समस्याओं से जूझते हैं। बच्चे वयस्कों से भिन्न होते हैं और जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं उनमें कई शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन होते हैं। अपने आस-पास की दुनिया का सामना करना, अनुकूलन करना और उससे जुड़ना सीखने की इस प्रक्रिया में बच्चे अपनी गति से परिपक्व होते हैं। प्रत्येक बच्चे के विकास की गति अलग-अलग होती है और जो एक के लिए सामान्य है वह दूसरे के लिए असामान्य हो सकता है इसलिए, मानसिक विकारों का कोई भी निदान इस बात पर विचार करता है कि बच्चा घर पर, परिवार के साथ, स्कूल में और साथियों के साथ कितनी अच्छी तरह काम करता है।
बच्चों में मानसिक विकारों को उनके सीखने, व्यवहार करने या स्वभाव में गंभीर परिवर्तन के रूप में वर्णित किया जाता है। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनका बच्चा एक खुशहाल बचपन जिए। मगर बच्चों में मानसिक स्वास्थ्य विकार उनके सम्पूर्ण स्वास्थ्य और कल्याण पर एक बड़ा असर डाल सकते हैं। मानसिक विकार से ग्रस्त बच्चे स्कूल में, दोस्तों या परिवार के साथ या कहीं भी उदास दिखाई दे सकते हैं। जो एक बच्चे के विकास को प्रभावित करता है और उसे जानकारी बनाए रखने या सामाजिक संबंध बनाने से रोकता है। यह बच्चे के व्यवहार को आक्रामकता में बदल सकता है।
बच्चों में मानसिक विकारों के कारण
अधिकांश मानसिक विकारों का कोई सटीक कारण ज्ञात नहीं है।लेकिन ऐसे कई अलग-अलग कारण हैं जो बच्चों में मानसिक विकारों के विकास में योगदान कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, जो बच्चा किसी पुरानी बीमारी से पीड़ित है उसमें चिंता या अवसाद विकसित होने की संभावना अधिक हो सकती है। इसके अतिरिक्त जो बच्चा यौन शोषण, भावनात्मक शोषण, पर्यावरणीय कारकों, सामाजिक आर्थिक स्थिति या जीवन तनाव जैसे प्रतिकूल बचपन के अनुभवों से गुजरता है, उसे मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं विकसित होने का भी खतरा हो सकता है। मानसिक विकारों के विकास में आनुवंशिकी भी भूमिका निभा सकती है क्योंकि जिन बच्चों के परिवार के सदस्यों को मानसिक बीमारी है, उनमें स्वयं ये स्थितियाँ विकसित होने की संभावना अधिक होती है। इन स्थितियों के विभिन्नकारणों को समझकर, हम अपने बच्चों में इन्हें होने से रोकने में मदद कर सकते हैं।
बच्चों में मानसिक विकारों के लक्षण
अधिकतर बच्चे किसी ना किसी मानसिक विकार से पीड़ित हैं। लेकिन उन्हें किसी भी तरह की मदद नहीं मिल पाती। कारण ये है कि उनके अभिभावक भी इस बात को समझ नहीं पाते। बहुत से अभिभावक सोचते हैं कि बच्चों को क्या स्ट्रेस है जो मानसिक समस्या होगी। लेकिन सच्चाई इससे अलग है। छोटे-छोटे लक्षण, बातें और हरकतें यदि इग्नोर कर दी जाएं तो ये बच्चे मानसिक रूप से अस्वस्थ, हिंसक और कई बार क्रिमिनल भी बन सकते हैं। बच्चों में कई प्रकार के मानसिक विकार हो सकते हैं। जिसमें ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिसऑर्डर (Autism Spectrum Disorder, ASD), अटेंशन डिफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder, ADHD), एंग्जाइटी (Anxiety), द्विध्रुवी विकार (Bipolar Disorder), डिप्रेशन (Depression) मुख्य रूप से होने वाले मानसिक विकार हैं।
मानसिक विकारों के लक्षण हर बच्चे में अलग अलग नजर आते हैं लेकिन फिर भी कुछ ऐसे सामान्य लक्षण व संकेत हैं जो इन विकारों को समझने और पहचानने में मदद कर सकते हैं- जैसे पढ़ाई में मन नहीं लगना, स्कूल में लगातार खराब प्रदर्शन, आक्रामक व्यवहार, स्कूल से बचना या गायब होना, लगातार उदासी, नींद की समस्या जैसे नींद न आना, बुरे सपने आना या नींद में चलना, सिरदर्द या पेट दर्द जैसे शारीरिक लक्षणों की बार-बार शिकायत, वजन कम होना, एकाग्रता में कमी आना, स्वभाव, मनोदशा, व्यवहार या व्यक्तित्व में कोई भी भारी परिवर्तन,दोस्तों या सामाजिक संपर्क में रुचि खोना, गुस्सा आना और तोड़-फोड़ करना , खुद को नुकसान पहुंचाना, दोस्तों के साथ मारपीट करना आदि। यदि बच्चे में इनमें से कोई भी लक्षण दिखाई देते हैं तो मनोचिकित्सक से मदद लेना चाहिए। ऑटिज्म स्पैक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD) से पीड़ित बच्चें अपने आस-पास के लोगों से घुलना-मिलना पसंद नहीं करते हैं। ऐसे बच्चों में सामाजिक संपर्क और संचार में कठिनाई दिखाई देती है। उन्हें खेलना अच्छा नहीं लगता है। अटेंशन डिफिसिट हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर (ADHD) में बच्चों को बात-बात पर बहुत अधिक गुस्सा आता है पढ़ाई या किसी अन्य काम पर फोकस नहीं कर पाता। ऐसे बच्चों को स्थिर बैठने, निर्देशों का पालन करने में परेशानी हो सकती है। एंग्जाइटी विकार वाले बच्चे चिड़चिड़ापन, बेचैनी या अत्यधिक चिंता के लक्षण प्रदर्शित कर सकते हैं। बच्चों में किसी काम को लेकर डर या फोबिया एंग्जाइटी का सबसे बड़ा कारण है जो ज्यादा समय तक होने पर खतरनाक रूप ले सकती है। जबकि द्विध्रुवी विकार (Bipolar Disorder) वाले बच्चे अत्यधिक खुशी या आक्रामकता का अनुभव कर सकते हैं। यदि बच्चे लगातार 2 सप्ताह या उससे ज्यादा समय तक उदास रहते है तो इसका मतलब है कि वह डिप्रेशन में हैं। डिप्रेशन मानसिक विकार वाले बच्चे दोस्तों और गतिविधियों से दूर हो सकते हैं और उनके मन में आत्महत्या के विचार आ सकते हैं।
बच्चों में मानसिक विकारों का उपचार
बच्चों में मानसिक विकारों के संकेतों और लक्षणों को पहचानने में सक्षम होना आवश्यक है ताकि उनका उचित उपचार किया जा सके। मानसिक विकार बच्चों के स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। अनुपचारित जीने के लिए आप अपने बच्चे की समस्याओं को दूर छोड़ दिए जाने पर, मानसिक विकार स्कूल में, दोस्तों और परिवार के साथ और जीवन के अन्य क्षेत्रों में समस्याएं पैदा कर सकते हैं। बच्चों के मानसिक विकार के लिए शीघ्र निदान और उपचार आवश्यक है। मानसिक विकार वाले बच्चों के लिए औषध चिकित्सा और सहायता समूहों सहित विभिन्न प्रकार के उपचार विकल्प उपलब्ध हैं। किसी विशेष बच्चे के लिए सर्वोत्तम उपचार का प्रकार बच्चे की उम्र,विकार की गंभीरता और बच्चे की व्यक्तिगत जरूरतों पर निर्भर करता है।उचित मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने के लिए बच्चों में मनोरोग स्थितियों के कुछ लक्षणों पर नजर रखना महत्वपूर्ण है। यदि कोई दिखाई दे तो जल्द से जल्द बाल मनोचिकित्सक से परामर्श लेना चाहिए। उचित निदान और उपचार के साथ, मानसिक स्वास्थ्य विकार वाले बच्चे खुश और स्वस्थ जीवन जी सकते हैं।
बच्चों के लाइफस्टाइल में अगर नेगेटिव बदलाव
नजर आए तो तुरंत मनोचिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए। पैरेंट्स बच्चों का माहौल बदलने के लिए ऐसा कोई तरीका अपनाएं जिससे उसको मानसिक चोट ना पहुंचे। बच्चों में यदि आत्मविश्वास की थोड़ी भी कमी दिखाई पड़े तो उसे बढ़ाने की कोशिश करनी चाहिए। बच्चों के खान-पान पर ध्यान देते हुए उसे पोषक तत्वों से भरपूर भोजन खाने के लिए देना चाहिए। पेरेंट्स को समय-समय पर बच्चे के दोस्तों और टीचर्स से मिलकर उसके व्यवहार का पता लगाते रहना चाहिए।
डॉ. बबीता केन
एम.डी. (आयुर्वेद)
प्रभारी चिकित्साधिकारी
राजकीय आयुर्वेदिक चिकित्सालय चन्द्रावल,
लखनऊ (उ.प्र.)
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